संप्रग शासन में कर्ज लेने को मजबूर हुए और अधिक परिवार
कुल चल-अचल संपत्ति मात्र 291 रुपये और कर्ज 5,587 रुपये। यह दास्तां है कर्ज में दबे अति गरीब शहरी परिवारों की। लेकिन शहर हो या गांव कर्ज में दबे परिवारों की संख्या बढ़ रही है। खास बात यह है कि संप्रग शासन में जब आर्थिक विकास दर रिकार्ड ऊंचाई पर
नई दिल्ली, [हरिकिशन शर्मा]। कुल चल-अचल संपत्ति मात्र 291 रुपये और कर्ज 5,587 रुपये। यह दास्तां है कर्ज में दबे अति गरीब शहरी परिवारों की। लेकिन शहर हो या गांव कर्ज में दबे परिवारों की संख्या बढ़ रही है। खास बात यह है कि संप्रग शासन में जब आर्थिक विकास दर रिकार्ड ऊंचाई पर थी, उस समय कर्ज में डूबे परिवारों की संख्या भी बढ़ रही थी। नेशनल सैंपल सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2002 से 2012 के दौरान कर्ज में डूबे परिवारों की संख्या में इजाफा हुआ है।
'भारत में ऋण और निवेश के मुख्य संकेतक' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार सबसे खराब स्थिति उन गरीबों की है, जिनके पास उनकी कुल चल-अचल संपत्ति के मूल्य की तुलना में कई गुना ज्यादा कर्ज है। शहरी क्षेत्रों में अति गरीब 10 फीसद परिवारों के पास औसतन मात्र 291 रुपये की कुल चल-अचल संपत्ति है, जबकि उन पर कर्ज 5587 रुपये है। इस तरह उनकी संपत्ति से लगभग 20 गुना अधिक कर्ज है। शहरों में 60 फीसद परिवार ऐसे हैं, जिनकी कुल चल-अचल संपत्ति एक लाख रुपये भी नहीं है जबकि इन पर भारी भरकम कर्ज है। दूसरी ओर से गांवों की दशा भी इससे भिन्न नहीं है। गांवों में हर पांचवां परिवार ऐसा है, जिसकी कुल चल-अचल संपत्ति एक लाख रुपये से कम है।
ऐसे किया आकलन
संपत्ति का आकलन जमीन, मकान, परिवहन के साधन, कृषि उपकरण, बैंक में जमा पूंजी, नकदी, शेयर इत्यादि के आधार पर किया गया है।
प्रचार के उलट हकीकत
कर्ज में डूबे परिवारों की संख्या ऐसे समय बढ़ी है जब संप्रग ने किसान कर्ज माफी और उच्च विकास दर के लिए वाहवाही लूटी थी। गरीबों के हाथ में पैसा जाने का भी दावा किया गया था। अब रिपोर्ट के नतीजे कुछ और ही कहते हैं।
इस तरह बढ़े कर्जदार
ग्रामीण क्षेत्र
* 2002 में सिर्फ 26.5 फीसद परिवार ही कर्ज में डूबे थे।
* 2012 में 31.44 फीसद परिवार कर्ज के बोझ से दब गए।
शहरी क्षेत्र
* 2002 में सिर्फ 17.8 फीसद परिवारों पर कर्ज था।
* 2012 में 22.4 फीसद परिवारों पर कर्ज आ गया।