किसी बड़े बदलाव की आहट है ब्रेक्सिट !
विदेश मंत्रालय की आधिकारिक प्रतिक्रिया यह है कि शुक्रवार के फैसले के बाद भारत ईयू और ब्रिटेन के साथ अपने बहुआयामी रिश्तों को आगे और मजबूत बनाने की कोशिश करेगा।
नई दिल्ली, (जागरण ब्यूरो)। ब्रिटेन का यूरोपीय संघ (ईयू) से निकलना क्या सिर्फ एक देश का जनमत संग्रह भर है या यह दुनिया में हो रहे बड़े बदलावों की तरफ इशारा है? ब्रिटेन के फैसले के बाद दुनिया के जानकारों व तमाम कूटनीतिक विशेषज्ञों की टिप्पणियों पर नजर डाले तो साफ हो जाता है कि यह पश्चिमी देशों में हो रहे उथल पुथल की शुरुआत भर है। कुछ इसे यूरोपीय संघ के विघटन की शुरुआत मान रहे हैं तो कुछ इसे दुनिया में नए संरक्षणवाद के संकेत के तौर पर देख रहे हैं। क्या भारतीय कूटनीति इसके लिए तैयार है?
विदेश मंत्रालय की आधिकारिक प्रतिक्रिया यह है कि शुक्रवार के फैसले के बाद भारत ईयू और ब्रिटेन के साथ अपने बहुआयामी रिश्तों को आगे और मजबूत बनाने की कोशिश करेगा। लेकिन विदेश मंत्रालय के अधिकारी मानते हैं कि बहुत कुछ इस बात पर तय होगा कि ईयू और ब्रिटेन के बीच आपसी रिश्ते किस तरह से आगे बढ़ते हैं।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा ब्रेक्सिट की चुनौतियों से निपटने को हैं तैयार
सबसे अहम सवाल यह है कि क्या ईयू अब एक संगठन के तौर पर मजबूत बना रह सकेगा। नार्वे, डेनमार्क, चेक जैसे छोटे लेकिन अपेक्षाकृत ज्यादा संपन्न देश यूरोपीय संघ के मंदी से जूझ रहे कई बड़े देशों का बोझ कब तक उठाने को तैयार होंगे। अगर ऐसा होता है तो यह ब्रेक्सिट से भी बड़ी घटना होगी। यह पूछे जाने पर कि भारतीय कूटनीति के सामने कैसी चुनौती होगी, तो उक्त अधिकारी का कहना है कि ब्रिटेन के अलग होने के बाद एक तरफ यूरोपीय संघ के 27 देश और दूसरी तरफ ब्रिटेन अपने अपने हितों की रक्षा करने की कोशिश करेंगे। हो सकता है कि इनके बीच सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा लिया जाए और यह भी हो सकता है कि दोनों पक्ष अपने अपने हितों के लिए बिल्कुल एक दूसरे के खिलाफ हो।
अब भारत को हाल ही में यूरोपीय संघ ने अपना प्रमुख रणनीतिक साझेदार घोषित किया है। भारतीय पक्ष यूरोपीय संघ के साथ अपने कारोबारी रिश्तों को नया आयाम देने की रणनीति पर काम कर रहा है। लेकिन ब्रेक्सिट के बाद अब पूरा माहौल बदल जाएगा। हमें दोनों पक्षों के बीच के रिश्तों को देख कर अपनी आगे की रणनीति तय करेंगे।दुनिया के कई समाचार पत्रों के अलावा सोशल मीडिया पर भी तमाम लोगों ने ब्रेक्सिट के पक्ष में हुए फैसले को दुनिया में बढ़ रहे संरक्षणवाद का संकेत माना है। इससे ईयू के साथ अमेरिका, भारत और दक्षिणी पूर्वी एशियाई की चल रही मुक्त व्यापार समझौता वार्ता की अहमियत खत्म होने की बात कही गई है।
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