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कोर्ट का आदेश लागू करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए : केंद्र सरकार

सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) मामले में केंद्र सरकार बहुत सावधानी बरत रही है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 21 Jan 2017 04:54 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jan 2017 06:29 AM (IST)
कोर्ट का आदेश लागू करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए : केंद्र सरकार
कोर्ट का आदेश लागू करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए : केंद्र सरकार

माला दीक्षित, नई दिल्ली। पंजाब के आगामी चुनाव और दूसरी और कोर्ट के टेढ़े रुख को देखते हुए सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) मामले में केंद्र सरकार बहुत सावधानी बरत रही है। दो दिन पहले सरकार ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में कहा था कि पंजाब का अन्य राज्यों के साथ जल बंटवारा समझौता रद करने का कानून अभी निरस्त नहीं हुआ है और उसके लागू रहने तक कोर्ट की डिक्री निष्प्रभावी है।

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लेकिन जब कोर्ट ने उसी दिन अपना सख्त रुख दिखाते हुए कह दिया कि उसके आदेश को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट का आदेश लागू होना चाहिए। तो इसका असर यह हुआ कि केंद्र सरकार ने आदेश लागू करने के बारे में अपनी सफाई पेश करते हुए शुक्रवार को हलफनामा दाखिल कर कहा कि एसवाईएल निर्माण का कोर्ट का आदेश लागू करने के लिए केंद्र ने सभी जरूरी कदम उठाए। इस मामले में कोर्ट 15 फरवरी को सुनवाई करेगा।

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केंद्र सरकार ने यह हलफनामा एसवाईएल निर्माण का आदेश लागू कराने की हरियाणा की अर्जी के जवाब में दिया है। इसमें केन्द्र ने एसवाईएल से जुड़ी पूरे कानूनी सफर का ब्योरा दिया है।सरकार ने कहा है कि 1996 में हरियाणा ने सुप्रीमकोर्ट में मुकदमा दाखिल कर जल बंटवारे का 24 मार्च 1976, 31 दिसंबर 1981 और 24 जुलाई 1985 के समझौते लागू कराने की मांगी की। इस पर कोर्ट ने 15 जनवरी 2002 को फैसला सुनाया और एसवाईएल नहर के निर्माण का आदेश दिया।

फैसले में कोर्ट ने कहा कि अगर पंजाब एक साल के भीतर नहर का निर्माण नहीं करता तो केंद्र उसे पूरा कराए। इस फैसले के बाद केन्द्र ने पंजाब को पत्र लिख कर एसवाईएल के निर्माण कार्य का ब्योरा मांगा, लेकिन पंजाब ने जवाब में कहा कि उसने सुप्रीमकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है उसका फैसला आने के बाद ही आगे की कार्रवाई तय होगी। केंद्र ने कहा है कि जब पंजाब की ओर जानकारी नहीं दी गई तो केंद्र ने एसवाईएल को पूरा करने के लिए खुद एक्शन प्लान तैयार किया। इसमें दो साल का समय और 250 करोड़ का खर्च अनुमानित किया गया।

इस बीच हरियाणा सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में एक नई अर्जी दाखिल की और कोर्ट से 15 जनवरी 2002 का आदेश लागू करने की मांग की। उसमें हरियाणा ने कहा कि एक साल बीत चुका है इसलिए नहर का निर्माण केंद्र सरकार पूरा करे। तभी 2003 में पंजाब ने नया मुकदमा दाखिल कर दायित्व से मुक्त करने की मांग की। सभी मामलों पर एक साथ कोर्ट ने 4 जून 2004 को फैसला सुनाया और केंद्र सरकार से केन्द्रीय एजेंसियों के जरिये निर्माण पूरा करने को कहा।

केन्द्र ने कहा है कि इसके बाद उसने सेंट्रल पब्लिक व‌र्क्स विभाग को काम के लिए नामित किया और एक उच्च स्तरीय समिति गठित की। फिर केंद्र ने पंजाब सरकार से काम केन्द्रीय एजेंसी को सौंपने को कहा। पंजाब ने कहा मीटिंग करेंगे और तभी 12 जुलाई 2004 को पंजाब ने राज्यों के साथ जल समझौते रद करने का कानून पास कर दिया।

कानून पास करने के बाद पंजाब ने कहा कि नये कानून के बाद पंजाब पर जल बंटवारे समझौते मानने की कोई जिम्मेदारी नहीं रह गयी है। केन्द्र का कहना है कि तीन दिन बाद ही 15 जुलाई 2004 को उसने सुप्रीमकोर्ट में अर्जी देकर पूरी बात सामने रखी थी। तभी राष्ट्रपति ने पंजाब के कानून पर रिफरेंस भेज कर सुप्रीमकोर्ट से राय मांगी और सुप्रीमकोर्ट ने गत 10 नवंबर को राष्ट्रपति को दी गई राय में कहा कि पंजाब को एकतरफा कानून बना कर राज्यों के साथ किये गये समझौते रद करने का अधिकार नहीं है।

सरकार ने कहा है कि इन परिस्थितियों से साबित होता है कि केंन्द्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट का आदेश लागू करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए थे।केंद्र का जवाब दाखिल हो गया है अब पंजाब का जवाब आना बाकी है।

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