बीएचयू खुलने से पहले ही छुट्टी पर गए कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी
बीएचयू सूत्रों के मुताबिक कुलपति डॉ त्रिपाठी ने छुट्टी पर जाने का फैसला सोमवार को अचानक लिया। इसकी जानकारी मंत्रालय सहित विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर और प्राक्टर को दी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विवाद और दबाव में घिरे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कुलपति डॉ गिरीश चंद त्रिपाठी सोमवार को अंतत: छुट्टी पर चले गए। छुट्टी पर जाने के पीछे उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया है। उन्होंने यह कदम हंगामे के चलते पिछले कई दिनों से बंद पड़े बीएचयू कैंपस के खुलने के ठीक एक दिन पहले उठाया है। बीएचयू कैंपस तीन अक्टूबर यानी मंगलवार से फिर खुल रहा है। ऐसे में आशंका जताई जा रही थी, कि कुलपति को हटाने को लेकर छात्र फिर से हंगामा कर सकते है। मंत्रालय भी इस पूरी स्थिति पर नजरें रखे हुए था।
बीएचयू सूत्रों के मुताबिक कुलपति डॉ त्रिपाठी ने छुट्टी पर जाने का फैसला सोमवार को अचानक लिया। इसकी जानकारी मंत्रालय सहित विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर और प्राक्टर को दी है। वैसे भी उन्हें लेकर जिस तरीके से विवाद बढ़ा था, उसे देखते हुए उनके छुट्टी पर जाने की संभावनाएं काफी प्रबल थी। दरअसल केंद्र भी यही चाह रहा था कि ऐसा रास्ता निकले। दैनिक जागरण ने पहले भी लिखा था कि उन्हें छुट्टी पर भेजा जा सकता है। हालांकि औपचारिक रूप से दखल से केंद्र बच रहा था। विवादों के बाद से उनके पास जो विकल्प बच रहे थे, उनमें छुट्टी पर जाना या फिर इस्तीफा देना ही था। इस मामले में कुलपति को ही निर्णय करना है।
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मंत्रालय का मानना था कि उनका सिर्फ दो महीने का ही कार्यकाल बचा है,जो 27 नवम्बर को पूरा हो रहा है। ऐसे में उन्हें हटाने से अच्छा रहेगा, कि वह पद पर बने रहे। क्योंकि बीएचयू विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाने की जो प्रक्रिया है, वह इतनी जटिल है, उनमें दो महीने से ज्यादा का वक्त लग सकता था। बीएचयू को लेकर यह पूरा विवाद एक छात्रा से हुई छेड़छाड़ की घटना से शुरु हुआ था। जिसमें कुलपति पर आरोप था, कि उन्होंने इस मामले को ठीक ढंग से संज्ञान नहीं लिया। इसके चलते ही इस पूरे मामले ने राजनीतिक रंग लिया। इससे ज्यादा गंभीर बात यह थी, कि यह पूरा घटनाक्रम जब हुआ, उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बनारस में मौजूद थे।
फिलहाल किसी सीनियर प्रोफेसर को मिलेगा कुलपति का चार्ज
कुलपति प्रोफेसर त्रिपाठी के छुट्टी पर जाने के बाद विश्वविद्यालय के कुलपति का चार्ज फिलहाल विश्वविद्यालय के ही किसी वरिष्ठ साथी को दिया जा सकता है। जो नए कुलपति के चयन तक जिम्मेदारी संभालेंगे। वहीं अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस नए घटनाक्रम के बाद नए कुलपति के चयन की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। क्योंकि ऐसे हालात में विश्वविद्यालय को ज्यादा दिनों तक अस्थायी कुलपति के भरोसे चलाना ठीक नहीं होगा।