हिटलर की तानाशाही के सहारे कांग्रेस पर साधा निशाना
असहिष्णुता को लेकर घिरी सरकार ने जर्मनी में हिटलर की तानाशाही की मिसाल देते हुए कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने संविधान को कमजोर कर आपातकाल लागू करने का आरोप लगाया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। असहिष्णुता को लेकर घिरी सरकार ने जर्मनी में हिटलर की तानाशाही की मिसाल देते हुए कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने संविधान को कमजोर कर आपातकाल लागू करने का आरोप लगाया। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कांग्रेस का नाम लिए बगैर कहा तानाशाही का वह सबसे बुरा दौर था। उस समय जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार तक निलंबित कर दिया गया था।
संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के आयोजन के तहत राज्यसभा में चर्चा की शुरुआत जेटली ने की। उन्होंने कहा कि संविधान को मजबूत बनाये रखने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए ताकि लोकतंत्र को फिर से कमजोर करने की कोशिश न की जा सके। जेटली ने हिटलर के शासनकाल की घटनाओं का सिलसिलेवार जिक्र करते हुए इंदिरा गांधी के 1975 में लगाये गये आपातकाल का नाम लिए बगैर कहा कि भारत में इसका दोहराव किया गया।
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असहिष्णुता पर हो रही आलोचना का जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि इतिहास की सबसे दुखद घटना संविधान को नष्ट करने के लिए संवैधानिक उपबंधों का दुरुपयोग किया जाना है। 1930 में जर्मनी में संविधान को नष्ट किया गया, जिससे अधिनायकवाद का घिनौना चेहरा सामने आया था। हिटलर ने संसद को आग लगाकर फूंक देने की आशंका जताते हुए आपातकाल लागू कर दिया था। संविधान संशोधन के लिए बहुमत जुटाने की खातिर विपक्षी सदस्यों को हिरासत में ले लिया गया। प्रेस पर सेंसरशिप लगाने के बाद अपना 25 सूत्रीय आर्थिक आर्थिक कार्यक्रम जारी किया। हिटलर के तत्कालीन सहयोगी ने अपना भाषण एडोल्फ हिटलर जर्मनी है और जर्मनी हिटलर है से समाप्त की।
जेटली का सीधा संकेत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में उठाये गये कदमों की तरफ था। जब कहा जाता था कि इंदिरा ही भारत हैं और भारत ही इंदिरा हैं। कांग्रेस के सदस्यों की टोका टोकी के बीच जेटली ने चुटकी लेते हुए कहा, इसके बाद दुनिया के अन्य हिस्सों में जो कुछ हुआ उस पर जर्मनी ने कभी कापीराइट का दावा नहीं किया। जेटली ने कहा, 'हमने आपातकाल के दौरान जो सबसे बड़ी चुनौती का सामना किया वह था अनुच्छेद 21 को निलंबित किया जाना। नागरिकों से जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार वापस लिया जाना था। यह तानाशाही का सर्वाधिक बुरा स्वरूप था।'
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संविधान की 65 सालों की वैचारिक यात्रा का ब्यौरा देते हुए जेटली ने कहा 'बाबा साहब 1949 में दिया गया अपने भाषण के धारा 44 व 48 को आज के सदन में पेश करते तो सदन की क्या प्रतिक्रिया होती। अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता बनाने का और अनुच्छेद 48 में गोवध पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है। संविधान को सर्वोपरि बताते हुए जेटली ने कहा कि यह जाति, धर्म, मजहब हर बात से उपर है।
आतंकवाद को आज समूचे विश्र्व में संवैधानिक व्यवस्था के सामने बडी चुनौती बताते हुए जेटली ने कहा कि इस मुद्दे पर वोट की राजनीति के चलते अलग अलग स्वर नहीं होने चाहिए। संसद हमला, मुंबई बम विस्फोट और ट्रेन हमलों के आतंकियों को शहीद बताने वालों को शहीद कहा गया था। ऐसे में बाबा साहब होते तो वह इस पर क्या प्रतिक्रिया देते।