व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन को करना होगा भारत में निवेश
चीन की मौजूदा अर्थव्यवस्था और भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं की सीमित सूची परस्पर व्यापार की स्थिति बदलने के लिए पर्याप्त नहीं है
नई दिल्ली: चीन की मौजूदा अर्थव्यवस्था और भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं की सीमित सूची परस्पर व्यापार की स्थिति बदलने के लिए पर्याप्त नहीं है। चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे को कम करने के लिए चीन की कंपनियों का भारत के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में निवेश मददगार साबित हो सकता है। सरकार की भी कोशिश है कि चीन के निर्माता भारत के मेक इन इंडिया अभियान का हिस्सा बने ताकि मैन्यूफैक्चरिंग और भारतीय निर्यात की तस्वीर को बदलने में मदद मिल सके।
भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय कारोबार की मौजूदा स्थिति पूरी तरह चीन के पक्ष में है। भारत में चीन से करीब 61 अरब डॉलर का आयात होता है जबकि भारत उसे बमुश्किल नौ अरब डालर का ही निर्यात कर पाता है। ऐसे में दोनों देशों के व्यापार का अंतर 50 अरब डॉलर से भी अधिक का है। वाणिय व उद्योग मंत्रलय के अधिकारी और निर्यात संगठनों के प्रतिनिधि इस बात को स्वीकार करते हैं कि केवल निर्यात की मौजूदा स्थिति को पलटने या चीन से होने वाले आयात में कमी के उपाय कर मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता। इसके लिए एक दीर्घकालिक रणनीति अपनानी होगी।
जानकारों की राय में इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण कदम चीन की औद्योगिक इकाइयों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना हो सकता है। चीन की अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थितियों के मुताबिक चीन में मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों के लिए काम करना अब मुनाफे का सौदा नहीं है। वहां उत्पादन में श्रम की लागत इतना अधिक बढ़ गई है कि भारत में श्रम उसके मुकाबले सस्ता हो गया है। एक अनुमान के मुताबिक भारत के मुकाबले चीन में श्रमिक लागत करीब 20 फीसद यादा है।
चीन की कंपनियां लागत बढ़ने के वैकल्पिक स्थान खोज रही हैं। फियो के महानिदेशक डा. अजय सहाय मानते हैं कि यही वक्त है जब चीन की मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की कंपनियों को भारत में इकाई लगाने के लिए आकर्षित किया जा सकता है। यह न केवल जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की भागीदारी को मौजूदा 16 फीसद से बढ़ाकर 25 करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा बल्कि भारतीय निर्यात के लिए भी लाभदायक होगा।
चीन की कंपनियां बड़े पैमाने पर उत्पादन करने लिए जानी जाती हैं। अपने बड़े स्तर के उत्पादन की खपत न केवल उनके अपने बाजार में होती है बल्कि दुनिया के दूसरे बाजारों में भी है। जानकार मानते हैं कि ये कंपनियां भारत में इकाई स्थापित करती हैं तो वे यहीं से चीन के बाजार में भी आपूर्ति करेंगी। इसका लाभ यह होगा कि भारत से चीन को निर्यात बढ़ेगा और वहां से होने वाला आयात घट जाएगा क्योंकि वे उत्पाद भारत में ही निर्मित होंगे।
जानकार मानते हैं कि सस्ते श्रम का लाभ उठाकर बहुतायत में उत्पादन करने की रणनीति अपना कर चीन ने 25 वर्ष पहले ही दुनिया के बाजारों पर कब्जा करने की नीति पर काम शुरू कर दिया था। सस्ते श्रम के चलते चीन में दुनिया भर की कंपनियों ने निवेश भी किया। कोटक महिंद्रा असेट मैनेजमेंट कंपनी के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने अपने एक ट्वीट में इसका उदाहरण भी दिया है। उनके मुताबिक 1990 में भारत और चीन लगभग एक ही स्तर पर थे। लेकिन 2015 में जहां चीन में प्रति व्यक्ति आय 8000 डॉलर हो गई थी वहीं भारत 1600 डॉलर तक ही पहुंच पाया था।
हालांकि चीन की कंपनियों की अब भारत में रुचि भी बढ़ रही है। इस साल मार्च के बाद चीन से होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आंकड़े इस बात की पुष्टि भी करते हैं। जहां साल 2000 से लेकर मार्च 2016 तक भारत में केवल 1.35 अरब डॉलर का एफडीआइ आया वहीं उसके बाद के तीन महीने में ही 2.3 अरब डॉलर का एफडीआइ आया। कई मोबाइल कंपनियों ने भी भारत में मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की हैं।