स्टार्टअप मार्केट को लेकर निवेशक बरतें सावधानी
बाजार का स्वरूप बदल रहा है। यह माना जा रहा है कि कारोबार को अब दो श्रेणियों-स्टार्टअप्स और सिर्फ बिजनेस (परंपरागत) में बांटा जा सकता है। स्टार्टअप्स के बारे में सब कुछ अलग है। अब सेबी के नए नियमों के अनुसार, उनके आइपीओ भी अलग तरह के होंगे। मुझे यकीन
बाजार का स्वरूप बदल रहा है। यह माना जा रहा है कि कारोबार को अब दो श्रेणियों-स्टार्टअप्स और सिर्फ बिजनेस (परंपरागत) में बांटा जा सकता है। स्टार्टअप्स के बारे में सब कुछ अलग है। अब सेबी के नए नियमों के अनुसार, उनके आइपीओ भी अलग तरह के होंगे। मुझे यकीन है कि ऐसे तमाम निवेशक होंगे जिन्होंने धमाकेदार नए स्टार्टअप्स के बारे में अखबारों की सुर्खियां पढ़ी होंगी। वे निवेशक मलाई काटने को खासा उत्साहित होंगे जिन्होंने इनमें पैसा लगा रखा है। नए नियमों के चलते ही भारत में स्टार्टअप्स के लिए आइपीओ लाना और ज्यादा निवेशकों के लिए इनमें निवेश करना संभव हुआ है।
नए नियमों के अनुसार, स्टॉक एक्सचेंजों के भीतर स्टार्टअप आइपीओ में खरीद-फरोख्त और ट्रेडिंग अलग-अलग प्लेटफॉर्मों पर होगी। संस्थागत निवेशक (क्यूआइबी) और गैर-संस्थागत निवेशक आइपीओ में निवेश कर सकेंगे। खुदरा निवेशकों को इसकी इजाजत नहीं होगी। गैर-संस्थागत निवेशकों में वे निवेशक शामिल हैं जो एक निश्चित राशि से ज्यादा निवेश कर सकते हैं। यह राशि आमतौर पर दो लाख रुपये होती है। लेकिन इस मामले में इसे दस लाख रुपये रखा गया है। सही मायनों में एक व्यक्ति भी स्टार्टअप आइपीओ में निवेश कर सकता है, लेकिन न्यूनतम टिकट साइज 10 लाख रुपये है।
यदि इन खबरों को आप देख रहे होंगे, तो इसके पीछे के तर्क की प्रशंसा कर रहे होंगे। इनमें कहा गया कि वर्तमान भारतीय नियम स्टार्टअप्स के प्रति काफी सख्त हैं। इनकी वजह से ऐसे कई कारोबारों का ठिकाना देश के बाहर बना है। आइपीओ नियम जो ऐसे कारोबार को प्रभावी तरीके से रोकते हैं, वे फंडिंग और उद्यमियों के लिए बाहर निकलने के विकल्प भी सीमित करते हैं। ये बिंदु अवश्य हैं, लेकिन हम संभावित निवेशकों के दृष्टिकोण से मुद्दे को नहीं देख रहे हैं।
यह बताने की जरूरत नहीं कि स्टार्टअप्स में निवेश इक्विटी निवेश से बहुत अलग होगा। अनुभवी निवेशक भी इसमें बहुत कुछ नहीं कह सकते हैं। प्रॉफिटेबिलिटी का कोई परंपरागत ट्रैक रिकॉर्ड नहीं होगा। न ही इक्विटी रिसर्च या किसी विश्लेषण की सामान्य विधि बहुत काम आएगी। न ही आप कंपनी प्रबंधन से ऐसा कुछ सुनेंगे जिसकी आपको आदत है। बजाय इसके आपको कुछ अनूठा सुनने को मिल सकता है। ठीक वैसा ही जैसा कुछ महीने पहले फ्लिपकार्ट के संस्थापकों ने कहा था। उनका कहना था कि अभी वे मुनाफे में आने की कोई योजना नहीं बना रहे हैं। भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र की इस दिग्गज कंपनी का 2014-15 में 29,377 करोड़ की बिक्री पर 10,289 करोड़ रुपये का नुकसान था। यदि वह इस साल अपने 70 हजार करोड़ रुपये के बिक्री के लक्ष्य पर पहुंचती है तो उसे तकरीबन 20 हजार करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है। बतौर निवेशक क्या आप ऐसे कारोबार का मूल्यांकन करने के लिए अपने को योग्य समझते हैं?
इस सब के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्टार्टअप्स स्थायी रूप से कारोबार के सामान्य नियमों से बचे नहीं हैं। बिना अपवाद कह सकते हैं कि उन सभी भारतीय स्टार्टअप्स ने जिन्होंने बाजार हिस्सेदारी प्राप्त की है, वे ऐसा बड़ी जेब के बूते कर सके हैं। यह सभी टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स के लिए सामान्य माना जाता है, लेकिन थोड़ा अंतर है। जब गूगल ने 1999-2001 में पैसा फूंकना शुरू किया तो वह नकदी का इस्तेमाल टेक्नोेलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में कर रही थी। यही बात फेसबुक या ट्विटर के लिए भी थी। एक समय यह बात अमेजन के लिए भी सही थी।
इसकी तुलना में भारत में आज ज्यादातर स्टार्टअप्स मामूल देता है कि ग्राहकों को बनाने के लिए पैसा झोंक रहे हैं। शायद एक दिन ऐसा आए जब प्रत्येक श्रेणी में कोई एक बचे और बाकी वेब आधारित बिजनेस बंद हो जाएं। वैसे, मेरी सभी को शुभकामनाएं हैं।
हालांकि, सब बात का एक मतलब निकलता है कि इंडिविजुअल इंवेस्टर के लिए ये आइपीओ ठीक नहीं बैठते हैं। उनके लिए भी जो दस लाख या इससे अधिक निवेश कर सकते हैं। निवेशकों को उन्हीं व्यवसायों पर भरोसा करना चाहिए जिनका प्रॉफिटेबिलिटी और ट्रैक रिकॉर्ड के पारंपरिक तरीकों से मूल्यांकन किया जा सकता है। स्टार्टअप आइपीओ मार्केट ऊंचे वैल्यूएशन के साथ अपारदर्शी और जोखिम भरा होगा। यह वास्तव में वैसा बिल्कुल नहीं होगा जिसकी भारत में इंडिविजुअल इक्विटी निवेशक को जरूरत है।
धीरेंद्र कुमार