असंतुलन दूर करने को सिरे से बदलनी होगी निर्यात की रणनीति
यही नहीं चीन में बढ़ती लागत के चलते बंद हो रही मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों को भी भारत में निवेश के लिए आमंत्रित करने की आवश्यकता इस नीति का हिस्सा हो सकती है।
नितिन प्रधान, नई दिल्ली। द्विपक्षीय व्यापार में चीन के दबदबे को समाप्त करने के लिए सरकार को निर्यात की अपनी रणनीति को सिरे से बदलना होगा। यही नहीं चीन में बढ़ती लागत के चलते बंद हो रही मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों को भी भारत में निवेश के लिए आमंत्रित करने की आवश्यकता इस नीति का हिस्सा हो सकती है।
चीन के औद्योगिक परिदृश्य में बीते दो साल में आए बदलाव के बाद भारत के लिए वहां के बाजार में अपनी हिस्सेदारी मजबूत करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं। चीन की कंपनियां मैन्यूफैक्चरिंग की लागत बढ़ने के चलते परेशानी में हैं। युआन के महंगा होने के बाद उनका निर्यात भी प्रतिस्पर्धा से बाहर हो रहा है। इसके मुकाबले भारत में अभी भी स्थितियां अनुकूल हैं। लिहाजा सरकार मान रही है कि भारतीय कंपनियां चीन के बाजार में उपभोक्ता सामान और अन्य वैल्यू एडेड सामान का निर्यात बढ़ा सकती हैं।
वैल्यू एडीशन के अभाव ने बढ़ाई भारत-चीन व्यापार की खाई
फियो के महानिदेशक अजय सहाय का मानना है कि चीन के निर्यात को कम करके द्विपक्षीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का यही एक विकल्प बचा है। चीन की कंपनियों यहां मैन्यूफैक्चरिंग इकाई लगाएं और वापस चीन को निर्यात करें। इससे भारतीय निर्यात में भी वृद्धि होगी और मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत विदेशी निवेश लाने में भी सफलता मिलेगी। सरकार काफी हद तक इस नीति पर अमल भी कर रही है। यही वजह है कि मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कुछ चीनी कंपनियों ने भारत में मैन्यूफैक्चरिंग शुरू भी कर दी है।
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत भी मानते हैं कि चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को काबू करने के लिए सरकार चीनी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित कर रही है। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा काफी अधिक है। इसलिए निवेश बढ़ाने और 'मेड इन इंडिया' को बदलकर 'इन्वेस्टेड बाय चाइना, मेड इन इंडिया' करने की जरूरत है। कांत ने कहा कि मैन्युफैक्चरिंग और ढांचागत क्षेत्र में चीनी कंपनियों के निवेश का स्वागत है।
जानकारों का मानना है कि चीन और भारत के व्यापार के असंतुलन को ठीक करने के लिए वहां से होने वाले आयातित उत्पादों के विकल्प भी तलाशने होंगे। मसलन इलेक्ट्रॉनिक सामान की भारत में मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ाकर इसका आयात कम किया जा सकता है। इसके अलावा भारी मशीनरी के घरेलू उद्योग की रफ्तार बढ़ाने की भी आवश्यकता है। यही नहीं बल्क ड्रग यानी दवाएं बनाने के लिए कच्चा माल और अन्य चिकित्सकीय रसायनों पर अभी भी भारत का दवा उद्योग चीन पर निर्भर है।
इसके विकल्प की तलाश भी बेहद आवश्यक है। वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक गैर जरूरी आयात को रोकने के लिए सरकार अब काफी सतर्क है और चीन से स्टील, उर्वरक और रसायनों की डंपिंग पर रोक की कार्रवाई को तेज किया गया है। दोनों देशों के आपसी कारोबार में वर्तमान में करीब 50 अरब डालर का अंतर है।