मोदी की राह पर राज्यों ने बढ़ाए कदम
देश को विकास के ऊंचे पायदान पर ले जाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों का असर अब दिखने लगा है। विकास के लिए जरूरी तंत्र विकसित करने की प्रधानमंत्री की सोच के मुताबिक राज्यों ने भी परियोजनाओं को त्वरित मंजूरी और उनकी निगरानी की व्यवस्था कायम करना शुरू कर दिया है। इस मामले में राजस्थान और
नई दिल्ली, [नितिन प्रधान]। देश को विकास के ऊंचे पायदान पर ले जाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों का असर अब दिखने लगा है। विकास के लिए जरूरी तंत्र विकसित करने की प्रधानमंत्री की सोच के मुताबिक राज्यों ने भी परियोजनाओं को त्वरित मंजूरी और उनकी निगरानी की व्यवस्था कायम करना शुरू कर दिया है। इस मामले में राजस्थान और बिहार समेत कई राज्यों ने बिजली, सड़क और अन्य बुनियादी परियोजनाओं को रफ्तार देने के लिए केंद्र की तर्ज पर काम करना शुरू कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के दो महीने के भीतर ही राज्यों ने केंद्र के साथ कदम से कदम मिलाया है। इस अवधि में केंद्र में जिस तत्परता से विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए जरूरी तंत्र की स्थापना का काम हुआ है, उसने कई राज्यों को प्रभावित किया है। दलीय राजनीति से ऊपर उठकर राज्यों ने अब इसमें भागीदारी शुरू कर दी है। परियोजनाओं को मंजूरी देने और उन पर निगरानी रखने के लिए राजस्थान और बिहार समेत कई राज्य अपने यहां तंत्र स्थापित कर चुके हैं। गुजरात में यह व्यवस्था पहले से ही लागू है। कैबिनेट सचिवालय के तहत बना प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सिस्टम (पीएमएस) पूरी तरह सक्रिय है। परियोजनाओं को मंजूरी और उनकी निगरानी के लिए बनी इस ऑनलाइन व्यवस्था से ओडिशा, केरल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य भी जुड़े हुए हैं। देश में निवेश का प्रवाह बढ़ाने और कारोबार के लिए समुचित माहौल तैयार करने के लिए प्रधानमंत्री की पहली प्राथमिकता बुनियादी ढांचे को रफ्तार देना है।
केंद्र में सरकार बनने से पहले अपने चुनावी भाषणों में भी इसका जिक्र उन्होंने कई बार किया है। नीतिगत जड़ता की वजह से संप्रग सरकार में बिजली, कोयला, सड़क क्षेत्र की कई परियोजनाएं लंबित पड़ी थीं। कैबिनेट सचिवालय में यह सिस्टम पिछली सरकार के कार्यकाल में ही बन गया था। लेकिन, मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले दो महीने में पीएमएस के कामकाज में काफी तेजी आई है। वैसे, पीएमएस अब तक 5,68,894.67 करोड़ रुपये की लागत वाली 161 अटकी पड़ी परियोजनाओं के आगे बढ़ने का रास्ता साफ कर चुका है।
सरकार के कामकाज पर नजर रख रहे विश्लेषकों का मानना है कि यह तेजी प्रधानमंत्री मोदी की खुद की कार्यशैली की वजह से आई है। शनिवार को ही प्रधानमंत्री ने आधारभूत ढांचे से जुड़े मंत्रलयों के सचिवों के साथ बैठक कर आगे के लक्ष्यों को तय किया। दो महीने की ही अवधि में इससे पहले भी वह इन अधिकारियों के साथ बुनियादी ढांचा संबंधी दिक्कतों पर विचार विमर्श कर चुके हैं। राज्यों को साथ लेकर चलने पर जोर देश के विकास की रफ्तार बढ़ाने में मोदी राज्यों को साथ लेकर चलने के शुरू से पक्षधर रहे हैं। चुनावी भाषणों के दौरान और सरकार बनने के बाद भी उनका जोर केंद्र व राज्यों के बीच समन्वय बनाने पर रहा है। विदेशी निवेश के संबंध में भी उनकी सोच राज्यों को प्रोजेक्ट करने की है। इसके लिए जल्द ही वाणिज्य व उद्योग मंत्रलय राज्यों से अपना ब्योरा पेश करने को कहेगा। इसके तहत राज्यों से अपने यहां उपलब्ध जमीन, उद्योगवार कुशल श्रमिकों की संख्या, उन क्षेत्रों के नाम जिनमें मैन्यूफैक्चरिंग के विकास की संभावनाएं हैं आदि की जानकारी मांगी जाएगी।
सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री की सोच विदेशी निवेशकों के सामने पूरे भारत को पेश करने की जगह राज्यों को शोकेस करने की है। उनका मानना है कि इससे राज्यों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और वे विदेश से ज्यादा निवेश पाने के लिए अपना तंत्र सुव्यवस्थित करने पर जोर देंगे। विश्व बैंक का भी समर्थन पूरे देश के बजाय राज्यों में कारोबार का बेहतर माहौल बनाने के मोदी के फलसफे से कहीं न कहीं विश्व बैंक भी इत्तेफाक रखता है।
हाल ही में भारत दौरे पर आए विश्व बैंक के अध्यक्ष ने कहा भी कि अगर गुजरात में कारोबार करने के माहौल पर आकलन किया जाए तो वह मौजूदा रैंक में 50 स्थान ऊपर चला जाएगा। कारोबार के माहौल के आधार पर भारत का स्थान अभी 134वां है।
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