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शाह का संदेश: पार्टी लक्ष्य से कोई बड़ा नहीं, कर्नाटक में खेमेबाजी पर सख्त कार्रवाई

अमित शाह ने यह हमेशा के लिए साफ कर दिया है कोई कितना भी ताकतवर हो पार्टी लक्ष्य के आड़े आना बर्दाश्त नहीं होगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 01 May 2017 01:05 AM (IST)Updated: Mon, 01 May 2017 01:05 AM (IST)
शाह का संदेश: पार्टी लक्ष्य से कोई बड़ा नहीं, कर्नाटक में खेमेबाजी पर सख्त कार्रवाई
शाह का संदेश: पार्टी लक्ष्य से कोई बड़ा नहीं, कर्नाटक में खेमेबाजी पर सख्त कार्रवाई

नई दिल्ली (आशुतोष झा)। भाजपा में अगर किसी को अभी भी यह गुमान हो कि खेमेबाजी कर और दबाव बनाकर वह अपने हित साध सकता है तो कर्नाटक उसके लिए चेतावनी है। भाजपा को 'स्वर्णिम काल' तक पहुँचाने के लिए हर किसी की भूमिका तय है और उसमें बदलाव का हक केवल नेतृत्व का है। कोई कितना भी ताकतवर हो , पार्टी लक्ष्य के आड़े आना बर्दाश्त नहीं होगा। पिछले दिनों तेज आपसी कलह से जूझ रहे कर्नाटक में संगठन महासचिव बी एल संतोष और मुख्यमंत्री चेहरा बी एस येदियुरप्पा के लोगों पर एक साथ एक्शन लेकर अमित शाह ने यह हमेशा के लिए साफ कर दिया है। यह संदेश इसलिए भी जरूरी था क्योंकि हिमाचल समेत कई अन्य राज्यों में ऐसे नेताओं की भरमार है जो महत्वाकांक्षी हैं।

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अगले एक साल में गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव है। लेकिन शाह इसे केवल राज्यों के हिसाब से नहीं बल्कि 2019 लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखते है। यही कारण है शनिवार की रात बैंगलुरू में लिए गए फैसले को पूरे देश मे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए संदेश माना जा रहा है। पार्टी में देर रात लिए गए फैसले में भानुप्रकाश प्रकाश और निर्मल सुराना से प्रदेश उपाध्यक्ष समेत पार्टी की सभी जिम्मेदारी ले लीं। वही किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष एम पी रेणुकाचार्य और प्रवक्ता पैनल में शामिल जी मधुसूदन की भी सभी जिम्मेदारी छीन ली। ध्यान रहे कि भानुप्रकाश और सुराणा संगठन और आरएसएस में ताकतवर माने जाने वाले संगठन महासचिव बी एल संतोष के खास है। बल्कि उन्हें यह जिम्मेदारी ही संतोष के कहने पर मिली थी। जबकि संतोष पर खुद येदियुरप्पा खेमेबाजी का आरोप लगा चुके हैं।

पार्टी नेता के इस ईश्र्वरप्पा के साथ सुराणा भी येद्दियुरप्पा के खिलाफ खुलकर बयानबाजी करने वालों में शामिल रहे हैं। जबकि शाह येदियुरप्पा को प्रदेश अध्यक्ष और सी एम फेस घोषित कर चुके हैं। ध्यान रहे कि भाजपा को दक्षिण भारत में प्रवेश दिलाने वाले येदियुरप्पा ही रहे हैं और उनके प्रभाव को देखते हुए ही शाह ने फिर से उनपर ही दांव खेल है। हालांकि यह भी स्पष्ट है कि दूसरे राज्यों की तरह कर्नाटक में भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को भुनाया जाएगा लेकिन फेस येदियुरप्पा ही होंगे। यही कारण है कि शाह ने उनके विरोधियों को पूरी तरह हाशिए पर खड़ा कर दिया है।

पर दूसरा संदेश भी अहम है। व्यक्ति कितना भी अहम हो, उसकी मनमानी भी नहीं चलेगी। यही कारण है कि येदयुरप्पा के पक्ष में बोलने वाले रेणुकाचार्य और मधुसूदन को भी रास्ता दिखा दिया गया। वैसे येदियुरप्पा के नजदीकियों का मानना है फिर इन दोनों नेताओं पर कारवाई खुद उनके भले के लिए है। वैसे भी भानु प्रकाश और सुराणा के लिहाज से इन दोनों नेताओं का कद काफी छोटा था। पर येदियुरप्पा को भी इतना तो बता ही दिया गया है की पहले पार्टी है फिर कोई नेता।

ध्यान रहे कि कुछ दिनों पहले ही शाह ने कहा था कि भाजपा का स्वर्णिम काल तब आएगा जब पंचायत से लेकर संसद तक हर जगह पार्टी सत्ता में होगी या फिर अहम मजूदगी होगी। दक्षिणी और कोरोमंडल राज्यों पर शाह की नजर है तो कर्नाटक का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह अकेला ऐसा बड़ा राज्य है जहां अभी भी कांग्रेस की बची हुई है।


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