विकासशील देशों को कंगाल कर रहा है कालाधन, प्रतिवर्ष 65 लाख करोड़ का नुकसान
विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को काले धन से भारी नुकसान हो रहा है।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। कालाधन विकासशील देशों को कंगाल बना रहा है। हाल यह है कि दुनियाभर में विकासशील देशों को कालेधन से हर साल एक खरब डालर (करीब 65 लाख करोड़ रुपये) का नुकसान हो रहा है। इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय टैक्स हैवंस भी विकासशील देशों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। इसका असर यह है कि विकासशील देशों के लिए भुखमरी व गरीबी मिटाने और आम नागरिकों को स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने जैसे 'सतत विकास लक्ष्यों' पर खर्च करने के लिए धन जुटाना मुश्किल हो रहा है।
सूत्रों के मुताबिक भारत यह मुद्दा अगले महीने अमेरिका में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के 'सतत विकास पर उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम' में उठाने जा रहा है। भारत का कहना है कि महत्वपूर्ण प्रयासों के बावजूद सतत विकास लक्ष्यों के लिए पर्याप्त धन जुटाना संभव नहीं है। इसलिए विकसित देशों को विकासशील देशों को वित्तीय सहायता मुहैया कराने का उत्तरदायित्व निभाना चाहिए।
सूत्रों के अनुसार न्यूयार्क में 10 से 19 जुलाई तक संयुक्त राष्ट्र का 'सतत विकास पर उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम' होने जा रहा है। इस फोरम में विभिन्न देश सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में अब तक हुई प्रगति की 'स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा रिपोर्ट' पेश करेंगे। भारत की ओर से पेश होने वाली यह समीक्षा रिपोर्ट नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानागढि़या ने तैयार की है। नीति आयोग की इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में विकासशील देशों को मनी लांड्रिंग के चलते पैदा हो रहे कालेधन से भारी भरकम एक खरब डालर का नुकसान हो रहा है।
घरेलू कर चोरी और अंतरराष्ट्रीय टैक्स हैवंस की वजह से विकासशील देशों के लिए घरेलू स्तर पर वित्तीय संसाधन जुटाना बेहद मुश्किल हो रहा है। रिपोर्ट में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपने लाभ को दूसरी जगह दिखाने की प्रक्रिया (ट्रांसफर प्राइसिंग) के चलते भी विकासशील देशों को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है। भारत ने यह मुद्दा उठाया है लेकिन अब तक इस दिशा में प्रयास सफल नहीं हुए हैं। इस रिपोर्ट में दुनियाभर में मनी लांड्रिंग पर शिकंजा कसने के लिए जरूरी वैश्रि्वक सहयोग के अभाव की ओर भी ध्यान खींचा गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने विकासशील देशों से अवैध तरीके से कर चोरी कर बाहर ले जाए जा रहे धन के बारे में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत को भी उजागर किया है। हालांकि इस दिशा में भी अब तक समुचित उपाय देखने को नहीं मिले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अपने स्तर पर घरेलू वित्तीय संसाधन बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं। हालांकि भारत में टैक्स-जीडीपी अनुपात ब्रिक्स देशों से भी कम है, इसलिए इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है। इसमें परोक्ष करों के मुद्दे पर वस्तु एवं सेवा कर लागू करने को घरेलू स्तर पर वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए प्रमुख कर सुधार बताया गया है।
यह भी पढ़ें: रेटिंग पर होगा एक्सपोर्टर का जीएसटी रिफंड
यह भी पढ़ें: अब घोड़ों पर भी लगेगा जीएसटी, बाकी पशुओं को रखा दायरे से बाहर