लांसनायक हनुमनथप्पा की हालत नाजुक, अगले 48 घंटे संवेदनशील
कल्पना कीजिए ऐसी स्थिति की जब पति के कोमा की हालत में अस्पताल में भर्ती होने की खबर सुन कर भी कोई खुशी से खिलखिला उठे। लेकिन जब पांच दिन बाद वह मौत का कफन चीर कर बाहर निकल आया हो तो इस प्रतिक्रिया पर हैरान नहीं हुआ जा सकता।
नई दिल्ली, थामुकेश केजरीवाल। कल्पना कीजिए ऐसी स्थिति की जब पति के कोमा की हालत में अस्पताल में भर्ती होने की खबर सुन कर भी कोई खुशी से खिलखिला उठे। लेकिन जब पांच दिन बाद वह मौत का कफन चीर कर बाहर निकल आया हो तो इस प्रतिक्रिया पर हैरान नहीं हुआ जा सकता।
सियाचीन में कुदरत के खौफनाक कहर से अपने सिपाही की जिंदगी को जीत लाने के लिए भारतीय सेना ने जैसा आपरेशन चलाया उसे जान कर आप गर्व कर सकेंगे।दुनिया की सबसे ऊंचे रणक्षेत्र में अगर हमारे मुल्क ने अपने जांबाजों को तैनात किया है तो उनकी सलामती के लिए भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई।
बचाव आपरेशन में शामिल रहे अधिकारी बताते हैं कि यहां सिर्फ बचाव की ही नहीं खुद को बचाने की भी उतनी ही बड़ी चुनौती थी। इस आपरेशन में बेहद प्रशिक्षित डेढ़ सौ सैन्य कर्मियों के लिए उस जगह की पहचान करना भी असंभव लग रहा था, जहां मद्रास रेजिमेंट की 19वीं बटालियन के दस फौजी तीन फरवरी तक दुश्मनों से देश की हिफाजत करने को तैनात थे।
चारों और फैली सख्त बर्फ के बीच अपने साथियों को आखिरकार आधुनिकतम राडार और खोजी कुत्तों की मदद से ही ढूंढ़ा जा सका। अधिकारी बताते हैं कि हममें से किसी ने भी एक पल के लिए भी यह नहीं माना था कि हमारे साथी अब हमारे बीच नहीं हैं। पहले चरण में तीन संभावित जगहों की पहचान की गई। मोटराइज्ड आइस कटर मशीनों से बेहद संभल कर बर्फ काटी जा रही थी।
साथियों की पहचान के लिए डॉट और मीशा नाम के खोजी कुत्तों की लगातार मदद ली जा रही थी। आखिरकार सोमवार दोपहर 20 हजार फीट की ऊंचाई पर शून्य से 40 डिग्री तक नीचे के तापमान पर 35 फीट मोटा बर्फ का कफन चीर कर अपने जांबाज साथी लांस नायक हनुमंतप्पा को बचाने में इन्हें कामयाबी मिल ही गई।
पांच दिन से जिंदगी की जंग लड़ते हुए निर्जीव से हो गए फौजी की मदद के लिए डाक्टरी टीम भी वहां पहले से मौजूद थी। तुरंत उसकी नसों के जरिए शरीर में गर्म फ्लूड पहुंचाया गया। ह्यूमिडिफाइड गर्म आक्सीजन दिया गया। अगली सुबह उसे हैलीकाप्टर के जरिए बेस कैंप तक पहुंचाया गया।
थोइस एयर बेस पर पहले से तैयार सेना के विशेष विमान के जरिए उसे तुरंत दिल्ली हवाई अड्डे तक पहुंचाया गया। दुनिया के इस सबसे ऊंचे रणक्षेत्र में वर्ष 1984 से ही भारतीय सेना लगातार तैनात है। लेकिन यहां की तैनाती इंसान की सेहत के लिए इतनी खतरनाक है कि यहां किसी भी सैन्य कर्मी को तीन महीने से ज्यादा तैनात नहीं किया जाता। सबसे ऊंची चोटियों पर तो एक व्यक्ति को एक महीने से ज्यादा नहीं रखा जाता।
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