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अरूणा ईरानी के जन्मदिन पर विशेष:

फिल्मी दुनिया के ट्रैजिडी किंग दिलीप कुमार के साथ 1961 में फिल्म गंगा जमना से बतौर बाल कलाकार अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री अरुणा ईरानी अभी तक 357 फिल्मों में काम कर चुकी हैं। उनकी अंतिम फिल्म थी 2008 में रिलीज यार मेरी जिंदगी। फिलहाल वह धारावाहिकों में भी काम कर रही हैं।

By Edited By: Published: Thu, 03 May 2012 08:48 AM (IST)Updated: Thu, 03 May 2012 09:55 AM (IST)

नई दिल्ली। फिल्मी दुनिया के ट्रैजिडी किंग दिलीप कुमार के साथ 1961 में फिल्म गंगा जमना से बतौर बाल कलाकार अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री अरुणा ईरानी अभी तक 357 फिल्मों में काम कर चुकी हैं। उनकी अंतिम फिल्म थी 2008 में रिलीज यार मेरी जिंदगी। फिलहाल वह धारावाहिकों में भी काम कर रही हैं।

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अहम बात यह है कि अरुणा ने अपने लंबे फिल्मी सफर में हर तरह की भूमिका की है। वे एक अच्छी एक्ट्रेस के रूप में जानी जाती हैं, लेकिन यह बात कम लोगों को ही मालूम है कि मुंबई आने से पहले वे गुजरात में पिता की गुजराती थिएटर कंपनी में बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी निभा चुकी थीं।

अरुणा की यादें, उन्हीं की जुबानी..

उन दिनों हम अहमदाबाद में रहते थे। वहां पिताजी की थिएटर कंपनी थी। अपनी कंपनी के जरिए नाटकों में कैसे विविधता और नवीनता लाई जाए, इसके लिए वे काफी शोध करते थे। उम्र और समझ में मैं बच्ची थी, लेकिन थिएटर के प्रति मेरी ललक आसमान से भी ऊंची थी। मैं अपना होमवर्क जल्दी-जल्दी निपटा कर पिताजी की उंगली थामे थिएटर चली जाती थी। सच तो यह है कि कलाकारों को करीब से एक्टिंग करते हुए देखने का सुख ही कुछ अलग होता है। नाटकों में मेरी दिलचस्पी को देखते हुए एक दिन पिताजी ने सुझाव दिया, तुम चाहो, तो मेरे साथ रोज थिएटर आ सकती हो, लेकिन अपना होमवर्क पूरा कर लेने का बाद। मैं खुशी से झूम उठी। स्कूल से आते ही खाने-पीने की चिंता किए बगैर मैं होमवर्क पूरा करती और थिएटर की ओर चल देती। पिताजी मुझे थिएटर में सबसे आगे बिठाते थे। उनकी बातों से मुझे लगा कि इसी बहाने पिताजी को कंपनी का उत्ताराधिकारी भी मिल जाएगा! हालांकि वे समझाते भी थे कि सैकड़ों दर्शकों के सामने एक्टिंग करना आसान नहीं होगा। उन्होंने मेरे लिए एक रास्ता निकाला। वे नाटक की दो स्क्रिप्ट तैयार करवाते थे। एक कॉपी मुझे देकर कहते कि इसे अच्छी तरह याद कर लो। अगर कोई लड़की किसी वजह से नहीं आएगी, तो उसकी भूमिका मुझे ही निभानी होगी। कभी मेरा पूरा समय थिएटर में बैठे गुजर जाता, तो कभी एक नाटक में दो या तीन किरदार निभाने पड़ते थे। चूंकि मुझे पूरी स्क्रिप्ट याद रहती थी, इसलिए कभी मुश्किल नहीं होती थी।

थिएटर में आगे बैठने की वजह से सभी कलाकारों को करीब से काम करते हुए देखने का अवसर मुझे हमेशा मिल ही जाता था। शाम को जब हम डिनर के समय पिताजी के साथ बैठती थी, तो उन्हें बताती थी कि किसका परफॉर्मेस अच्छा चल रहा है और किस में सुधार की जरूरत है! मेरी बात सुनते हुए पिताजी मुझे गहरी नजरों से देखते और सोचते कि क्या वाकई इस नन्ही बच्ची को एक्टिंग की इतनी समझ है? वे बोलते जरूर कुछ नहीं थे, लेकिन उन्हें मेरी समीक्षा पसंद आती थी। जब किसी खास जगह पर खास नाटक का मंचन होता, तो समीक्षा के लिए मेरी विशेष रूप से डयूटी लगाई जाती थी। पिताजी अक्सर मेरे बारे में कहते थे कि तुम अच्छी एक्ट्रेस हो, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन मैं बहुत अच्छी समीक्षक भी हूं।

दिलीप साहब ने मुझसे जब गंगा जमना' में बाल भूमिका करवाई, तब मेरे काम को देखने के बाद उन्होंने पिताजी से कहा, आपकी बेटी तो कमाल का अभिनय करती है। मेरे लिए वह बहुत बड़ा कॉंप्लिमेंट था।

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