'हथियारों की खरीद में देरी और कमी का सामना कर रही है भारतीय सेना'
कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सेना इस समय कई सामान्य हथियारों की कमी से जूझ रही है।
नई दिल्ली। कई मौजूदा व सेवानिवृत्त अधिकारियों तथा रक्षा विशेषज्ञों ने एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए कहा है कि युद्ध के लिए भारत की तैयारी जरूरत से कम है और सरकार को अपनी पाकिस्तान नीति पर ध्यान देने की जरुरत है।
विशेषज्ञ मानते हैं सेना को विमान भेदी वाली उच्च मिसाइल प्रणाली के साथ-साथ असॉल्ट राइफल, कार्बाइन और आर्टिलरी बंदूक जैसे सामान्य हथियारों की आवश्यकता है। इन्हें खरीदने की प्रक्रिया में काफी देरी हो रही है। रक्षा मंत्रालय सेना के आधुनिकीकरण के लिए निर्धारित बजट को पूरा खर्च करने में कामयाब नहीं रहा है। इसी कारण 2016-17 के बजट में बजट आवंटन में कमी की गयी।
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इन अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार, पर्याप्त मात्रा में गोला बारूद की आपूर्ति नहीं होना भी चिंता का विषय है। सेना के सूत्र बताते हैं कि मौजूदा स्तर पर हो रही आपूर्ति से सेना कुछ दिनों तक ही दुश्मन का सामना कर सकती है। नए आदेश जारी कर दिए गए हैं लेकिन भारत को इसके लिए बेहतर स्थिति में होना चाहिए था।
विशेषज्ञ मानते हैं कि विगत दो वर्षों के दौरान स्थिति में ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिला है। सरकार द्वारा अधिग्रहण प्रणाली को बेहतर बनाने की कोशिशें कुछ खास असर नहीं दिखा पा रहीं है। कई वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि वेतन और पेंशन को लेकर सरकार के साथ मतभेद की वजह से सेना के मनोबल पर असर पड़ रहा है जो शीर्ष स्तर पर भी नजर आ रही है।
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15 सितंबर को लेंफ्टिनेंट जनरल सुरिंदर सिंह को आर्मी कंमाडर नियुक्त किये जाने से पहले पश्चिमी सेना कमान 10 हफ्ते से भी ज्यादा समय तक बिना किसी प्रमुख के काम कर रही थी। यह पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से सटे सीमा की निगरानी करने वाली इस महत्वपूर्ण कंमान के लिए एक खराब स्थिति थी।