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अल्पसंख्यक कोटा अधर में

मुस्लिम कोटा कहे जाने वाले साढ़े चार फीसद अल्पसंख्यक आरक्षण पर राहत की जगह सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार खानी पड़ी। कोर्ट ने आरक्षण के तरीके पर नाराजगी जताते हुए सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए और कोटे का आधार तलब किया। शीर्ष अदालत ने आइआइटी सरीखे केद्रीय शिक्षण संस्थानो मे अल्पसंख्यको के लिए साढ़े चार फीसद कोटे के प्रावधान को खारिज करने के आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया।

By Edited By: Published: Mon, 11 Jun 2012 01:59 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jun 2012 03:40 AM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुस्लिम कोटा कहे जाने वाले साढ़े चार फीसद अल्पसंख्यक आरक्षण पर राहत की जगह सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार खानी पड़ी। कोर्ट ने आरक्षण के तरीके पर नाराजगी जताते हुए सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए और कोटे का आधार तलब किया।

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शीर्ष अदालत ने आइआइटी सरीखे केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में अल्पसंख्यकों के लिए साढ़े चार फीसद कोटे के प्रावधान को खारिज करने के आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।

हाल में संपन्न उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव के वक्त मुसलमानों को आरक्षण की सियासत केंद्र सरकार के गले में फंस गई है। कोर्ट ने सोमवार को आरक्षण की वजहें और संबंधित तथ्य देखने से पहले सरकार को कोई भी अंतरिम राहत देने से इन्कार कर दिया। मामले में अगली सुनवाई 13 जून को होगी। गत वर्ष दिसंबर में केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्ग के लिए तय 27 फीसद आरक्षण से अल्पसंख्यकों [विशेष तौर पर मुस्लिमों] को 4.5 फीसद आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। पिछले महीने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इसे धर्म आधारित बताकर रद कर दिया था। सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने अदालत से तत्काल राहत की मांग करते हुए कहा, आइआइटी में 325 छात्रों को इसका लाभ मिलने वाला है। वहां काउंसलिंग शुरू हो चुकी है अगर हाई कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगी तो उन्हें नुकसान होगा। कम से कम इन छात्रों को काउंसलिंग में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी जाए। वाहनवती ने हाई कोर्ट के आदेश को गलत बताते हुए कहा, 'यह कोई नया आरक्षण नहीं है बल्कि 1993 से पिछड़ों के लिए लागू 27 फीसद आरक्षण में से ही अल्पसंख्यकों को कोटा दिया गया है।'

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और जेएस खेहर ने वाहनवती से इसका आधार पूछा। पीठ का सवाल था कि क्या कोटा तय करने से पहले सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग या अल्पसंख्यक आयोग को मामला भेजा था? अटार्नी जनरल के यह कहने पर कि इसकी जरूरत नहीं थी, पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार इन विधायी संस्थाओं को कैसे नजरअंदाज कर सकती है? क्या 4.5 फीसद अल्पसंख्यक कोटा देने से 27 फीसद ओबीसी कोटा प्रभावित नहीं होगा?

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