जल संरक्षण है वक्त की मांग
जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। अफसोस है कि हमने जल की महत्ता को समझने में भूल की है।
ऋग्वेद में कहा गया है, ‘अप्सु अंत: अमृतं,अप्सु भेषजं’, अर्थात जल में अमृत है। इसमें औषधि गुण हैं। ऐसे में जरूरत है जल की शुद्धता को बनाए रखना। नि:संदेह जल व जीवन एक-दूसरे के पर्याय हैं। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। अफसोस है कि हमने जल की महत्ता को समझने में भूल की है। इसके संरक्षण और संतुलन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। परिणास्वरूप आज पूरा विश्व जल संकट से जूझ रहा है। बावजूद इसके हम अपने कृत्यों से बाज नहीं आ रहे और जल रूपी अमृत में जहर घोलकर जल संकट के साथ-साथ जल जनित बीमारियों को भी दावत दे रहे हैं।
वैज्ञानिकों का मत है कि यदि यही हालात रहे, तो निश्चित रूप से अगला विश्व युद्ध जल को लेकर होगा। मानव के लिए यह उपयोगी जल बेकार न चला जाए, इसके लिए इसका संरक्षण किया जाना आवश्यक है। अनेक देशों में बारिश के जल को संरक्षित करने के उपायों पर काम हो रहा है। वहां पर वर्षा जल को घर की छतों पर रोककर पाइपों द्वारा घर के नीचे बनी टंकी में एकत्र किया जाता है। आज यह जरूरी हो गया है कि हम भूमि पर अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएं, ताकि पानी के अवांछित बहाव को रोका जा सके।
नलों से भी अनावश्यक पानी के बहाव पर अंकुश लगाने की दरकार है। यदि पानी को पुन: चक्रण विधि द्वारा प्रयोग किया जा सके, तो यह प्रयास उत्तम होगा। रहीम ने कहा था, ‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून, पानी गये न ऊबरे मोती, मानुष चून।’ अत: हमें जल क्रांति लानी होगी। पानी की महत्ता के बारे में जागरूक होना होगा। वेदों और शास्त्रों में जल की शुचिता और संरक्षण के जो उपाय दिए गए हैं, उन्हें अपनाना होगा।
-खीम सिंह, प्रधानाचार्य, हरगोविंद सुयाल सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज कुसुमखेड़ा, हल्द्वानी
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