केंद्र समस्याओं के स्थायी समाधान के मूड में, आम बजट में मिलेगा रेल बजट
मोदी सरकार रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाएगी। इसके साथ ही रेलवे बोर्ड के भीतर दो हिस्से बनेंगे। इसके तहत नीति और योजना निर्माण के कार्य स्वतंत्र विशेषज्ञों को सौंपे जाएंगे, जबकि बोर्ड के अधिकारियों के पास केवल ऑपरेशन की जिम्मेदारी रह जाएगी।
नई दिल्ली, [संजय सिंह]। मोदी सरकार रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाएगी। इसके साथ ही रेलवे बोर्ड के भीतर दो हिस्से बनेंगे। इसके तहत नीति और योजना निर्माण के कार्य स्वतंत्र विशेषज्ञों को सौंपे जाएंगे, जबकि बोर्ड के अधिकारियों के पास केवल ऑपरेशन की जिम्मेदारी रह जाएगी।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार केंद्र ने रेलवे की तमाम जिद्दी समस्याओं के स्थायी समाधान का मूड बना लिया है। इसके लिए जो सबसे पहला उपाय सोचा गया है, वह है रेल बजट का आम बजट में विलय करने का है। इसका मकसद रेल मंत्रालय के राजनीतिक इस्तेमाल की गुंजाइश को हमेशा के लिए खत्म करना है।
सरकार का मानना है कि पृथक रेल बजट का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है। यह व्यवस्था 1924 में अंग्रेजों ने की थी। उन दिनों परिवहन में रेलवे की हिस्सेदारी 90 फीसद और यात्री परिवहन में 75 फीसद थी। आम बजट का अस्सी फीसद ब्योरा रेलवे से संबंधित होता था।
अब हालात उलट गए हैं। फिलहाल यात्री परिवहन में रेलवे की हिस्सेदारी घटकर 20 और माल परिवहन में 40 फीसद रह गई है। इसी के साथ आम बजट में रेलवे की हिस्सेदारी भी घटकर महज आठ फीसद पर आ गई है। रेलवे से बड़ी हिस्सेदारी तो रक्षा मंत्रालय की है, मगर उसका बजट अलग नहीं है। ऐसे में रेल बजट अपनी प्रासंगिकता खो चुका है।
इसके बावजूद रेल बजट का आम बजट में विलय आसान नहीं है। इसके लिए कई मोर्चों पर मशक्कत करनी पड़ेगी। कानूनी और तकनीकी पेंच सुलझाने होंगे। इसमें समय लग सकता है। लिहाजा अगले बजट सत्र में यदि विलय संभव न हुआ तो उसे 2016-17 के सत्र से लागू किया जाएगा।
पूरी तरह बदलेगी कार्यप्रणाली
इसके अलावा पुनर्गठन के जरिये रेलवे की कार्यप्रणाली को पूरी तरह बदला जाएगा। बोर्ड में बाहरी (निजी क्षेत्र समेत) विशेषज्ञों को लाने की तैयारी है। इन्हें नीति और योजना निर्माण का दायित्व सौंपा जाएगा। रेलवे अफसरों के पास केवल ऑपरेशन संबंधी जिम्मेदारियां रह जाएंगी। रेलवे में इन अभूतपूर्व सुधारों के संकेत पिछले रेल बजट में ही मिल गए थे। इसमें रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन कर नीति निर्माण और कार्यान्वयन को अलग किए जाने का प्रस्ताव किया गया था।
उसके बाद जिस तरह बिबेक देबराय समिति गठित की गई, सदानंद गौड़ा की जगह सुरेश प्रभाकर प्रभु को लाया गया तथा मेट्रोमैन ई श्रीधरन को रेलवे अफसरों की जवाबदेही तय करने का काम सौंप दिया उससे रेलवे यूनियनों की नींद उड़ गई हैं। देबराय पहले ही कह चुके हैं कि पुनर्गठन में कुछ भी हो सकता है। हाल में रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने भी यह कहकर खलबली मचा दी है कि रेलवे में जो सुधार होने वाले वाले हैं, वे बहुतों को बुरे लग सकते हैं, लेकिन ये होकर रहेंगे।
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