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पश्चिमी यूपी में बिखरा गांवों का भाईचारा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की पहचान धर्म से ज्यादा बिरादरी से होती रही है। आजादी के बाद यहां गांवों में पहली मर्तबा फैले सांप्रदायिक तनाव ने अनूठे सामाजिक ताने-बाने को झकझोरा है। सदियों पहले मुस्लिम बनी बिरादरियां अभी तक पुराने स्वरूप में पहचानी जाती हैं।

By Edited By: Published: Wed, 11 Sep 2013 05:00 AM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2013 05:01 AM (IST)
पश्चिमी यूपी में बिखरा गांवों का भाईचारा

अवनीश त्यागी, लखनऊ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की पहचान धर्म से ज्यादा बिरादरी से होती रही है। आजादी के बाद यहां गांवों में पहली मर्तबा फैले सांप्रदायिक तनाव ने अनूठे सामाजिक ताने-बाने को झकझोरा है। सदियों पहले मुस्लिम बनी बिरादरियां अभी तक पुराने स्वरूप में पहचानी जाती हैं। मसलन मुस्लिम बने जाटों को मूला जाट, त्यागी को महेसरा, राजपूतों को राजपूत मुसलमान , गुर्जरों को मुस्लिम गुर्जर कहा जाता है। अहम बात यह है कि मुसलमान होने के बावजूद इन वर्गो की अनेक परंपराएं एवं रस्में अपनी मूल बिरादरी के अनुरूप मनाई जाती है। एक ही भैंसा बुग्गी से खेतों पर जाने वाले जहीर एवं उमेश को अब एक-दूजे पर भरोसा नहीं रहा। विश्वास की डोर वोटों की सियासत में टूट गई है। राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के दौर में शांत रहे गांवों में आज उबाल है।

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पुरबालियान के जहीर को यह जानने में जरा दिलचस्पी नहीं कि उनके पूर्वज कब मुस्लिम बने थे। अब उन्हें मूला जाट (मुस्लिम जाट) के रूप में जाना जाता है तो उमेश जाट उसे अपना सा लगता रहा है। पेशे से इंजीनियर सादिक राणा कहते है कि मुस्लिम भले ही हों, परंतु राजपूत होने के कारण उनकी बिरादरी में गोत्र में शादी को अच्छा नहीं माना जाता। इसी तरह डॉ. नासिर त्यागी बताते हैं, उनके यहां शादी में भात और बच्चे के जन्म पर छठी जैसे संस्कार धूम से मनाए जाते हैं। एडवोकेट राजकुमार गुर्जर का कहना है कि गांवों में धर्म से पहले जात-बिरादरी को पूछा जाता है। इस सामाजिक तानेबाने ने ही गांवों को धार्मिक बवालों से बचाए रखा, लेकिन पिछले दो दशकों में बढ़ते उन्माद ने हालात बिगाड़े हैं।

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हालिया दंगों ने जख्म गहरे कर दिए। शामली, मुजफ्फरनगर से शुरू तनाव मेरठ, बागपत, सहारनपुर, हापुड़ तक फैलता दिख रहा है। खेती-किसानी के मसलों पर भाकियू नेता स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में लंबी लड़ाई लड़ने वाले अब आमने-सामने डटे हैं। भौंराकलां, खरड़, फुगाना, लिसाड़, लाक, अलियारपुर व पुरबालियान जैसे दर्जनों गांवों में सदियों साथ रहे लोगों का आपसी विश्वास डगमगाया तो कम तादात वाले अपने पुश्तैनी ठिकाने छोड़ कर जा रहे हैं। वोटों की भूख से गांवों का भाईचारा बिखरने का आरोप लगाते हुए मुबारिकपुर निवासी श्रीकांत का कहना है कि प्रशासन के फैसले निष्पक्ष न होने के कारण भड़की आग ने आपसी रिश्तों को स्वाहा कर दिया।

आसान नहीं होगा फासलों को भरना

सदियों से चला आ रहा सामाजिक तानाबाना दरकने और दिलों के बंटने से बढ़े फासले को पाटना आसान नहीं होगा। जिन गांवों से पलायन हो रहा है, वहां खेतिहर मजदूरों की किल्लत होगी। गांवों में कोल्हू पर कारीगरों, बढ़ई, लोहार, धोबी व मैकेनिकों का अकाल खल सकता है। वहीं गांवों से शहरों की ओर अचानक बढ़े पलायन से नई समस्याएं खड़ी होगी। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. एसके चतुर्वेदी का कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गांवों का धार्मिक आधार पर बंटना दुर्भाग्यपूर्ण है। गांवों से जारी पलायन को तत्काल न रोका तो इसके आर्थिक दुष्प्रभाव भी होंगे। सामाजिक तानाबाना बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी की है, लेकिन सरकार की भूमिका अहम होती है।

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