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अटल को 27 व महामना को 30 मार्च को दिए जाएंगे 'भारत रत्‍न'

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 27 मार्च और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को 30 मार्च को भारत रत्‍न पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जाएगा। मालूम हो कि मोदी सरकार ने दोनों को पिछले 25 दिसंबर को यह पुरस्‍कार देने की घोषणा की थी। इस दिन दोनों विभूतियों का जन्‍मदिन

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Wed, 25 Mar 2015 03:55 PM (IST)Updated: Thu, 26 Mar 2015 02:41 AM (IST)
अटल को 27 व महामना को 30 मार्च को दिए जाएंगे 'भारत रत्‍न'

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 27 मार्च और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को 30 मार्च को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। मालूम हो कि मोदी सरकार ने दोनों को पिछले 25 दिसंबर को यह पुरस्कार देने की घोषणा की थी। इस दिन दोनों विभूतियों का जन्मदिन है। महामना और अटल इस पुरस्कार से नवाजे जाने वाले 44वीं व 45वीं हस्ती हैं। वाजपेयी को उनके घर जाकर और महामना के परिजन को राष्ट्रपति भवन में पुरस्कार दिया जाएगा।

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समकालीन नहीं, पर खासी समानता

दोनों ही हस्तियां समकालीन नहीं है, लेकिन कई मामलों में दोनों में खासा साम्य है। महामना का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसी संस्था की स्थापना दान लेकर की थी। उनके इस कदम से भारत ने शिक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ी छलांग लगाई थी। स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् व विधिवेत्ता होने के साथ वह दो बार कांग्रेस अध्यक्ष रहे। उन्होंने हिंदी में अदालतों में कामकाज की लड़ाई अंग्रेजों के शासन में पहली बार लड़ी। उन्होंने दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने से लेकर वंचित तबकों के उत्थान के लिए भगीरथी प्रयास किए।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहली बार हिंदी का परचम फहराया। करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि के रूप में विख्यात अटल ने बतौर विदेश मंत्री 1977 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में उद्बोधन दिया था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी पहले जनसंघ फिर भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष रहे। तीन बार प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी का समय तेज आर्थिक विकास दर और विश्व स्तर पर भारत की साख बढ़ाने के लिहाज से अहम माना जाता है। वह पहले प्रधानमंत्री थे, जिनका कभी कांग्रेस से नाता नहीं रहा। वह संघ के स्वयंसेवक होकर भी धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी चेहरा रहे, बल्कि उनकी लोकप्रियता दलगत सीमाओं से ऊपर ही रही।

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