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बिहार चुनाव : ये ताकत ही कहीं कमजोरी न बन जाए

समस्तीपुर से पटना लौटते हुए मैं अपने ड्राइवर संतोष यादव से पूछता हूं कि उसे चुनाव के बारे में क्या लगता है? तत्काल जवाब आता है 'सर, आप दूसरे लोगों से बात कर रहे थे तो हम भी सुन रहे थे.बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था,

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2015 12:40 AM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2015 12:50 AM (IST)
बिहार चुनाव : ये ताकत ही कहीं कमजोरी न बन जाए

आशुतोष झा, पटना: समस्तीपुर से पटना लौटते हुए मैं अपने ड्राइवर संतोष यादव से पूछता हूं कि उसे चुनाव के बारे में क्या लगता है? तत्काल जवाब आता है 'सर, आप दूसरे लोगों से बात कर रहे थे तो हम भी सुन रहे थे.बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था, जंगलराज के बारे में बोल रहा था, जब लालू जी थे तो इनलोगों का मुंह भी नहीं खुलता था..अबकी तो बस तेजस्वी(राघोपुर से चुनाव लड़ रहे लालू प्रसाद के पुत्र) जीत जाए, हमारा सीना चौड़ा हो जाएगा।'

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चुनावी मैदान में यदुवंशियों का आह्वान कर उतरे राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की यही ताकत भी है और कमजोरी भी। इस आशंका को पूरी तरह नहीं नकारा जा सकता है कि संतोष जैसे उत्साहित नौजवान की सार्वजनिक भावना कहीं राजद के लिए उल्टी न पड़ जाए। फारवर्ड के साथ साथ पिछड़ों के लामबंद होने का डर राजद को सताने लगा है।

महागठबंधन के नेताओं को यह डर भी है कि जंगलराज का नारा कहीं और मजबूत न हो जाए। बिहार में यदुवंशियों को लुभाने में कोई पीछे नहीं रहा। राजग ने भी लगभग 30 यादव उम्मीदवार मैदान में उतारे तो महागठबंधन ने पांच दर्जन से ज्यादा। मुलायम सिंह यादव और पप्पू यादव के गठबंधन से भी यादव उम्मीदवारों की भरमार है। कई ऐसी भी सीटें हैं जहां आधा दर्जन से ज्यादा केवल यादव उम्मीदवार ही मैदान में हैं।

जबकि ऐसी सीटों की संख्या भी काफी है जहां आमने सामने के मुकाबले में राजग और महागठबंधन के उम्मीदवार यादव है। खुद लालू प्रसाद के दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप की सीटों पर भी ऐसी ही लड़ाई है। ऐसे में पिछड़ी जातियों के बीच चुप्पी का अर्थ गूढ़ है। इसका अंदाजा पकौली गांव के 70 वर्षीय रामचरितर पासवान के संकेतों से लगाया जा सकता है। एक सवाल के जवाब में वह कहते हैं 'अभी कुछ नहीं बोलेंगे।' फिर सामने स्कूल की बिल्डिंग दिखाते हुए कहते हैं 'यहां एक बार फोर्स आ जाए तो फिर पूरा समाज मिलकर फैसला करेंगे।' उन्हें डर है कि अभी मुंह खोलने का खामियाजा न भुगतना पड़े।

उनके साथ खड़ी उनकी पत्‌नी सरसती कहती हैं 'नीतीश तो बहुत कुछ किए हैं.लेकिन ठीक है चुनाव के वक्त देंखेंगे।'सरसती का बयान बहुत कुछ कहता है। राजद के एक बड़े नेता इस बाबत पूछे गए सवाल पर कहते हैं 'लालू जी बड़े नेता है, लोकप्रिय भी हैं, बहुत दिनों बाद कार्यकर्ताओं में जोश भी दिखा है। लेकिन अतिरेक से हमें डर भी लग रहा है।' ध्यान रहे कि कभी माई समीकरण के साथ साथ पिछड़ी जातियों के भारी समर्थन ने ही लालू को राजनीति के शीर्ष पर पहुंचा दिया था।

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लालू फिर से बैकवर्ड फारवर्ड की बात कर उसी लहर को पैदा करने की कोशिश में भी जुटे हैं। लेकिन खास जाति को लेकर उनके बयानों ने ही अवरोध पैदा कर दिया है। भाजपा नेताओं की रणनीति को भी यह खूब भा रहा है। इतिहास गवाह है कि कभी पिछड़ों के नेता के रूप में जाने जाते रहे लालू जैसे जैसे यादव नेता होते गए, पिछड़ों में उनका जनाधार घटता चला गया था।

शायद यही कारण है कि भाजपा ने जंगलराज का नारा दिया है। समस्तीपुर में राजद के एक कार्यकर्ता का कहना है 'लालू जी तो हमारे नेता हैं ही, उनको बार बार यह याद दिलाने की जरूरत कहां है कि यादवों के लिए यह जीत कितनी जरूरी है। अगर अगर हम यदुवंशी गौरव और सम्मान की बात करेंगे तो डरकर पिछड़े एकजुट होकर दूसरे पाले में जा सकते हैं।'

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