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बिहार चुनावः काम आ रहा अमित शाह का टिकट बांटने का फार्मूला

चुनौती कड़ी हो तो फिर सिपाही की मजबूती पर ही भरोसा होता है। छपरा क्षेत्र में टिकटों के बंटवारे के वक्त प्रत्याशियों को लेकर बरती गई सावधानी कड़ी चुनौती के बीच राजग गठबंधन को अब कुछ सुकून दे रही है। इसी रणनीति के चलते तीसरे चरण के चुनाव में राजद

By Sachin kEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2015 08:27 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2015 08:38 AM (IST)

नितिन प्रधान, एकमा। चुनौती कड़ी हो तो फिर सिपाही की मजबूती पर ही भरोसा होता है। छपरा क्षेत्र में टिकटों के बंटवारे के वक्त प्रत्याशियों को लेकर बरती गई सावधानी कड़ी चुनौती के बीच राजग गठबंधन को अब कुछ सुकून दे रही है। इसी रणनीति के चलते तीसरे चरण के चुनाव में राजद के मजबूत गढ़ में राजग को अब चुनौतियां आसान लगने लगी हैं। छपरा मूलत: लालू प्रसाद यादव का गढ़ माना जाता है। यह उनका संसदीय क्षेत्र रहा है।

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नीतीश कुमार के साथ हाथ मिलाने के बाद महागठबंधन के लिहाज से इस क्षेत्र की सभी 10 सीटों को लालू यादव की प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखा जा रहा है। लालू यहीं से पहली बार 1977 में लोकसभा का चुनाव भी जीते थे। लेकिन, इस बार राजग ने भी उम्मीदवारों के चयन से लेकर जातिगत समीकरण बिठा कर इस मिथक को तोड़ने की पूरी व्यवस्था की है। छपरा की सभी सीटों पर उम्मीदवारों का चयन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति के मुताबिक ही किया गया है। यानी ‘मजबूत’ उम्मीदवार जिसमें जीतने की क्षमता हो। बिहार में उम्मीदवारों के चयन में इसके अतिरिक्त और किसी फैक्टर को महत्व नहीं दिया गया है। छपरा विधानसभा क्षेत्र में ही राजग के चार उम्मीदवार ऐसे हैं जो या तो भाजपा से अलग होकर वापस आए हैं या फिर अन्य पार्टियों से आकर भाजपा में शामिल हुए हैं।

छपरा की 10 सीटों में से अभी तीन भाजपा के पास, तीन राजद के पास तो चार जदयू के खाते में हैं। सबसे दिलचस्प मुकाबला छपरा विधानसभा सीट पर ही है, जिस पर भाजपा ने डा. सीएम गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है। सवर्ण बहुल इस सीट पर पिछले चुनावों में गुप्ता भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़े और दूसरे स्थान पर रहे। लेकिन, इस बार शाह की रणनीति के तहत उन्हें मनाकर पार्टी में लाया गया और छपरा से उम्मीदवार बनाया गया है। यहां से उनका मुकाबला प्रभुनाथ सिंह के बेटे और राजद प्रत्याशी रणधीर सिंह से है।

एक अन्य विधानसभा क्षेत्र मांझी की लड़ाई भी बागी उम्मीदवारों के चलते दिलचस्प हो गई है। यहां से गौतम सिंह स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। ब्राह्मण व राजपूत मतदाताओं वाली इस सीट पर सिंह जदयू के टिकट पर पिछला चुनाव जीते थे। लेकिन, इस बार टिकट कटने पर वो मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी से लड़ रहे हैं।

उधर, राजग गठबंधन में यह सीट लोजपा के खाते में आई है जिसने केशव सिंह को उम्मीदवार बनाया है। महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस के विजय शंकर दुबे चुनाव लड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि लोजपा व कांग्रेस के उम्मीदवारों का मुकाबला गौतम सिंह से ही है। छपरा के एकमा विधानसभा क्षेत्र में पेशे से अध्यापक घनश्याम तिवारी कहते हैं कि नीतीश सरकार में स्कूल तो खुले। बच्चे स्कूल भी गए। लेकिन, उच्च शिक्षा में अभी और सुधार की गुंजाइश है। कई स्कूलों में तो ऊंची कक्षाओं में केवल बच्चों को प्रवेश मिलता है सीधे इम्तेहान होता है।’ साल भर पढ़ाई का कोई इंतजाम नहीं है।

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