जल संरक्षण: अब बूंद-बूंद का मोल समझने लगे हैं 123 गांव
यहां जल संरक्षण का अनोखा अभियान चल रहा वाटर हार्वेस्टिंग और ड्रिप इरिगेशन जैसे शब्द हर घर में समझे जाते हैं।
शशि कुमार मिश्र, बेतिया। बिहार में पश्चिम चंपारण जिले के 123 गांवों के लोग बूंद-बूंद पानी की कीमत समझने लगे हैं। सिंचाई में हर बूंद का अधिकतम उपयोग हो रहा है। यहां जल संरक्षण का अनोखा अभियान चल रहा वाटर हार्वेस्टिंग और ड्रिप इरिगेशन जैसे शब्द हर घर में समझे जाते हैं। इस इलाके में सिंचाई की परंपरागत व्यवस्था बदल रही है। यहां राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) जल संरक्षण जागरूकता अभियान चला रहा है।
पूरे बिहार की तरह पश्चिम चंपारण जिले के इन गांवों में अनियमित मानसून परेशान करता है। देर से बारिश से फसल चौपट हो जाती थी। सिंचाई पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता था। खेती घाटे का सौदा थी। किसान कर्ज तले दब जाते थे। किसानों की तकलीफ समझते हुए नाबार्ड की बेतिया इकाई ने क्षेत्र के 123 गांवों में जल संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान शुरू किया।
अब उसका फायदा दिख रहा है। नाबार्ड की टीम गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को कम से कम पानी में ज्यादा से ज्यादा सिंचाई के लिए प्रोत्साहित करती है। कैंप लगाकर किसानों को जल संरक्षण की आवश्यकता और सिंचाई के परंपरागत तरीके में बदलाव के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि वर्मी कंपोस्ट कैसे मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाने में सहायक है। वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से कैसे वर्षा जल को भविष्य के उपयोग के लिए संचित किया जा सकता है। विशेषज्ञ किसानों को सिंचाई के परंपरागत तरीकों में होने वाले पानी की बर्बादी की जानकारी भी देते हैं। उन्हें वैकल्पिक सिंचाई जैसे ड्रिप इरिगेशन व स्प्रिंकलर इरिगेशन के बारे में बताते हैं।
ड्रिप इरिगेशन में पौधों की जड़ों में पानी उपलब्ध कराया जाता है। वहीं स्प्रिंकलर में आवश्यकतानुसार्र ंसचाई के लिए जल की आपूर्ति की जाती है। पानी बचता है और फसल भी अच्छी होती है। मझौलिया प्रखंड स्थित रुलही गांव के किसान परशुराम सिंह ने एक हेक्टेयर में लगे केले के लिए ड्रिप इरिगेशन की व्यवस्था की है। नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक विवेक आनंद कहते हैं कि हम ग्रामीणों को पारंपरिक जलाशयों के जीर्णोद्धार के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।