विकास मानकों पर राज्यों की रैंकिंग करेगा नीति आयोग
शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे सामाजिक विकास मानकों पर अब नीति आयोग राज्यों का मूूल्यांकन करेगा।
नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। आम तौर पर चुनाव से पहले राज्य मंे सत्तारूढ़ पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के लिए विकास के संबंध में तरह-तरह के दावे करती हैं लेकिन उनके दावों में कितनी सच्चाई है यह पता करना आम लोगों के लिए मुश्किल होता है। नीति आयोग अब ऐसी व्यवस्था बनाने जा रहा है जिससे यह पता करना बेहद आसान होगा कि विकास के मानकों खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कौन सा राज्य आगे है और कौन पीछे। साथ ही यह भी पता किया जा सकेगा इन बुनियादी सामाजिक सुविधाओं के मामले में किस राज्य में कितनी तरक्की हो रही है।
नीति आयोग सामाजिक विकास के प्रमुख मानकों पर राज्यों की रैंकिंग करने की तैयारी कर रहा है। इससे विकास के मामले में राज्यों में सत्ताधारी पार्टियों के दावों की हकीकत उजागर हो सकेगी। नीति आयोग के एक उच्च अधिकारी ने कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक विकास मानकों पर आधारित राज्यों की यह रैंकिंग अगले कुछ महीनों में शुरु हो सकती है। यह रैंकिंग हर तीन महीने पर आएगी और आनलाइन उपलब्ध होगी। आयोग विश्र्व बैंक के साथ मिलकर यह रैंकिंग तैयार करेगा।
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नीति आयोग ने इस प्रस्तावित रैंकिंग की रूपरेखा बुधवार को यहां राज्यों के मुख्य सचिवों की बैठक में रखी। असल में इस रैंकिंग की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि विगत वर्षो में भारत ने आर्थिक तरक्की तो की है लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के संबंध में उतनी प्रगति दिखाई नहीं दी है।
हालांकि माना जा रहा है कि नीति आयोग की इस पहल पर राज्यों की तीखी प्रतिक्रिया हो सकती है क्योंकि स्वास्थ्य राज्यों का ही विषय है। इस रैंकिंग में राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, गुणवत्ता और लोगों की पहुंच के आधार पर राज्यों का स्थान तय होगा। साथ ही इसमें शिक्षा से जुड़े हुए विभिन्न मानकों का भी राज्यों की स्थिति दी जाएगी।
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स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में राज्यों से 'हां' और 'ना' में उत्तर पूछा जाएगा। इसके बाद प्रत्येक राज्य के लिए हां में दिए गए जवाबों की संख्या को जोड़कर उसके आधार पर रैंकिंग तैयार की जाएगी। स्वास्थ्य सुविधाओं के संबंध में राज्यों से लगभग 85 सवाल पूछे जाएंगे। मसलन, किसी राज्य में नवजात मृत्यु में विगत वर्ष की अपेक्षा कम से कम 5 प्रतिशत की कमी आयी है कि नहीं।
इसी तरह राज्यों से यह भी पूछा जाएगा कि राज्य में सड़क दुर्घटनाओं के चलते मृत्यु की संख्या कम हुई है या नहीं। साथ ही राज्यों से यह भी पूछा जाएगा कि उनके यहां लोगों की डाइबिटीज या हाइपरटेंशन की जांच हुई है या नहीं। राज्यों ने अपने यहां डाक्टरों की संख्या बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए हैं, इस बारे में भी सवाल पूछे जाएंगे।