भोजशाला : 10 साल, 2 मौके, 2 गलत फैसले पड़े धार पर भारी
एक के बाद एक लिए गए गलत फैसले धार और इसके सौहार्द पर भारी पड़े। अब फिर 12 फरवरी को यही चुनौती सामने है।
धार, [जितेंद्र व्यास] । प्राप्त रिकॉर्ड के मुताबिक 1953 से अब तक बीते 61 साल में आठ मौके ऐसे आए जब शुक्रवार को वसंत पंचमी आई, मगर विवादों का जन्म एक दशक पहले ही हुआ। इस एक दशक में दो ही मौके ऐसे आए, जिसमें सरकार और प्रशासन को एक ही दिन भोजशाला में पूजा और नमाज की चुनौती का सामना करना पड़ा।
दोनों ही मौकों पर व्यवस्था की कमान संभालने वाले अफसर और भोपाल में बैठकर गुपचुप निर्देश देने वाले मंत्रियों से हालात को समझने में चूक हुई। एक के बाद एक लिए गए गलत फैसले धार और इसके सौहार्द पर भारी पड़े। अब फिर 12 फरवरी को यही चुनौती सामने है। उसी दिन तय होगा कि पिछले गलत फैसलों से प्रशासन और पुलिस ने कोई सबक लिया है या नहीं।
शहर के सौहार्द पर भारी पड़ी ये गलतियां...
2006 : ये चूक पड़ी भारी
2003 में भोजशाला के ताले खुलने के तीन साल बाद ही 2006 में पूजा और नमाज एक ही दिन संपन्ना करवाने की चुनौती थी। पुरातत्व विभाग से आदेश मिलने के बाद सरकार ने गेंद अफसरों के पाले में डाल दी। इसके बाद आईजी, 10 एसपी स्तर के अफसरों सहित भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। आयोजन के एक दिन पहले तक दोनों समुदाय से चर्चा कर बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया जाता रहा लेकिन सफलता नहीं मिली। हिंदू संगठनों ने संकल्प ज्योति यात्रा से जिलेभर के लोगों को न्योता दिया था। भोजशाला परिसर के बाहर धर्मरक्षक संगम में एक लाख लोगों के शामिल होने का दावा किया गया था।
-अफसरों ने लोगों को धार आने से रोकने के लिए जिलेभर के रास्ते रोक दिए थे। शहर से 20-30 किलोमीटर पहले ही वाहनों को रोक दिया गया। वसंत पंचमी के एक दिन पहले ही प्रशासन के इस कदम की खबर लोग तक पहुंची तो वे दोपहिया वाहनों पर धार की ओर बढ़े। रोका गया तो पूरी रात पैदल चलकर भोजशाला पहुंच गए।
अफसरों ने देखा कि लोग बड़ी संख्या में शहर आ गए हैं तो परिसर में सादे कपड़ों में केसरिया दुपट्टे डालकर बाउंसरों को तैनात कर दिया गया। भोजशाला खाली करवाए जाने के निर्देश मिलते ही उन्होंने लोगों को बलपूर्वक बाहर कर दिया। परिसर के बाहर जब यह खबर फैली तो लोग भड़क गए। उन्हें नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस के गोले और लाठीचार्ज करना पड़ा। 15 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
जिले के तत्कालीन प्रभारी मंत्री कैलाश विजयवर्र्गीय ने बवाल के पहले कहा था कि हमारी सरकार सक्षम है और हम सामाजिक समरसता बनाए रखने में सफल रहेंगे, लेकिन स्थिति बिगड़ गई।
2013 : नहीं लिया सबक फिर दोहराया इतिहास
फरवरी 2013 में वसंत पंचमी और शुक्रवार एक साथ आने पर भी अधिकारियों ने रणनीति में कोई फेरबदल नहीं किया। भारी पुलिस बल जमा करने के साथ ही फ्लैग मार्च आदि से यही संदेश देने का प्रयास किया गया कि हमारी तैयारी पूरी है, लेकिन आखिर स्थिति बिगड़ी और उसका गुस्सा प्रभारी मंत्री को झेलना पड़ा।
ये हुई चूक
- तैयारियों में जुटे अफसरों ने सबसे कम फोकस बातचीत पर किया। दोनों ही समुदाय के पदाधिकारियों से जितनी बार भी बातचीत हुई, तीखे अंदाज में ही हुुई।
- तय टकराव को देखते हुए भी प्रशासन ने उसे टालने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। जो पुलिस अफसर पहले धार में पदस्थ थे उनकी ड्यूटी बाहरी इलाकों में लगाई गई जबकि बाहर से बुलाए गए अफसरों को भोजशाला परिसर और मुख्य द्वार पर तैनात किया गया। इससे जैसे ही स्थिति बिगड़ी तो उन्होंने समझाने के प्रयास के बजाय लाठी चलाना शुरू कर दिया।
- भोजशाला परिसर में हिंदू संगठन के पदाधिकारियों और दर्शनार्थियों पर पुलिस ने बल प्रयोग किया। आईजी, कमिश्नर की मौजूदगी में पिटाई की बात जब उन्होंने बाहर आकर बताई तो लोगों ने बैरिकेड तोड़कर अंदर घुसने का प्रयास किया। उन्हें रोकने के लिए आधा दर्जन से ज्यादा बार लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
- पिटाई से घायल लोगों को देखने जब तत्कालीन प्रभारी मंत्री महेंद्र हार्डिया जिला अस्पताल पहुंचे तो उन्हें भी लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। हार्डिया ने भी पिटाई को गलत बताते हुए अफसरों की गलती बताई थी।
2016 : गोपनीय है पुलिस की रणनीति
-वसंत पंचमी के दिन दोपहर 12 से तीन बजे के बीच प्रशासन और पुलिस भोजशाला खाली करवाने के लिए कौन सा तरीका अपनाती है पूरा दारोमदार इसी पर टिका है। पुलिस ने अपनी रणनीति को पूरी तरह से गोपनीय रखा है।
बीती बातें भूल जाइए...
बीते सालों में जो गलतियां हुई हैं। उन्हें छोड़कर इस बार शांतिपूर्ण आयोजन का प्रयास है। जो विरोध कर रहे हैं वे भी हमारे ही अपने लोग हैं। उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा। -नरोत्तम मिश्रा, प्रभारी मंत्री, धार जिला
[साभार- नई दुनिया]