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सपा के संग्राम को भाजपा ने बताया 'फिक्सड मैच', कहा- इस्तीफा दें अखिलेश

भाजपा की यूपी चुनाव पर पूरी रणनीति की झलक 5 नवंबर से शुरू हो रही परिवर्तन यात्रा में दिखेगी।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 26 Oct 2016 07:33 PM (IST)Updated: Thu, 27 Oct 2016 03:31 AM (IST)

नई दिल्ली, (जागरण ब्यूरो)। सपा में मचे घमासान के बीच भाजपा के अंदर भी द्वंद्व चल रहा है। पार्टी उत्तर प्रदेश की चुनावी रणनीति में सपा के कलह को 'फिक्सड मैच' बताकर अल्पसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण भी रोकना चाहती है और कलह को उजागर कर यादव वोट बैंक में सेंध भी लगाना चाहती है। पार्टी की पूरी रणनीति की झलक 5 नवंबर से शुरू हो रही परिवर्तन यात्रा में दिखेगी।

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पिछले कुछ दिनों में सपा के अंदर जिस तरह तू तू मैं मैं और दोफाड़ की स्थिति बन गई उसके बाद यह माना जा रहा है कि वह तीसरे नंबर की पार्टी होगी। लेकिन भाजपा के नेताओं का कहना है कि लड़ाई अभी भी भाजपा और सपा की ही होगी। उनका मानना है कि सपा भाजपा से काफी पीछे होगी लेकिन दूसरे नंबर पर होगी। दरअसल पार्टी को रास भी यही आता है।

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भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने कहा- 'सपा परिवार के अंदर की कलह सिर्फ दिखावा है। यह फिक्स्ड है ताकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पांच साल के निराशाजनक कामकाज से लोगों को ध्यान हटाया जा सके। पूरा परिवार इसी कोशिश में जुटा है। और यह प्रयास ईवीएम में अंतिम वोट पड़ने तक चलता रहेगा।'

श्रीकांत ने आगे कहा- अखिलेश जनता की भलाई की बात कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को फटकार लगाई है कि वह लोगों के स्वास्थ्य के प्रति बेपरवाह है। लेकिन सपा परिवार को जनता के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है। वह राजनीतिक ड्रामा के जरिए पांच साल के कामकाज को छिपाना चाहते हैं। श्रीकांत ने कहा कि अगर अखिलेश यादव में थोड़ी भी नैतिकता है तो फिर पार्टी के मंच से भाषण देने की बजाय जनता के सामने आकर प्रदेश में फैले अपराध और भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दें।

दरअसल भाजपा विकास के मुद्दों पर चुनाव को केंद्रित तो करना चाहती है लेकिन प्रदेश के जातिगत समीकरण को कसते हुए। पार्टी को इसका अहसास है कि यूपी के चुनाव में अल्पसंख्यक वर्ग का खासा महत्व है। वह पारंपरिक रूप से बहुमत में सपा के साथ रहे हैं। लेकिन यह आशंका भी है कि सपा की बदहाली कहीं बसपा की तरफ ध्रुवीकरण न कर दे। लिहाजा कहीं न कहीं सपा का थोड़ा मजबूत दिखना भी जरूरी है। जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान टूटे यादव वोट बैंक को विधानसभा मे भी अपने साथ इकट्ठा रखने की कवायद है।

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