त्वरित टिप्पणी: 'आप' का प्रदर्शन अहंकार और अपरिपक्वता की पराजय
आप' को उसका अहंकार, अपरिपक्वता और असंवेदनशीलता ही एमसीडी चुनाव मे ले डूबी है। आप की नकारात्मक राजनीति और अमर्यादित टिप्पणियों को जनता ने खारिज र दिया।
नई दिल्ली (प्रशांत मिश्र)। अहंकार, अपरिपक्वता और असंवेदनशीलता 'आप' को ले डूबी। गोवा और पंजाब के बाद एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी की नकारात्मक राजनीति और अमर्यादित टिप्पणियों को जिस तरह जनता ने खारिज किया है वह सबक लंबे अरसे तक याद रखा जाएगा। वहीं अब यह स्थापित रूप से माना जा सकता है कि फिलहाल पंचायत से लेकर संसद तक जनता के सामने भाजपा का कोई विकल्प नहीं है। और अगर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह यह दावा कर रहे हैं कि पार्टी का स्वर्णिम काल अभी आया नहीं, आने वाला है तो उन पर भरोसा करना गलत नहीं होगा।
हाल के विधानसभा चुनावों के बाद एक बड़ी हास्यास्पद बहस शुरू हुई थी- ईवीएम में हेराफेरी की। यह और बात है कि ईवीएम पर सवाल उठाने वाले नेता व दल यह भूल गए थे कि दिल्ली विधानसभा में अभूतपूर्व नतीजा भी ईवीएम से ही आया था। गोवा और पंजाब के नतीजों के बाद की बौखलाहट और हताशा में दिया गया बयान जाहिर तौर पर एमसीडी चुनाव में आप के पराजय का एक कारण हो सकता है। लेकिन इसकी नींव तके दरअसल उसी दिन से पड़ने लगी थी जब दिल्ली सरकार शासन प्रशासन को पीछे रखकर आंदोलन और प्रदर्शन की राजनीति को जारी रखना चाहती थी। बेशक आंदोलन और ईमानदारी की दुहाई देने के बावजूद अंदर भ्रष्टाचार की फफूंद पड़ने लगी थी। कुछ नेताओं के उपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
मुफ्त पानी और बिजली सब्सिडी जैसे लुभावन फैसले तो हर किसी को भाते हैं लेकिन संवैधानिक प्रावधानों और कोर्ट के आदेशों के बावजूद अधिकारों को लेकर छेड़ी गई लड़ाई ने यह साबित कर दिया कि आंदोलन की प्रवृत्ति गई नहीं है। दो दिन पहले आप के शीर्षस्थ नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया कि एमसीडी में अगर एक्जिट पोल की तर्ज पर नतीजे आए(जिसमें भाजपा की बड़ी जीत दिखाई गई थी) तो 'वह ईंट से ईंट बजा देंगे।' लोकतंत्र की बदौलत सत्ता में पहुंचे नेताओं व दलों की ओर से लोकतांत्रिक प्रावधानों को ऐसी खुली धमकी भरी चुनौती समाज में स्वीकार्य नहीं है।
जो बातें धीरे धीरे सार्वजनिक हो रही है उसके अनुसार हाल में विपक्ष के एक बड़े नेता की ओर से कांग्रेस को सुझाव दिया गया कि बेवजह हर मुद्दे पर टिप्पणी से बचें। कांग्रेस नेतृत्व को अब शायद समझ में आने भी लगा है और यही कारण है कि एमसीडी चुनाव में थोड़ी राहत भी मिली और बयान भी थोड़े संयत हुए। यह कितने दिनों तक कायम रहता है यह जरूर देखने की बात होगी।
पर इस पूरे क्रम में एक बात स्पष्ट होकर उभरी है कि विपक्ष का मनोबल भी धराशायी है और रणनीति भी। जबकि भाजपा का उत्साह चरम पर है तो उससे भी ज्यादा प्रवाह है मेहनत करने की इच्छा की। जीत के दूसरे ही दिन जिस तरह पूरी भाजपा फिर से जमीन पर दिखती है और शीर्ष नेतृत्व भी बूथ तक उतरता है वह जज्बा दूसरे दलों में पैदा ही नहीं हो पाया है। यही कारण है कि उस बंजर जमीन पर भी कमल को पहचानने से भी इनकार करते थे। ओडिशा से लेकर मराठवाड़ा और विदर्भ और लातूर भी केसरिया हो गया। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की अभूतपूर्व जीत केवल घटना भर नहीं थी बल्कि एक क्रम की शुरूआत थी। विपरीत परिस्थितियों मे एमसीडी में हैट्रिक 'मोदी मैजिक' और 'शाह मैनेजमेंट' का एक और नमूना है।