अब भी नहीं चेते तो सिंधुघाटी की तरह हमारा भी होगा दुखद अंत
पानी हमारे जीवन की एकमात्र अहम चीज है। बिना खाना खाए अधिक दिनों तक रहा जा सकता है लेकिन पानी के बिना ज्यादा लंबे समय तक नहीं जिया जा सकता है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। दुनिया के क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से भरा हुआ है, परंतु पीने योग्य मीठा जल मात्र 3 प्रतिशत है, शेष भाग खारा जल है। इसमें से भी मात्र एक प्रतिशत मीठे जल का ही वास्तव में हम उपयोग कर पाते हैं। यह सुनने में बेहद चौंकाने वाला है। आजादी के बाद भारत ने भले ही वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति की है, हम अपने अंतरिक्ष प्रोग्राम के चलते दुनिया में डंका बजाने में सफल हो गए हैं लेकिन एक दुखद सच यह भी है कि हम आज भी सभी पीने के लिए साफ पानी की व्यवस्था करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। इससे भी बड़ा सच यह है कि हमारे देश में आज कई बीमारियों का एकमात्र कारण प्रदूषित जल है।
बिन खाए रह सकते हैं लेकिन बिना पानी नहीं
इस सच को कोई नहीं झुठला सकता है कि इंसान बिना खाना खाए तो रह सकता है लेकिन यदि उसको पानी न मिले तो उसकी मौत जल्द हो जाती है। लिहाजा इंसान के लिए पानी हर हाल में जरूरी है। यह पानी ही था जिसकी वजह से एक सभ्यता पूरी तरह से विलुप्त हो गई और जिसका जिक्र हमारी और दुनिया भर की किताबों में महज चर्चा करने और पढ़ने के लिए किया जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं सिंधु घाटी की सभ्यता की, जेा अपने चरम पर पहुंचने के बाद विलुप्त हो गई। 2900 से चार हजार साल के बीच इस सभ्यता के समाप्त होने का बड़ा कारण बेहद कमजोर मानसून था। इसकी वजह साधारण शब्दों में आप पानी की कमी को कह सकते हैं। भारत की ही यदि बात करें तो 2025 तक भारत में भयंकर जल संकट वाला देश बन जाएगा। इसका अर्थ है कि भारत में लोग पानी-पानी को मोहताज हो जाएंगे।
खतरनाक स्तर तक नीचे चला जाएगा पानी
जानकारी के मुताबिक अगले कुछ वर्षों में ही भारत पानी खतरनाक स्तर तक नीचे चला जाएगा जबकि पानी की मांग बढ़कर 1050 बिलियन क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाएगी। वहीं औद्योगिक क्षेत्र में इसकी मांग में करीब 8 फीसद की तेजी दिखाई देगी। यहां पर एक बात और ध्यान देने वाली है। वह यह है कि भारत में सबसे अधिक ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं एक चौंकाने वाली बात यह है कि यह तेजी से नीचे जा रहा है। इसमें एक दूसरा चौंकाने वाला तथ्य यह है कि यह करीब 251 क्यूबिक किमी की रफ्तार से नीचे जा रहा है। 2025 तक औद्योगिक क्षेत्र से निकलने वाला गंदा पानी बढ़कर 830000 मिलियन लीटर प्रतिदिन तक हो जाएगा। आने वाले वर्षों में पानी की कमी का सीधा असर न सिर्फ उद्योगों पर दिखाई देगा बल्कि इंसानों पर भी दिखाई देगा।
भयंकर सूखा
वैज्ञानिकों के दावे को सच मानें तो उस दौर में करीब 1100 साल की अवधि में ऐसा सूखा पड़ा कि लोगों का जीवनयापन मुश्किल हो गया, क्योंकि तब तक कृषि और पशुपालन जीवनयापन का जरिया बन चुका था। सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान पड़े भयंकर सूखे का खुलासा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के शोध में किया गया है। संस्थान में बुधवार को आयोजित नेशनल जियो-रिसर्च स्कॉलर्स मीट में संस्थान के निदेशक प्रो. एके गुप्ता ने इस शोध का प्रस्तुतीकरण किया। शोध में होलोसीन अवधि (आज से 10 हजार पहले तक) में मानसून की स्थिति का पता लगाया गया। इसके लिए वैज्ञानिकों ने लद्दाख स्थित सोमोरिरि झील की सतह पर पांच मीटर ड्रिल किया और 2000 सैंपल लिए गए। सबसे पहले कार्बन डेटिंग से अवसाद की उम्र निकाली गई और फिर देखा कि अवसाद में चिकनी मिट्टी अधिक है या बालू। पता चला कि आज से 4000 से 2900 साल पहले की अवधि के अवसाद में चिकनी मिट्टी की मात्र अधिक है। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि उस समय मानसून जबरदस्त था। इस अवधि में अस्तित्व में रहे काल को रामायणकाल के नाम से भी जाना जाता है।
2070 साल पहले फिर मजबूत हुआ मानसून
नेशनल जियो-रिसर्च स्कॉलर्स मीट में प्रस्तुत एक अन्य शोध में बताया गया कि देश के मानसून ने आज से 2070 साल पहले से लेकर 1510 साल के बीच की अवधि में फिर जोर पकड़ा। यह बात हिमाचल प्रदेश के मंडी में स्थित रिवालसर झील के अवसाद के अध्ययन में पता चली। संस्थान की शोधार्थी श्वेता सिंह के मुताबिक, अवसाद के अध्ययन के लिए झील में 15 मीटर की गहराई में ड्रिल किया गया और 1500 सैंपल एकत्रित किए गए। इससे अवसाद की अवधि पता लगाने के साथ ही यह बात सामने आई कि अवसाद में बालू की मात्र अधिक पाई गई। यानी इस अवधि में मानसून मजबूत स्थिति में था।
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लगातार घटता जलस्तर
भारत की बात करें तो भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2014 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर 2013 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था। आयोग के अनुसार देश के 12 राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई. आयोग की तरफ से ये भी बताया गया कि 2013 में इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वो तब ही काफी कम था। लेकिन, 2014 में वो गिरकर और कम हो गया. 2015 में भी लगभग यही स्थिति रही। गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के 85 प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है।
भूमिगत जल बड़ा स्रोत
देश की सिंचाई का करीब 70 फीसदी और घरेलू जल खपत का 80 फीसदी हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। जिस तरह भारत में भूजल का दोहन हो रहा है भविष्य में स्थितियाँ काफी खतरनाक हो सकती हैं। वर्तमान समय में 29 फीसद विकास खण्ड या तो भूजल के दयनीय स्तर पर हैं या चिंतनीय हैं और कुछ आंकड़ों के अनुसार 2025 तक लगभग 60 फीसद ब्लाक चिंतनीय स्थिति में आ जायेंगे।
बारिश की कमी की वजह कहना गलत जल संकट का एकमात्र कारण यह नहीं है कि वर्षा की मात्रा निरंतर कम होती जा रही है। इजराइल जैसे देशों में जहां बारिश का औसत 25 से.मी. से भी कम है, वहां भी जीवन चल रहा है, लेकिन वहां पर पानी की हर बूंद को कीमती मानकर उसको बचाया जाता है। जल प्रबंधन तकनीक में इजरायल जैसे कई देशों ने काफी विकास किया है।
भारत में पानी का मोल कुछ नहीं
वहीं भारत की यदि बात करें तो यहां पर पानी का मोल कुछ नहीं समझा जाता है। यही वजह है कि हमारे यहां पर महज 15 प्रतिशत जल का उपयोग होता है, शेष पानी बेकार हो जाता है। शहरों एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों के जल को प्रदूषित करके पीने योग्य नहीं रहने देते। प्रति व्यक्ति मीठे जल की उपलब्धि जो सन् 1994 में 6000 घन मीटर थी, घटकर सन् 2000 में मात्र 2300 घन मीटर रह गई है। जनसंख्या की वृद्धि दर और जल की बढ़ती खपत को देखते हुए यह आंकड़ा सन् 2025 तक मात्र 1600 घन मीटर हो जाने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्था ने अनुमान लगाया है कि अगले 29 वर्षों में ही भारत में जल की मांग 50 प्रतिशत बढ़ जाएगी।
बचानी होगी पानी की हर बूंद
हमारे देश की औसत वर्षा 1170 मि.मी. है जो विश्व के समृद्धशाली भाग पश्चिमी अमेरिका की औसत वर्षा से 6 गुना ज्यादा है। बारिश के पानी को जितना ज्यादा हम जमीन के भीतर जाने देकर भूजल संग्रहण करेंगे उतना ही हम जल संकट को दूर रखेंगे और मृदा अपरदन रोकते हुए देश को सूखे और अकाल से बचा सकेंगे। लिहाजा जरूरत है कि हम बारिश के पानी की हर बूंद को बचाकर उसको सुरक्षित रखें। एक आँकड़े के अनुसार यदि हम अपने देश के जमीनी क्षेत्रफल में से मात्र 5 प्रतिशत में ही गिरने वाले वर्षा के जल का संग्रहण कर सके तो एक बिलियन लोगों को 100 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिल सकता है। वर्तमान में वर्षा का 85 प्रतिशत जल बरसाती नदियों के रास्ते समुद्र में बह जाता है। इससे निचले इलाकों में बाढ़ आ जाती है। यदि इस जल को भू-गर्भ की टंकी में डाल दिए जाए तो दो तरफा लाभ होगा। एक तो बाढ़ का समाधान होगा, दूसरी तरफ भूजल स्तर बढ़ेगा। अतः जल संग्रहण के लिए ठोस नीति एंव कदम की आवश्यकता है।
सीधेतौर पर सरकार की जिम्मेदारी
भारत में पानी बचाने को लेकर वर्षों से काम कर रहे डॉक्टर राजेंद्र सिंह का मानना है कि पानी को लेकर पहली जिम्मेदारी सीधेतौर पर सरकार की है। सरकार का काम है कि वह अपनी जनता को साफ पीने का पानी मुहैया करवाए जिसमें वह विफल रही है। दूसरी कमी है हमारा समाज जो पानी के संचयन को लेकर बिल्कुल भी जागरुक नहीं है। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि इसके प्रति लोगों को जागरुक बनाने के लिए जल साक्षरता अभियान चलाए और लोगों को बताए कि यदि हमनें पानी को नहीं बचाया तो हमारी आने वाली नस्ल बिन पानी के मर जाएगी। वाटरमैन के नाम से मश्हूर डॉ सिंह कु मुताबिक किसी भी सरकार ने लोगों को पानी को लेकर कभी जागरुक नहीं बनाया। हमेशा ही पानी पर सियासत होती रही है।
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कई कानून बनाए गए
पानी को लेकर कई कानून बनाए गए लेकिन उनको कभी सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका। पानी के संचयन की तरफ न सरकारों ने न ही समाज ने कभी ध्यान नहीं दिया है। यही वजह है कि यदि हम नहीं बदले तो आने वाला समय हमारे लिए काफी बुरा होगा। सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए उनका कहना था कि मौजूदा समय में देश में 70 फीसद पानी बेकार चला जाता है, लेकिन हम इसको बचा सकें ऐसा कुछ नहीं होता है। हाल के कुछ वर्षों में करीब 10 गुणा अधिक सूखे के क्षेत्र बढ़ गए हैं और 8 फीसद वह क्षेत्र बढ़ गए हैं जहां पर बाढ़ आती है। वह यह भी मानते हैं कि मौजूदा समय में ही पानी का लेवल काफी नीचे और खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है इसलिए 2025 की बात करनी बेमानी है।
पानी का शोषण नहीं बचाना सीखना होगा
यह केवल इसलिए की जाती है कि हम 2025 तक कितनी गहराई से पानी को निकाल पाएंगे। इसकी कोशिश आज भी नहीं की जा रही है कि पानी को हम बचाएं ताकि आने वाली पीढ़ी को हम इस धरोहर को सौंप सकें। राजस्थान में किए गए प्रयासों की बदौलत जहां पर बादल हमेशा धोखा देते थे वहां पर भी बारिश होने लगी है। इससे बड़ी बात यह है कि वहां की सात सूखी नदियां आज पानी से लबालब हैं। इसके लिए हम सभी को सीखना होगा और सरकार के साथ समाज को मिलकर चलना होगा।
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