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मॉरीशस से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश घटा

देश में मॉरीशस से होने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) वर्ष 2013-14 की अप्रैल-जनवरी अवधि में घटकर आधा रह गया है। जनरल एंटी अवॉयडेंस रूल्स (गार) लागू होने पर इसके असर और टैक्स अवॉयडेंस संधि (डीटीएए पर दोबारा वार्ता की संभावना के चलते मॉरीशस से होने वाले निवेश में यह कमी आई है। अभी गार लागू नहीं हुआ ह

By Edited By: Published: Mon, 14 Apr 2014 09:31 AM (IST)Updated: Mon, 14 Apr 2014 09:35 AM (IST)

नई दिल्ली। देश में मॉरीशस से होने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) वर्ष 2013-14 की अप्रैल-जनवरी अवधि में घटकर आधा रह गया है। जनरल एंटी अवॉयडेंस रूल्स (गार) लागू होने पर इसके असर और टैक्स अवॉयडेंस संधि (डीटीएए पर दोबारा वार्ता की संभावना के चलते मॉरीशस से होने वाले निवेश में यह कमी आई है। अभी गार लागू नहीं हुआ है।

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समीक्षाधीन अवधि में इस देश से कुल 4.11 अरब डॉलर का एफडीआइ हासिल हुआ। वर्ष 2012-13 की समान अवधि में यह निवेश 8.17 अरब डॉलर रहा था। कॉरपोरेट लॉ फर्म अमरचंद एंड मंगलदास के टैक्स हेड और एफडीआइ विशेषा कृष्ण मल्होत्र ने कहा कि निवेशकों को चिंता है कि गार लागू होने पर उन्हें मौजूदा टैक्स लाभ नहीं मिलेगा।

इसके अलावा, डीटीएएपर दोबारा वार्ता शुरू होने के आशंका है। इससे डीटीएएमें ऐसे बदलाव हो सकते हैं जिससे फिलहाल मॉरीशस के निवेशकों को मिलने वाले टैक्स लाभ नहीं मिलेंगे। गार प्रावधान एक अप्रैल 2016 से लागू होने हैं। इसके तहत निवेशकों द्वारा टैक्स बचाने के लिए अपनाई जाने वाली तरकीबों की कड़ी निगरानी की जाएगी। गार के प्रावधान तीन करोड़ रुपये तक के टैक्स लाभ हासिल करने वाली इकाइयों पर लागू होंगे। डीटीएए समझौते के तहत टैक्स छूट का दावा करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों पर यह प्रावधान लागू होंगे।

भारत और मॉरीशस अपने डीटीएए समझौते की समीक्षा कर रहे हैं। मॉरीशस के रास्ते धन की राउंड टिपिंग होने के आरोपों के चलते यह समीक्षा की जा रही है। अब तक मॉरीशस भारत में सबसे ज्यादा निवेश करने वाला देश रहा है। वर्ष 2000 से 2014 के बीच मॉरीशस से कुल 77.77 अरब डॉलर का एफडीआइ आया है। देश के कुल एफडीआइ में मॉरीशस की हिस्सेदारी 37 फीसद है। आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-जनवरी 2013-14 में भारत में दूसरा सबसे ज्यादा निवेश सिंगापुर से 3.67 अरब डॉलर, ब्रिटेन से 3.18 अरब डॉलर, हॉलैंड से 1.7 अरब डॉलर और जापान से एक अरब डॉलर हुआ। विदेशी निवेश में कमी आने पर भारत के भुगतान संतुलन और रुपये की कीमत पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

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