Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जाट-गैरजाट के बीच झूलती भाजपा

    By anand rajEdited By:
    Updated: Wed, 08 Oct 2014 08:59 AM (IST)

    मोदी लहर पर सवार होकर हरियाणा में पहली बार अकेले दम ताकत बनकर उभरी भाजपा को विधानसभा चुनाव में लोकसभा जैसा करिश्मा दोहराने के लिए संतुलन की बाजीगरी दिखानी होगी। सरकार बनाने की जुगत में लगी भाजपा एक हाथ से जाट कार्ड खेल रही है, तो दूसरा हाथ गैरजाट वोटरों को खींचने की कोशिश में लगा है।

    हिसार (राजकिशोर)। मोदी लहर पर सवार होकर हरियाणा में पहली बार अकेले दम ताकत बनकर उभरी भाजपा को विधानसभा चुनाव में लोकसभा जैसा करिश्मा दोहराने के लिए संतुलन की बाजीगरी दिखानी होगी। सरकार बनाने की जुगत में लगी भाजपा एक हाथ से जाट कार्ड खेल रही है, तो दूसरा हाथ गैरजाट वोटरों को खींचने की कोशिश में लगा है। जाट-गैर जाट वोटरों में बंटी रही प्रदेश की राजनीति में भाजपा कुछ माहौल तो कुछ अपनी रणनीति के बूते दोनों पालों के वोट हासिल करने की उम्मीद में है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दरअसल इस प्रदेश की राजनीति का मुहावरा मोटे तौर पर जाटों के इर्द-गिर्द घूमता है। सबसे कद्दावर मिथकीय नेता चौधरी देवीलाल जाट थे तो उनसे पहले से हरियाणा में 'फादर फिगर' की हैसियत रखने वाले चौधरी छोटूराम भी इसी बिरादरी से ताल्लुक रखते थे। चौधरी देवीलाल, चौधरी बंसीलाल, ओमप्रकाश चौटाला और पिछले 10-15 सालों से भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे जाट नेता ही प्रदेश की राजनीति पर छाए रहे हैं। प्रदेश में सरकारी नौकरियों से लेकर व्यापार तक और खाप-पंचायतों के रूप में सामाजिक परिदृश्य पर जाटों का दबदबा रहता आया है।

    हरियाणा में अकेले दम सरकार बनाने का ख्वाब देख रही भाजपा ने भी अंतत: थोक में टिकट देकर इसी बिरादरी पर बड़ा दांव खेला है। भाजपा के पास ओमप्रकाश धनखड़ या कैप्टन अभिमन्यु जैसे नेता पार्टी में बड़ी हैसियत रखते हुए भी प्रदेश में कभी बड़े जाट नेताओं के तौर पर नहीं गिने गए हैं। इस कमी को दूसरी पार्टियों से आए चौधरी बीरेंद्र सिंह, छत्रपाल, धर्मवीर जैसे अपने इलाकों के जाट नेताओं के जरिये पूरी करने की कोशिश की है। बीच-बीच में भाजपा ने जाट मुख्यमंत्री की संभावनाओं को भी खूब हवा दी।

    इसके बावजूद भाजपा के लिए जाटलैंड में राह आसान नहीं है। 10 सालों के शासन में खुद को ओमप्रकाश चौटाला के समकक्ष जाट नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिशों में जुटे रहे हुड्डा और इनेलो के बीच जाट वोटों का असली संघर्ष है। चौटाला के प्रचार रथ लेकर निकलने के बाद से उनके प्रति जाटों में सहानुभूति लहर भी दिख रही है। इसीलिए, चुनाव बाद गठबंधन की अटकलों के बीच भाजपा फिलहाल चौटाला को लेकर आक्रामक मुद्रा में है। खुद प्रधानमंत्री ने ही तीखे हमलों की कमान संभाल चौटाला से चुनाव बाद समझौतों के कयासों पर विराम लगाने की कोशिश की है।

    सियासी रूप से काफी परिपक्व और आक्रामक जाट बिरादरी के स्वभाव को समझते हुए वास्तव में भाजपा की रणनीति प्रमुख रूप से गैरजाटों पर ही टिकी है। दरअसल 2005 में चौटाला राज के बाद कांग्रेस सत्ता में आई थी तो भजनलाल के सीएम बनने की उम्मीद कर रहे गैरजाटों ने उन्हें जबरदस्त समर्थन दिया था। विधायकों का बहुमत साथ होने के बावजूद सीएम न बन सके भजनलाल अपना करिश्मा भी खोते चले गए। प्रदेश में गैर जाट पॉलिटिक्स के सबसे धुरंधर नेता रहे भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई इस वोट बैंक को एकमुश्त नहीं पा सके। भजनलाल अब दुनिया में नहीं हैं और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई लोकसभा चुनाव में अपनी सीट तक हार जाने के बाद भाजपा की तरफ से भी ठुकराए जा चुके हैं। उधर, हुड्डा के करीब 10 साल तक सीएम रहने के बाद गैरजाट वोटर तीसरी बार उनके ही नाम पर कांग्रेस को एकमुश्त वोट देगा, इसकी संभावनाएं कम ही हैं। ऐसे में भाजपा को लगता है कि ऐसी परिस्थितियों में गैरजाट वोटर ज्यादा निर्णायक होंगे। राव इंद्रजीत सिंह जैसे कद्दावर नेता के कांग्रेस से टूटने के बाद भाजपा को अहीरवाल से उम्मीदें हैं तो रामविलास शर्मा को सीएम बनाने के भ्रम के जरिये ब्राह्मण वोटरों से भी। मनोहरलाल खट्टर, अनिल विज, सुषमा स्वराज आदि नामों की बतौर संभावित सीएम चर्चाओं को भाजपा गैर जाट हलकों में लाभ की दृष्टि से जारी रहने दे रही है। यही कारण है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की नारनौंद रैली में कैप्टन अभिमन्यु को सीएम बनाए जाने के संकेतों पर पार्टी ने तुरत-फुरत विराम लगाया, ताकि गैरजाट हलकों में उसे नुकसान न हो। यूं भी मोदी के असर में भाजपा को माहौल अपने अनुकूल लग रहा है।

    पढ़ें: मोदी का मुकाबला करेंगे राहुल

    पढ़ें: आचार संहिता से पहले हुआ वाड्रा पर फैसला

    comedy show banner
    comedy show banner