तमिलनाडु में भाजपा को दिख रही उम्मीद
तमिलनाडु के तटीय इलाकों में भीषण बाढ़ के बाद मुख्यमंत्री जयललिता के खिलाफ उपजे भारी असंतोष और मुख्य विपक्षी दल द्रमुक की खेमेबाजी के बीच भाजपा अपना आधार मजबूत करने में जुट गई है।
नई दिल्ली। तमिलनाडु के तटीय इलाकों में भीषण बाढ़ के बाद मुख्यमंत्री जयललिता के खिलाफ उपजे भारी असंतोष और मुख्य विपक्षी दल द्रमुक की खेमेबाजी के बीच भाजपा अपना आधार मजबूत करने में जुट गई है।
आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा दूसरे छोटे दलों को जोड़कर एक बड़ा मंच तैयार करने की कवायद कर रही है। इसके साथ ही वह खुद के लिए इतना जनाधार तैयार कर लेना चाहती है कि अगले लोकसभा चुनाव में दोनों मुख्य द्रविड़ पार्टियों में किसी एक का विकल्प बन सके। फिलहाल पार्टी की नजर उन क्षेत्रों की तीन-चार दर्जन सीटों पर केंद्रित रहेगी, जहां बाढ़ से निपटने में प्रशासन विफल साबित हुआ था।
पांच रायों के आगामी विधानसभा चुनाव में यूं तो भाजपा असम को छोड़कर किसी दूसरे राय में सत्ता की दौड़ में नहीं है। लेकिन उन राज्यों में चुनाव को पार्टी लोकसभा और बाद के विधानसभा चुनाव के लिहाज से अहम मान रही है। तैयारी भी उसी तर्ज पर है। खासकर तमिलनाडु पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की विशेष नजर है। इसके लिए तैयारी शुरू हो गई है। पिछले पांच-छह महीने में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दो बार प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने हर बार दलितों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले देवेंद्र समुदाय से मुलाकात की है। यह वह समुदाय है जो अन्नाद्रमुक और द्रमुक दोनों को वोट देता रहा है। सामाजिक कद बढ़ाने की लालसा में भाजपा को भी वोट देने के लिए तैयार हो सकता है। समृद्ध देवेंद्र समुदाय के मामले में हैरान कर देने वाली बात यह है कि जब कई समुदाय आरक्षण और अन्य फायदों के लिए एससी वर्ग में आना चाहते हैं, यह वर्ग इससे बाहर निकलना चाहता है।
बताते हैं कि कोनार (यादव) समुदाय में भी दोनों मुख्य दलों के खिलाफ नाराजगी है। भाजपा इसे अपने पाले में करने में जुट गई है। सूत्र बताते हैं कि इस समुदाय के बीच पैठ बनाने के लिए संघ और भाजपा के नेता जुटे हैं। भाजपा के पक्ष में बात यह है कि बाढ़ से निपटने में जयललिता अलोकप्रिय हो गई हैं। इसे देखते हुए बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में भाजपा अपने लिए माहौल बनाएगी। यह इसलिए भी थोड़ा आसान हो सकता है, क्योंकि द्रमुक में बाप-बेटे की लड़ाई घर-घर तक पहुंच गई है। 90 की दहलीज पर खड़े करुणानिधि ने अब तक अपने पुत्र स्टालिन को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में घोषित नहीं किया है। बड़े बेटे अलागिरी भी नहीं चाहेंगे कि स्टालिन की राह आसान हो।
भाजपा सूत्र बताते हैं कि भाजपा के पास फिलहाल अपना कोई बड़ा चेहरा नहीं है। ऐसे में डीएमडीके, पीएमके और एमडीएमके समेत छोटे छोटे दलों को इकट्ठा करने की कोशिश शुरू हो चुकी है। पर्दे के पीछे तो बातचीत चल रही है, लेकिन जल्द ही औपचारिक रूप से भी वार्ता होगी। सूत्रों की मानें तो डीएमडीके नेता विजयकांत को इस भावी गठबंधन का चेहरा बनाया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए भाजपा को पीएमके को साधना होगा, जिसने पहले ही अपने नेता रामदास को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। खुद विजयकांत ने भी अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है कि वह किसके साथ रहेंगे।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के वक्त वह राजग का हिस्सा थे, लेकिन पिछले चुनाव में उन्होंने जयललिता का साथ दिया था। इस बार द्रमुक की ओर से भी उन्हें आमंत्रण है। भाजपा की तमिलनाडु रणनीति का पहला इम्तिहान यही होगा कि वह अन्नाद्रमुक और द्रमुक को अलग-थलग रखकर खुद कितना बड़ा गठबंधन बना पाती है।