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1965 भारत-पाक युद्ध : जीत के जश्‍न में उभरेंगे सुलगते सवाल भ्‍ाी

पाकिस्‍तान के आसमान पर भी हिन्‍दुस्‍तानी फौज का कब्‍जा हो चुका था। पाकिस्‍तानी सेना को मुंह की खानी पड़ी थी और भारत ने एक नया इतिहास लिख दिया था। लेकिन, फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने सबकुछ पलट कर रख दिया। जमीन की जंग का नतीजा कागजों पर कुछ और ही

By vivek pandeyEdited By: Published: Wed, 03 Jun 2015 11:18 AM (IST)Updated: Wed, 03 Jun 2015 03:15 PM (IST)
1965 भारत-पाक युद्ध : जीत के जश्‍न में उभरेंगे सुलगते सवाल भ्‍ाी

नई दिल्ली। लाहौर के पुलिस थानों में हिन्दुस्तानी फौज पहुंच चुकी थी, सेना के जवानों के बीच जीत का जश्न मन रहा था। जमीन के साथ ही पाकिस्तान के आसमान पर भी हिन्दुस्तानी फौज का कब्जा हो चुका था। पाकिस्तानी सेना को मुंह की खानी पड़ी थी और भारत ने एक नया इतिहास लिख दिया था। लेकिन, फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने सबकुछ पलट कर रख दिया। जमीन की जंग का नतीजा कागजों पर कुछ और ही नजर आया।

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इस वर्ष, 1965 में पाकिस्तान पर भारत की हुई जीत की स्वर्ण जयंती मनाई जानी है। एक से 23 सितंबर तक जीत की याद में कार्यक्रम के आयोजनों के निर्देश सरकार की ओर से दिए गए हैं। लेकिन, इन सब के बीच इतिहास में दफन हुए कुछ सवाल भी 50 सालों बाद अपना सिर उठा सकते हैं।

भीतर ही भीतर सुलग रहे सवालों का जवाब इस जश्न के बीच जनता मांग सकती है। इसके साथ ही ताशकंद में रूस की मध्यस्थता से लाल बहादुर शास्त्री और पाक जनरल अयूब खान के बीच हुई बैठक के नतीजों पर भी बड़ी बहस छिड़ सकती है।

इसके साथ्ा ही जंग के बाद रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी किया गया आधिकारिक कागजात 'इंडिया-पाकिस्तान वॉर ऑफ 1965' भी सवालों के घेरे में आ सकता है। इसका कारण यह है कि इसके कुछ हिस्से ही सार्वजनिक किए गए थे जबकि बाकी हिस्सों को रहस्य में ही रखा गया था।

दरअसल, 1965 में युद्ध के बाद भारत की सेना पाकिस्तान में पहुंच गई थी। लाहौर के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भारतीय सेना का कब्जा हो चुका था। लेकिन, रूस की मध्यस्थता के बाद भारत-पाक के बीच हुई वार्ता के दौरान जो फैसले हुए वे चौंकाने वाले थे।

घटना के 50 साल बीतने के बाद भी ये सवाल जस के तस खड़े हैं लेकिन जैसे ही जश्न की शुरूआत होगी सवाल भी उठने लगेंगे। लोगों में इस बात को लेकर बेचैनी भी बढ़ेगी कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि जीत के बावजूद भारत को पीछे हटना पड़ा था।

1965 का भारत पाक युद्ध - यह हुआ था

- 5 अगस्त को करीब 30 हजार पाकिस्तानी सैनिक एलओसी पार कर कश्मीर में घुस आए थे। सभी ने स्थानीय लोगों को वेश धारण किया था।

- 15 अगस्त को इस घुसपैठ की सूचना भारत को मिली। स्थानीय खबरियों ने सेना के अधिकारियों को इस बारे में जानकारी दी।

- 1 सितंबर को पाकिस्तान की सेना ने आॅपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया। इसका मकसद जम्मू के अखनूर जिले पर कब्जा करना था।

- 6 सितंबर को भारतीय सेना ने हमले का जोेरदार जवाब दिया। भारत ने इसे युद्ध घोषित करते हुए पश्चिमी सीमा से अंतर्राष्ट्रीय सीमा लांघ दी।

- अलग-अलग मोर्चो पर लड़ते हुए भारत ने पाकिस्तान के 1800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया जबकि भारत के 550 वर्ग किलोमीटर पर पाक का कब्जा हो गया।

- पाकिस्तान से 90 से ज्यादा अमेरिकन पैटर्न टैंकों को भारतीय सेना ने बर्बाद कर दिया जबकि भारत को 30 टैंकों का नुकसान पहुंचा।

- विश्व शक्तियों के हस्तक्षेप के बाद भारत और पाकिस्तान के बीय युद्ध विराम घोषित कर दिया गया। और सेनाओं अपनी जगहों पर डट गईं।

- ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री और पाक जनरल अयूब खान के बीच हुए समझौते के बाद दोनों देश अप्रैल, 1965 की सीमाओं की स्थिति बनाए रखने पर राजी हो गए।

1965 का भारत पाक युद्ध - हाई लाइट


- भारत और पाकिस्तान के बीच यह दूसरी जंग थी। इससे पहले 1947 में पाकिस्तान एक बार मुंह की खा चुका था।
- दोनों देशों के बीच अप्रैल 1965 से सितम्बर 1965 के बीच यह जंग हुई थी। इसे कश्मीर के दूसरे युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।

- इस लड़ाई की शुरुआत पाकिस्तान ने अपने सैनिको को घुसपैठियो के रूप मे भेज कर इस उम्मीद मे की थी कि कश्मीर की जनता भारत के खिलाफ विद्रोह कर देगी।

- अभियान का नाम पाकिस्तान ने जिब्राल्टर रखा था। पांच महिने तक चलने वाले इस युद्ध मे दोनों पक्षो के हजारो लोग मारे गये।
- युद्ध का अंत संयुक्त राष्ट्र के द्वारा युद्ध विराम की घोषणा के साथ हुआ और ताशकंद मे दोनों पक्षो में समझौता हुआ।
- युद्ध में भारतीय सेना ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी सेना को हराया था। कहा तो यह भी जाता है कि इस युद्ध में भारतीय सेना ने लाहौर तक मोर्चा खोल दिया था।

- युद्ध में भारतीय जल सेना ने भी अपना जौहर दिखाया था।

1962 की चीन से हार पर भी चर्चा -

1965 में हुई जंग पर चर्चा शुरू होने के साथ ही 1962 में चीन से हुई भारत की हार पर भी चर्चा शुरू हो गई है। राष्ट्रीय सेवक संघ की ओर से कहा गया है कि इस लड़ाई को किताबों में पढ़ाया जाना चाहिए। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा है कि वक्त आ गया है कि हम चीन से हार को स्वीकार करें और सबक सीखते हुए आगे बढ़ें।

पदाधिकारी का तर्क है कि इस हार पर चर्चा के दौरान उन गलतियों को खुलासा हो सकेगा जिसकी वजह से देश की हार हुई। ऐसे में कमियों को दूर करते हुए आगे की रणनीति बनाई जा सकती है। इसके साथ ही हार के बावजूद भारतीय सेनाओं की ओर से कुछ मोर्चों पर जबरदस्त प्रदर्शन की जानकारी भी लोगों तक पहुंचेगी।


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