अजीत सिंह ने अब सपा की ओर हाथ बढ़ाया, गठबंधन के अासार
समाजवादी पार्टी अौर राष्ट्रीय लोक दल के बीच गठबंधन की खबरें अा रही है। अारएलडी चीफ चौधरी अजीत सिंह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह से जल्द मुलाकात करने वाले हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जदयू और भाजपा के साथ बात नहीं बनती देख रालोद अध्यक्ष अजित सिंह ने अब सपा की तरफ हाथ बढ़ा दिया है। उनकी रविवार को सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह से मुलाकात को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। सपा अध्यक्ष के घर पर हुई इस मुलाकात के दौरान सपा नेता शिवपाल सिंह यादव भी मौजूद थे। वैसे पहली मुलाकात के बाद दोनों तरफ से कुछ साफ संकेत नहीं मिले हैं।
इस मुलाकात पर सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने सीधे तो कुछ नहीं कहा, पर वह इतना जरूर बोले कि कई सारें बातें है, जिनको लेकर यह मुलाकात हुई है। अजित सिंह बिना मीडिया से बात किए निकल गए। इससे पहले सिंह की बात जदयू से भी हुई, लेकिन राज्यसभा सीट और पार्टी अध्यक्ष जैसी शर्तो की वजह से बात नहीं बन पाई। सूत्रों के मुताबिक, अजित सिंह भाजपा के भी संपर्क में हैं और कैबिनेट मंत्री जैसे किसी ओहदे के बदले उसके साथ भी जा सकते हैं। हालांकि बीजेपी को यकीन तभी होगा जब अजित सिंह पार्टी के विलय के लिए तैयार हो जाएंगे।
जानकार यह भी मान रहे हैं कि मुलायम से मुलाकात अजित सिंह की भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक, वह सपा से राज्यसभा सीट का भी वादा चाहते हैं। वहीं जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने कहा, 'वे दोनों पुराने साथी हैं। उनकी पार्टी में समझौते को लेकर मैं क्या बोलूं?'फिलहाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अजित सिंह की पार्टी के नौ विधायक हैं। अगर अजित सिंह सपा के साथ मिल जाएं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे जाटों का समर्थन मिल सकता है। पश्चिमी यूपी में करीब सौ विधानसभा सीटें हैं और सपा के पास अभी इनमें से 40 सीटे हैं।
सपा को लगता है कि इस इलाके में साइकिल चलाए रखने के लिए उसे मुस्लिम और जाट वोटों की जरूरत होगी। लेकिन अजित सिंह को समझने वाले जानते हैं कि जब तक वह किसी का हाथ औपचारिक तौर पर नहीं थाम लें तब तक उनके बारे में कुछ भी दावे से कहना जोखिम भरा ही होगा।
गठबंधन से दोनों दलों को होगा फायदा
अगर सपा और रालोद का गठबंधन हो जाता है तो यह प्रदेश की राजनीति में निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। बता दें कि 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा की ओर से 401 उम्मीदवार मैदान में उतारे गए थे और पार्टी को 224 सीटों के साथ बहुमत हासिल हुआ था। 2012 में पार्टी को कुल मतों का 29.13 प्रतिशत मत मिले थे। वहीं रालोद ने इसी चुनाव में 46 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसके हाथ 9 सीटें लगी थी और उसे कुल वोटों का 2.33 प्रतिशत मिला था। अगर इन दोनों दलों के प्रतिशत जोड़ दिए जाएं तो कुल 31.46 प्रतिशत तक पहुंच जाता है।
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