सहयोगी दलों को जिताने के लिए भी जुटेगी भाजपा
2004 में वाजपेयी सरकार के वक्त भी गठबंधन साथियों का प्रदर्शन खराब रहा था और 2015 के बिहार चुनाव मे भी साथियों ने ही हाथ पैर बांध दिए।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भाजपा अब 2004 या फिर 2015 की गलतियां नहीं दोहराएगी। चिंता सिर्फ अपनी नहीं बल्कि सहयोगी दलों की भी की जाएगी। यानी यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सहयोगी दलों के क्षेत्र मे भी भाजपा मजबूती के साथ खड़ी रहे। जाहिर तौर पर इससे सहयोगी दलों में आशंकाएं भी पनप सकती हैं लेकिन भाजपा यह सुनिश्चित कर चलना चाहती है कि पिछले चुनावों की तरह गठबंधन दल बैठ न जाएं। 2004 में वाजपेयी सरकार के वक्त भी गठबंधन साथियों का प्रदर्शन खराब रहा था और 2015 के बिहार चुनाव मे भी साथियों ने ही हाथ पैर बांध दिए। बिहार में भाजपा के सहयोगी दल मिलकर दो अंक का आंकड़ा भी नहीं छू सके थे।
दो दिन पहले दिल्ली में हुई बिहार भाजपा कोर कमिटि की बैठक दरअसल पूरे देश के लिए संकेत था। अगर भाजपा अपने लिए पिछले लोकसभा चुनाव से भी बड़े जनमत का दावा कर रही है तो यह सोच भी है कि गठबंधन के दूसरे साथी इतने कमजोर न हो जाएं कि असर भाजपा पर भी पड़े। कोशिश यह होगी कि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा और तेज हो। लिहाजा शीर्ष नेतृत्व की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि बिहार हो या दूसरा प्रदेश पार्टी को हर सीट पर मौजूद रहना होगा।
पार्टी के एक नेता ने इस आशंका को खारिज किया कि भाजपा बिहार समेत कुछ अन्य राज्यों में सभी सीटों पर नजरें जमाए है। हालांकि यह गठबंधन दलों को भी मानकर चलना होगा कि कांग्रेस व दूसरे विपक्षी दलों की सीटों पर साथियों की मजबूती से हिस्सा तय होगा। मसलन बिहार मे कांग्रेस या राजद की सीटों पर जदयू और भाजपा की मजबूती आगे का रास्ता तय करेगी। वैसे भी ऐसी सीटों पर भाजपा या फिर लोजपा और हम पार्टी ही चुनाव लड़ी थी। लोकसभा चुनाव की बात आएगी तो वहां भी फार्मूला कुछ इसी तरह हो सकता है। फिलहाल भाजपा का फोकस यह रहेगा कि चुनाव में सहयोगी दलों का प्रदर्शन भी अच्छा हो और इसके लिए खुद पार्टी के कार्यकर्ता भी अभियान में जुटेंगे।
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