अवध में जगी 'वनवास' टूटने की आस
'अवध' और 'राम' का अटूट रिश्ता रहा है। अवध ने राम का 'वनवास' देखा है तो राजगद्दी भी। 14 वर्ष तक अवधवासियों ने राम की राह भी निहारी। भाजपा उन्हीं 'राम' के सहारे 1
[नीरज मिश्र], बहराइच। 'अवध' और 'राम' का अटूट रिश्ता रहा है। अवध ने राम का 'वनवास' देखा है तो राजगद्दी भी। 14 वर्ष तक अवधवासियों ने राम की राह भी निहारी। भाजपा उन्हीं 'राम' के सहारे 1998 में अवध प्रांत में अपनी यश पताका 16 में से 7 सीटों के साथ फहरा चुकी है। इधर उसका ग्राफ गिरकर एक सीट पर सिमट चुका है।
भाजपा के चिंतनशील नेताओं का मानना है कि अवध में भाजपा का वनवास ठीक राम की तरह इस बार खत्म होगा। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य डॉ. महेन्द्र सिंह और प्रदेश प्रवक्ता विजय पाठक भी इसकी तस्दीक करते हैं। 16वीं लोकसभा के समर में भाजपा को अवध से खासी उम्मीदें हैं। भाजपा के करिश्माई व्यक्तित्व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस क्षेत्र के बलरामपुर सीट से सियासी सफर शुरू किया जो लक्ष्मन नगरी लखनऊ जा ठिठका। लखन नगरी से जुड़े तो जनता ने उन्हें देश का ताज सौंपा। उनकी करिश्माई छवि ने 1998 के लोकसभा चुनाव में अवध क्षेत्र को 16 में से सात सीट भाजपा को सौंप दी। 1999 के बाद से अवध में भाजपा का यह ग्राफ गिरना शुरू हुआ। 2004 में भाजपा को क्षेत्र में महज दो सीटें ही हासिल हुईं। 2009 के चुनाव में पार्टी की हालत और पतली हो गई और सीटों का सफर एक पर पहुंच लखनऊ में जा थमा। इस बार भाजपा को सियासी वनवास टूटने की उम्मीद जगी है।
कांग्रेस ने 2009 लोस चुनाव में गोंडा, श्रवस्ती, बहराइच, बाराबंकी, फैजाबाद, खीरी, उन्नाव, रायबरेली और धौरहरा की सीटें जीती। बसपा को मिश्रिख, सीतापुर, अंबेडकर नगर तथा सपा को कैसरगंज, हरदोई, मोहनलालगंज और भाजपा को लखनऊ सीट मिली।