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फोटो : सांसारिक मोह और वैभव छोड़ हरियाणा की 22 वर्षीय सिमरन बनी बैरागी

दीक्षा से पहले मुमुक्षु सिमरन ने कहा कि दुनिया देखी और शिक्षा ग्रहण की, लेकिन मुझे संतों का सानिध्य और दीक्षा का मार्ग ही रास आया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 09:07 AM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 12:46 PM (IST)
फोटो : सांसारिक मोह और वैभव छोड़ हरियाणा की 22 वर्षीय सिमरन बनी बैरागी
फोटो : सांसारिक मोह और वैभव छोड़ हरियाणा की 22 वर्षीय सिमरन बनी बैरागी

इंदौर, नईदुनिया। सांसारिक जीवन के वैभव को छोड़कर सोमवार को पानीपत (हरियाणा) की 22 वर्षीय सिमरन जैन साध्वी बन गईं। जैन भगवती दीक्षा महोत्सव में गौतममुनिजी ने उन्हें नया नाम महासती श्री गौतमीजी दिया। इस अवसर पर केशलोचन सहित दीक्षा की विभिन्न विधियां हुई।

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इससे पहले जब आयोजन स्थल पर दीक्षार्थी सिमरन जैन पहुंचीं तो उनके सामने इंदौर निवासी नाना तेजप्रकाश जौहरी खड़े थे। वह उनसे मिलीं और मुस्कुराते हुए कहा- नानू आज आखिरी बार मेरे साथ खेल लो। फिर नानू ने भी कंधे पर हाथ रखकर दीक्षार्थी के प्रति अपना स्नेह जताया। इसके बाद दीक्षा की विधि शुरू हुई, जो करीब दो घंटे चली। यहां दीक्षार्थी ने दीक्षा की अनुमति परिजन, समाज और साधु मंडल से ली। इसके बाद केशलोचन सहित विभिन्न दीक्षा की विधियां संपन्न हुईं।

इससे पहले वर्धमान श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक ट्रस्ट के तत्वावधान में सुबह सांसारिक परिधान में मुमुक्षु सिमरन का वरघोड़ा निकाला गया। इसमें बग्घी में सवार दीक्षार्थी वर्षीदान करती चल रही थीं। साथ बड़ी संख्या में समाजजन चल रहे थे।

दीक्षा से पहले मुमुक्षु सिमरन ने कहा कि दुनिया देखी और शिक्षा ग्रहण की, लेकिन मुझे संतों का सानिध्य और दीक्षा का मार्ग ही रास आया। सांसारिक बुआ डॉ. मुक्ताश्री की राह पर ही आत्मिक सुकून और परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है, इसलिए वैराग्य धारण कर रही हूं। आप सब लोग इसकी अनुमति मुझे प्रदान करें।

‘संयम कोई मिट्टी का खिलौना नहीं, जो बाजार से खरीद लें’

श्रमण संघीय उपप्रवर्तक गौतममुनिजी ने कहा कि संयम कोई मिट्टी का खिलौना नहीं जो बाजार से खरीद लें। भौतिक चकाचौंध से संयम जीवन में आना मुश्किल है। पुण्य से नगर सेठ बना जा सकता है, लेकिन साधु बनने का मौका बहुत कम लोगों को मिलता है। साधु बनना सिर्फ वेश परिवर्तन नहीं, जीवन परिवर्तन है।

बेटी का दीक्षा का इरादा पक्का

सिमरन के पिता अशोक गौड़ ने कहा कि मेरी दो बेटियां और दो बेटे हैं। एक बेटी मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। हमारा विचार था कि बेटी पढ़-लिख कर करियर बनाएगी और हम उसकी शादी करेंगे, लेकिन उसका दीक्षा का इरादा पक्का था। छोटी बेटी का रुझान भी इसी ओर है।

अभिनय देखकर कहते थे कि अभिनेत्री बनेगी

सांसारिक बुआ महासती डॉ. मुक्ताश्री बताती हैं कि सिमरन धार्मिक आयोजन में होने वाली विभिन्ना नृत्य-नाटिकाओं और कार्यक्रमों में अभिनय करती थी। उसका अभिनय देखकर सभी कहते थे कि वह अभिनेत्री बनेगी, टीवी सीरियल में काम करेगी, लेकिन जब वह गर्भ में थी, तभी मैंने भैया-भाभी से इच्छा जताई थी कि उसे आत्मकल्याण के लिए दीक्षा दिलाना। सिमरन के पिता का फाइनेंस का काम है और अन्य व्यवसाय भी है।

विनयशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की सोच

मुमुक्षु सिमरन विनयशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली लड़की है। हर बात वैज्ञानिक ढंग से सोचकर ग्रहण करती है। पुणे से बीएससी (कम्प्यूटर साइंस) किया और वैराग्यकाल दो वर्ष का है। गुरु भगवंत और परिवार की आज्ञा से आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ रही है।

-पुनीतज्योति महाराज

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