बारिश की बूंदें सहेजने से बुझी धरती की प्यास
अंबर से बरसने वाली पानी की बूंदों को बर्बाद होते देख सीमा सुरक्षा बल से कमांडेंट पद से सेवानिवृत्त बलजीत त्यागी ने उसे सहेजने का फैसला किया। वाटर हार्वेस्टिंग का उनका फैसला रंग लाया। जिस जगह जलस्तर काफी नीचे होने के कारण पहले फल के पेड़ नहीं उगते थे, वहां
नई दिल्ली। अंबर से बरसने वाली पानी की बूंदों को बर्बाद होते देख सीमा सुरक्षा बल से कमांडेंट पद से सेवानिवृत्त बलजीत त्यागी ने उसे सहेजने का फैसला किया। वाटर हार्वेस्टिंग का उनका फैसला रंग लाया। जिस जगह जलस्तर काफी नीचे होने के कारण पहले फल के पेड़ नहीं उगते थे, वहां अब पानी की कमी की समस्या दूर हो गई है। त्यागी के प्रयासों से अब बंजर जमीन पर भी फलों की कई किस्में उगने लगीं।
बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए अपने फार्म पर लगाए गए वाटर हार्वेस्टिंग से जुड़े उनके अनुभव का फायदा अब न सिर्फ कभी बंजर पड़ चुके खेतों को मिल रहा है, बल्कि जमीन के नीचे के पानी की गुणवत्ता भी सुधर रही है। वर्ष-1992 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने खेती बाड़ी में करने का फैसला किया। नजफगढ़ के पास झटीकरा मोड़ के पास अपनी ढाई एकड़ जमीन में उन्होंने बाग लगाने के बारे में सोचा, लेकिन पानी की गुणवत्ता सही नहीं होने के कारण उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकी। अंत में उन्होंने राजस्थान जैसे सूखे इलाके में तैनाती के दौरान सीखे अनुभव का यहां इस्तेमाल किया। बारिश के मौसम में खेत से पानी बह कर नाले में चला जाता था।
उन्होंने खेत से पानी के बाहर निकास को रोकने के लिए चारों तरफ ऊंचे मेड़ लगाए। इसके बाद उन्होंने सवा लाख लीटर क्षमता का टैंक बनाया। इस टैंक को मेड़ से सटे क्षेत्र से गुजर रहे नालियों से जोड़ दिया गया। नालियों में जगह-जगह जालियां लगी थीं, ताकि पानी छनता रहे और गंदगी टैंक तक न पहुंचे। टैंक पूरी तरह भरने के बाद अब पानी रखने की समस्या आ गई। तब उन्होंने पानी को जमीन में रीचार्ज करने का फैसला किया। मुख्य टैंक के ऊपरी हिस्से से एक बड़ी पाइप निकाली गई, जो जमीन की ओर नीचे जाती थी। इस पाइप को जगह-जगह बने कच्चे भूमिगत गड्ढों से जोड़ दिया गया। त्यागी बताते हैं कि इसके नतीजे आश्चर्यजनक रहे। पहले यहां जमीन के नीचे खारा पानी मिलता था। अब पानी की गुणवत्ता इतनी अच्छी हो गई है कि यह बाग के पौधों की सिंचाई के लिए पूरी तरह अनुकूल था। पानी के खारापन की समस्या दूर हो गई।
इसके अलावा जून-जुलाई में जब पानी की कमी होती है तब टैंक के पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है। अब इनके बाग में मीठे फलों की कई किस्मों के पेड़ शोभा बढ़ रहे हैं। इनमें आम, लीची, अमरूद, बेर व जामुन सहित कई फल शामिल हैं। त्यागी बताते हैं कि बारिश के पानी से जब धरती की प्यास बुझी तब जमीन भी सोना उगलने लगी। वर्ष-2006 में अपने फार्म हाउस पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के विकास के लिए बलजीत सिंह त्यागी को दिल्ली जल बोर्ड ने एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया।