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फिल्म रिव्यू : उलझनें, प्‍यार व दोस्‍ती की 'ऐ दिल है मुश्किल' (3 स्‍टार)

रणबीर कपूर और ऐश्‍वर्या राय बच्चन के बीच की केमिस्ट्री तमाम प्रचार के बावजूद हॉट नहीं लगती। रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा के बीच की केमिस्ट्री और अंडरस्टैंरडिंग ज्यादा वर्क करती है।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Fri, 28 Oct 2016 04:12 PM (IST)Updated: Fri, 28 Oct 2016 06:09 PM (IST)
फिल्म रिव्यू : उलझनें, प्‍यार व दोस्‍ती की  'ऐ दिल है मुश्किल' (3 स्‍टार)

अजय ब्रह्मात्मज

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प्रमुख कलाकार- रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा
निर्देशक- करण जौहर
संगीत निर्देशक- प्रीतम चक्रबर्ती
स्टार- 3

बेवजह विवादास्पद बनी करण जौहर की फिल्मि ‘ऐ दिल है मुश्किल’ चर्चा में आ चुकी है। जाहिर सी बात है कि एक तो करण जौहर का नाम, दूसरे रणबीर कपूर और ऐश्वर्या राय बच्चन की कथित हॉट केमिस्ट्री और तीसरे दीवाली का त्योाहार...फिल्म करण जौहर के प्रशंसकों को अच्छी लग सकती है। पिछले कुछ सालों से करण जौहर अपनी मीडियाक्रिटी का मजाक उड़ा रहे हैं। उन्होंने अनेक इंटरव्यू में स्वीकार किया है कि उनकी फिल्में साधारण होती हैं। इस एहसास और स्वीकार के बावजूद करण जौहर नई फिल्म में अपनी सीमाओं से बाहर नहीं निकलते। प्यार और दोस्ती की उलझनों में उनके किरदार फिर से फंसे रहते हैं। हां, एक फर्क जरूर आया है कि अब वे मिलते ही आलिंगन और चुंबन के बाद हमबिस्तर हो जाते हैं। पहले करण जौहर की ही फिल्मों में एक लिहाज रहता था। तर्क दिया जा सकता है कि समाज बदल चुका है। अब शारीरिक संबंध वर्जित नहीं रह गया है और न कोई पूछता या बुरा मानता है कि आप कब किस के साथ सो रहे हैं?

‘ऐ दिल है मुश्किल’ देखते हुए पहला खयाल यही आता है कि इस फिल्म को समझने के लिए जरूरी है कि दर्शकों ने बॉलीवुड की अच्छी खुराक ली हो। फिल्मों, फिल्म कलाकारों, गायकों और संगीतकारों के नाम और काम से नावाकिफ दर्शकों को दिक्कत हो सकती है। करण जौहर की इस फिल्म में प्यार और दोस्ती का एहसास बॉलीवुड के आकाश में ही उड़ान भर पाता है। पहले भी उनकी फिल्मों में हिंदी फिल्मों के रेफरेंस आते रहे हैं, लेकिन इस बार फिल्मों की छौंक की अधिकता फिल्मोंं के मनोरंजन का स्वाद बिगाड़ रही है। करण जौहर सीमित कल्पना के लेखक-निर्देशक हैं। उनकी फिल्मों को ‘जंक फूड’ के तर्ज पर ‘जंक फिल्म’ कहा जा सकता है। इसकी पैकेजिंग खूबसूरत रहती है। नाम और टैग लाईन आकर्षक होते हैं। उनका चटपटा स्वाद चटखारे देता है। लेकिन जैसा कहा और माना जाता है कि ‘जंक फूड’ सेहत के लिए अच्छाा नहीं होता, वैसे ही ‘जंक फिल्म’ मनोरंजन के लिए सही नहीं है।

इस फिल्म में लखनऊ थोड़ी देर के लिए आया है। पूरी फिल्म मुख्य रूप से लंदन में शूट की गई है। कुछ सीन विएना में हैं। मजेदार तथ्य है कि ऐसी फिल्मों के किरदारों के आसपास केवल हिंदीभाषी किरदार ही रहते हैं। स्थानीय समाज और देश से उनका रिश्ता नहीं होता। इस फिल्म के दो प्रमुख किरदारों अयान और सबा को ब्रिटिश पासपोर्ट होल्डर दिखाया गया है। करण जौहर की फिल्मों के किरदार भी अमीर ही नहीं, बहुत अमीर होते हैं। उनकी इमोशनल मुश्किलें होती हैं। वे रिश्तों में ही रिसते और पिसते रहते हैं। ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में अयान मोहब्बत की तलाश में भटकता रहता है। फिल्म में चित्रित उसके संपर्क में आई दोनों लड़कियां उसे टूट कर प्यार करती हैंं, लेकिन अयान अंदर से खाली ही रहता है। उसका यह खालीपन उसे मोहब्बत से मरहूम रखता है।

करण जौहर की फिल्मों में कॉस्ट्यूम का खास महत्व होता है। इस फिल्म में भी उन्होंने अपने कलाकारों को आकर्षक परिधानों में सजाया है। उन्हें भव्य परिवेश में रख है। भौतिक सुविधाओं से संपन्न उनके किरदार समाज के उच्च वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे किरदार मध्वर्गीय और निम्नमध्यवर्गीय दर्शकों को सपने और लालसा देते हैं। यकीन करें करण जौहर की फिल्में दर्शकों को बाजार का कंज्यूमर बनाती हैं। उनकी लक-दक और बेफिक्र जिंदगी आम दर्शकों को आकर्षित करती है। करण जौहर ने इस बार रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा और ऐश्वर्या राय बच्चन को प्रमुख भूमिकाओं में रखा है। वे अपने लकी स्टार शाह रूख खान को बहाने से ले आते हैं। एक सीन में आलिया भट्ट भी दिखाई दे जाती हैं।

रणबीर कपूर और ऐश्वर्या राय बच्चन के बीच की केमिस्ट्री तमाम प्रचार के बावजूद हॉट नहीं लगती। रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा के बीच की केमिस्ट्री और अंडरस्टैंरडिंग ज्यादा वर्क करती है। रणबीर कपूर ने प्यार में थके-हारे और अधूरे युवक के किरदार को अच्छी तरह निभाया है। वे कमजोर दिखने वाले दृश्यों में सचमुच लाचार दिखते हैं। उन्होंने अयान के अधूरेपन को अच्छी तरह व्यक्त किया है। अनुष्का शर्मा किरदार और कलाकार दोनों ही पहलुओं से बाजी मार ले जाती हैं। अलीजा का फलक बड़ा और अनेक मोड़ों से भरा है। अनुष्का शर्मा उन्हें पुरअसर तरीके से निभाती हैं। ऐश्वर्या राय बच्चन के हिस्से अधिक सीन नहीं आए हैं, लेकिन उन्हें खूबसूरत और प्रभावशाली संवाद मिले हैं। उर्दू के ये संवाद भाव और अर्थ से पूर्ण हैं। इस नाज-ओ-अंदाज की शायरा फिल्मों से लेकर जिंदगी में आ जाए तो शायरी के कद्रदान बढ़ जाएं। यों वह अपना दीवान बायीं तरफ से पलटती हैं (शायद निर्देशक और कलाकार को खयाल नहीं रहा होगा कि उर्दू की किताबें दायीं तरफ से पलटी जाती हैं)। भाषा के व्यवहार की एक भूल खटकती है, जब एक संवाद में ‘मक्खियों के मंडराने’ का जिक्र आता है। मंडराते तो भंवरे हैं। मक्खियां भिनभिनाती हैं।

फिल्म का गीत-संगीत प्यार और दोस्ती के एहसास के अनुरूप दर्द, ख्वाहिश और मोहब्बत की भावनाओं से भरा है। फिल्म में जहां-तहां पुराने गानों का भी इस्तेामाल हुआ है। फिल्म में एक सबा शायरा और अयान गायक है, इसलिए गानों को फिल्म में पिरोने की अच्छी गुंजाइश रही है।

अवधि- 158 मिनट

abrahmatmaj@mbi.jagran.com


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