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60 बच्चों को आइएएस बनाने का जुनून, उठा रहे हैं पढ़ाई का पूरा खर्च

महंगी हो रही शिक्षा के इस दौर में आम इंसानों के लिए बच्चों की शिक्षा आर्थिक नजरिये से बेहद खास हो गई है। मध्यम दर्जे के लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च हो रहा है। ऐसे में समाज को कुछ खास देने का जुनून रखने वाले केआर माहेश्वरी को 60 बच्चों की तलाश है, जिन्हें तालीम देकर आइएएस व आइपीएस बना सके

By Edited By: Published: Sun, 31 Aug 2014 07:51 AM (IST)Updated: Sun, 31 Aug 2014 09:08 AM (IST)
60 बच्चों को आइएएस बनाने का जुनून, उठा रहे हैं पढ़ाई का पूरा खर्च

अमृतसर [रमेश शुक्ला 'सफर']। महंगी हो रही शिक्षा के इस दौर में आम इंसानों के लिए बच्चों की शिक्षा आर्थिक नजरिये से बेहद खास हो गई है। मध्यम दर्जे के लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च हो रहा है। ऐसे में समाज को कुछ खास देने का जुनून रखने वाले केआर माहेश्वरी को 60 बच्चों की तलाश है, जिन्हें तालीम देकर आइएएस व आइपीएस बना सकें। उन्हें 30 बेटे और इतनी ही बेटियां चाहिएं। इसके लिए धर्म-जाति, राज्य-भाषा की कोई बंदिश नहीं है। वह ऐसे बच्चों की तलाश में हैं जिन्हें पहली कक्षा से ही शिक्षा दे सकें।

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समाज कल्याण के इस पुनीत कार्य में जुटे हैं अमृतसर के मूल निवासी (अब इंदौर में रह रहे हैं) मानव कल्याण ट्रस्ट के चेयरमैन केआर माहेश्वरी। स्थानीय नमक मंडी में रहते थे। हिंदू कालेज से ग्रेजुएट के बाद चंडीगढ़ से एलएलबी की। 1962 में प्रैक्टिस शुरू की तो 1965 की जंग में सैनिकों के लिए राशन तक पहुंचाने का काम किया।

इनकम टैक्स के नंबर वन वकील तो बन गए, लेकिन मन नहीं भरा। बचपन में घर के सामने स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ रहे दोस्त राम लाल का चेहरा सामने आता रहा। एक दिन ठान लिया कि राम जैसे आर्थिक रुप से कमजोर 'लाल' को पढ़ाएंगे। 1982 में मानव कल्याण ट्रस्ट बनाकर मानव पब्लिक स्कूल खोला। प्रति वर्ष आर्थिक तौर पर कमजोर 60 बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना शुरू किया।

2004 में मुफ्त शिक्षा के लिए मानव कल्याण विद्या मंदिर खोला। जहां अब 550 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं। अब ये 60 बच्चों को यूपीएससी की परीक्षा पास करवाकर देश को आइएएस व आइपीएस देना चाहते हैं। माहेश्वरी कहते हैं, 'मैं अक्टूबर 1984 का वो दिन नहीं भूलता, जब मानव पब्लिक स्कूल की बस को आतंकियों ने किडनैप कर लिया था। बस के 34 बच्चों में मेरा बेटा गगन भी था। खौफ के उन दो घंटे ने मेरी जिंदगी को दिशा दी। बस सकुशल छूट गई और मैं खौफजदा होकर इंदौर चला गया। मकसद है नगरी को शिक्षित बनाना, देश का साक्षर बनाना। यही मेरा लक्ष्य है।'

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