सीसीआइ पर बढ़ी कंपनियों की निर्भरता
नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। आर्थिक सुस्ती के बावजूद फैसले लेने में मंत्रालयों की लेटलतीफी अब कंपनियों को नागवार गुजरने लगी है। कंपनियों ने अब परियोजनाओं को मंजूरी दिलाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की निवेश संबंधी समिति [सीसीआइ] के रूप में नया विकल्प तलाश लिया है। कंपनियों ने अपनी अटकी परियोजनाओं के संबंध में सीधे सीसीआइ के समक्ष
नई दिल्ली [नितिन प्रधान]। आर्थिक सुस्ती के बावजूद फैसले लेने में मंत्रालयों की लेटलतीफी अब कंपनियों को नागवार गुजरने लगी है। कंपनियों ने अब परियोजनाओं को मंजूरी दिलाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की निवेश संबंधी समिति [सीसीआइ] के रूप में नया विकल्प तलाश लिया है। कंपनियों ने अपनी अटकी परियोजनाओं के संबंध में सीधे सीसीआइ के समक्ष पेशबंदी शुरू कर दी है।
खासतौर पर बुनियादी ढांचागत क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं को लेकर कंपनियां मंत्रालयों के रवैये से बेहद खिन्न हैं। पर्यावरण, रक्षा, पेट्रोलियम मंत्रालयों की मंजूरी में देरी से इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की अधिकांश परियोजनाएं अटकी हुई हैं। इसके चलते कंपनियों ने सीधे सीसीआइ और प्रधानमंत्री कार्यालय में निवेश संबंधी परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए बने प्रकोष्ठ से संपर्क साधना शुरू कर दिया है।
सूत्र बताते हैं कि हाल ही में केयर्न ने अपने राजस्थान ब्लॉक में विस्तार से जुड़ी परियोजना के लिए सीसीआइ से मंजूरी की दरख्वास्त की है। तेल खोज व उत्पादन की परियोजना को वैधानिक मंजूरी देने के लिए कंपनी का आवेदन पेट्रोलियम, पर्यावरण और रक्षा मंत्रालय में लंबे समय से अटका हुआ है। कंपनी इसके जरिये राजस्थान ब्लॉक में 28 हजार करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। इस ब्लॉक से उत्पादन शुरू हो जाता है तो कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता घटेगी।
मंत्रालयों से मिलने वाली मंजूरी में हुई देरी की वजह से ही पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय मेगा स्टील कंपनी पोस्को ने कर्नाटक स्थित परियोजना से हाथ खींच लिए थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि खराब होती देख सरकार कंपनी को फिर से निवेश के लिए राजी करने की कोशिश कर रही है। सूत्र बताते हैं कि इस कोशिश का जल्द नतीजा दिख सकता है। इस सूरत में पोस्को का आवेदन भी सीधे सीसीआइ के पास जाने की संभावना है।
सीसीआइ फिलहाल 30 ऐसी परियोजनाओं पर विचार कर रही है, जो किसी न किसी मंत्रालय में मंजूरी के लिए लंबे समय से अटकी हुई है। इसके अलावा उद्योग चैंबर सीआइआइ और फिक्की मिलकर 100 से अधिक परियोजनाओं की सूची प्रधानमंत्री कार्यालय में बने प्रकोष्ठ को सौंप चुके हैं। कंपनियां मंत्रालयों की हीलाहवाली के चलते परियोजनाओं की बढ़ रही लागत को लेकर बेहद चिंतित हैं। केयर्न का ही उदाहरण लें तो कंपनी ने प्रोडक्ट शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट और ज्वाइंट ऑपरेटिंग एग्रीमेंट में संशोधन का प्रस्ताव भी सीसीआइ को सौंपा है। ये समझौते 1994 में हुए थे और उस वक्त की निवेश जरूरतों के लिहाज से किए गए थे। मगर अब कंपनी को नए निवेश से पहले इनमें बदलाव की आवश्यकता है। अगर सरकार कंपनी के इस प्रस्ताव को मंजूर करती है तो 13 हजार करोड़ रुपये का ताजा निवेश राजस्थान ब्लॉक में होने की उम्मीद है।