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विफल हुई कृत्रिम वर्षा की पहली कोशिश

सूखे और कम बारिश का कहर झेल रहे महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में राहत पहुंचाने के लिए सोमवार को कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश की गई। हालांकि यह प्रयास विफल रहा। सोमवार की सुबह नासिक जिले की येवला तहसील में कृत्रिम वर्षा की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसके अंतर्गत

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2015 04:25 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2015 08:29 PM (IST)

पुणे। सूखे और कम बारिश का कहर झेल रहे महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में राहत पहुंचाने के लिए सोमवार को कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश की गई। हालांकि यह प्रयास विफल रहा। सोमवार की सुबह नासिक जिले की येवला तहसील में कृत्रिम वर्षा की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसके अंतर्गत ड्राय आइस से भरे कुल पांच रॉकेट छोड़े गए। इनमें से तीन विफल हो गए। दो रॉकेट सफल जरूर रहे, लेकिन इसके बाद भी जब दोपहर 12 बजे तक बारिश नहीं हुई तो एडमिनिस्ट्रेशन ने मान लिया कि यह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई।

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नासिक और औरंगाबाद में कोशिश

बता दें कि कृत्रिम वर्षा की कोशिश करने वाला महाराष्ट्र देश का पहला राज्य है। यहां विदर्भ और नॉर्थ महाराष्ट्र में किसान सूखे के कारण खुदकुशी कर चुके हैं। नासिक के साथ ही औरंगाबाद में भी कृत्रिम बारिश के लिए 4 किंग एयरबी 200 प्लेन मंगाए गए हैं। इनके अलावा, क्लाउड एनालिसिस के लिए सी बैंड डॉप्लर रडार भी अमेरिका से मंगलवार को यहां पहुंच जाएगा। जिन रॉकेट्स को हवा में छोड़ा गया, उनमें ड्राय आइस था। यह ड्राय आइस वातावरण में घुलकर क्लाउड सीडिंग करता है। औरंगाबाद के कमिश्नर डॉक्टर उमाकांत दांगट के मुताबिक, औरंगाबाद में कृत्रिम वर्षा के लिए कोशिश मंगलवार को की जाएगी। डॉप्लर रडार का वजन 1500 किलोग्राम है। इसे कमिश्नर ऑफिस की छत पर इन्स्टॉल किया जाएगा और यहीं इसका कंट्रोल रूम भी बनाया जाने वाला है। कृत्रिम बारिश के लिए विदेशी कंपनियों को हायर किया गया है। चीन में इसी तरह से बारिश कराई जाती रही है। कृत्रिम बारिश में 50 से ज्यादा देश कामयाबी हासिल कर चुके हैं। 1946 में यह तकनीक सामने आई थी।

कैसे होती है क्लाउड सीडिंग से बारिश

क्लाउड सीडिंग के लिए एयरक्राफ्ट से सिल्वर आयोडीन जिसे ड्राय आइस भी कहा जाता है को बादलों के बीच स्प्रे किया जाता है। ये सिल्वर आयोडीन बादलों में मौजूद पानी की बूंदों को अपनी ओर खींचती है। बादलों में पानी की जो बूंदें मौजूद रहती हैं, सिल्वर आयोडीन के संपर्क में आने के बाद बड़ी बूंदों में बदल जाती है। बाद में यही बूंदे बारिश के रूप में जमीन पर गिरती हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल काफी पहले से किया जाता रहा है, लेकिन इसे कभी भी शत प्रतिशत सफलता नहीं मिली।

कृत्रिम बारिश के लिए रॉकेट और विमानों का उपयोग किया जाता है। रॉकेट की मदद से जहां 20 किलोमीटर के परिसर में कृत्रिम बारिश हो सकती है। वहीं, विमान के जरिए 200 से लेकर 300 किलोमीटर परिसर में बारिश कराई जा सकती है।

[साभार: आइनेक्स्ट]


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