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पीढ़ी दर पीढ़ी बदला मां का पहनावा पर 'ममत्व' वैसा ही सरल, सहज

पीढिय़ों दर पीढिय़ों बड़े बदलावों ने मां के पहनावे और उनमें आउटलुक को तो बदला, पर 'ममत्व' तो वैसा ही सरल, सहज और सपाट है। गहरा सुकून है, बड़ा भरोसा है, मजबूत संबल है, अभेद्य सुरक्षा का अहसास है तो फिर बच्चा बन दुबकने की मुकम्मल गोद है 'मां'। तुम्हें शब्दों में कैसे पिरोऊं... मां। मेरी भाषा और परिभाषा हो तुम... पल भर में 'बच्चे' को समझने, समेटने और सहेजने का हुनर 'मां' को खूब मिला है। तभी तो समूचा ब्रह्मांड है मां...

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Fri, 12 May 2017 06:10 PM (IST)Updated: Wed, 07 Jun 2017 06:28 PM (IST)
पीढ़ी दर पीढ़ी बदला मां का पहनावा पर 'ममत्व' वैसा ही सरल, सहज
पीढ़ी दर पीढ़ी बदला मां का पहनावा पर 'ममत्व' वैसा ही सरल, सहज

'उई मां' कहने की आदत आज भी वैसी ही है

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किसी भी चोट और परेशानी में 'उई मां' कहने की आदत आज भी वैसी ही है जैसी तब होती थी जब, 'हम घुटनों के बल चलते थे, जब साइकिल से गिरते थे, जब एग्जाम में रांग अटैम्प्ट लेते थे तो तब भी जब प्रोफेशनल चूक होती थी। ...पीढिय़ों दर पीढिय़ों बड़े बदलावों ने मां के पहनावे और उनमें आउटलुक को तो बदला, पर 'ममत्व' तो वैसा ही सरल, सहज और सपाट है। भूख लगने पर मां की दौड़ वैसी ही है जैसी कल थी। बस यही तो तिलिस्म है मां की दुनिया का। 

मां है तो सब है 

मां, वह विशाल वटवृक्ष है जिसकी छांव में बैठ हर पहेली चुटकियों में सुलझ जाती है...। न कुछ कहना, न मांगना, न समझाना। बस एक ऐसा सपोर्ट सिस्टम जो अडिग है, जो हर हाल में बच्चे के साथ है। भुवनेश्वर की शुभ्रालक्ष्मी कहती हैं 'मैंने अपनी मां को कभी कुछ नहीं बताया, पर न जाने कैसे उन्हें हर वो बात सबसे पहले पता चल जाती है, जो मैं ज्यादा छिपानी चाहती हूं...। मेरे लिए तो वो दुनिया का बेहतरीन 'रिलैक्सिंग प्वाइंट' हैं।' वाकई... याद आता है जब हर फिजीशियन कहता है, 'वजन पर ध्यान दो, बढऩे न पाए...।' तब मां कहती हैं बेटा, डाइट पर ध्यान दो... कमजोर लग रही हो... और मन मंद-मंद मुस्कराता है मां की इस नई हेल्थ रिसर्च पर। हर सफलता और विफलता में समान रूप से डटी रहने वाली मां रूह को तृप्त करती है। हर उपलब्धि में मां का अंश नजर आता है। कहीं तालियां गडग़ड़ाती हैं तो मां के सृजन को आत्मा स्वत: नमन करती है। 

पुरानी पीढ़ी की मां 

'हास्टल जब जाना होता था तो मां स्टील के डिब्बे में अपने हाथों से बने पेड़े देना कभी नहीं भूलीं...। अब तो बहुत बूढ़ी हैं मां, मुश्किल से दिखता है, पर अंगुलियों से टटोल पहचान लेती हैं और कंपकपाती आवाज में कहना नहीं भूलती अब रुकना थोड़े दिन...' बताती हुई सुमन रो पड़ीं। सच है, पहले की मांएं आज की मांओं जितनी मुखर नहीं थीं, पर बड़े-बड़े परिवारों और रिश्तों को संभालने के बाद भी बच्चों का ध्यान रखना नहीं भूलीं। कब किसे गुड़-मट्ठा देना है तो छुटकी को सत्तू पसंद हैं तो किसे सिर पर तेल लगाने से आराम मिलेगा उन्हें बखूबी पता था। लीगल एडवाइजर हैं सीमा। वह कहती हैं 'मां, गांव में रहती थीं, पर उन्होंने हमें हमेशा रूढि़वादिता और ढोंग से दूर रखा...। सख्त अनुशासन और व्यवस्थित जीवन का वह पाठ पढ़ाया कि हम सब भाई-बहन आज पूर्ण सफल हैं...। धन की कद्र, रिश्तों की समझ उन्होंने कुशलता से विकसित की।' 

पहले की मांएं ऐसी ही होती थीं... क्षण भर पास बैठ सदियों की दौलत उड़ेल देती थीं। दुनिया के हर थर्मामीटर को धता बता मन के ताप को नाप गहरी शीतलता दे देती थीं। 

सुपर वूमेन है आज की मां 

आज की मां बड़ी तेज भागती है अपने बच्चों के लिए। उसकी टिप्स पर होती है सारी पैरेंटिंग। हर क्षेत्र पर पैनी नजर। क्या खाएं, न खाएं पर कमांड और पल भर में एजूकेशनल वीडियोज को डाउनलोड कर देना...। नोएडा में रहती हैं सौम्या। वह कहती हैं, 'मेरे हसबैंड टूर पर रहते हैं। इसलिए महीनों सिंगल पैरेंटिंग करनी पड़ती है मुझे, पर मैंने खुद को ट्रेंड कर लिया है... अब सब कुछ ईजी है।' गौर से देखिए तो पता चलता है पुरानी भावनाएं, वही केयर, समान चिंताएं, पर आधुनिक लिबास के साथ, ज्यादा कार्यकुशलता के साथ यही है 'आज की मां...।' 

माडर्न मदर्स के सामने चुनौती भी बहुत बड़ी है। ऐसे में उनकी रफ्तार तेज होना स्वाभाविक है। हैदराबाद की गायत्री कहतीं हैं, 'मेरी मां ने मुझे अकेलेे पाला है...। हर छोटी बात पर पूरा फोकस है उनका आज भी। मेरा सिलेबस, डाइट, ड्रेसिंग और फ्रेंडस सब कुछ मां ने चुना मेरे लिए। मम्मा मेरी रियल हीरो हैं जिसे मैंने कभी उदास और निगेटिव होते नहीं देखा।' यही है 'मदर्स डे', जब मां और बच्चे सेलीब्रेट कर सकें उस रिश्ते को जो है तो सारी दुनिया है, सारी कायनात है और हम खुद हैं। 

जब जनमती है मां 

लेबर बेड पर लेटी स्त्री जब 'बच्चा स्वस्थ है' सुनती है, ठीक तभी 'मां' का भी जन्म होता है...। उसकी पूरी दुनिया हौले से मुस्करा देती है और वह धीरे से खुद को तैयार करती है नन्हीं जान को सहेजने के लिये...। मातृत्व बड़ी जिम्मेदारी है। एक कुशल मां ध्यान रखती है कि उसका खुद का व्यवहार, उसका व्यक्तित्व, उसकी हैंडलिंग परफेक्ट हो, क्योंकि मां अपने बच्चों की सर्वोत्तम ट्रेनिंग एकेडेमी है, जहां से उसके बच्चे अच्छे नागरिक, प्रखर पेशेवर, परफेक्ट जीवनसाथी और संतुष्ट व्यक्ति बन निकलते हैं। 

मां... 

कल ही तो पुराने सामान में तुम्हारी सिलाई मशीन का स्टिचिंग बाक्स मिल गया...। पुराना, थोड़ा पिचका, उड़े हरे रंग का वह बाक्स हाथ में लिए बहुत देर टटोलती रही कि कब मैं इसे अपने सीने से चिपका कर बैठ सकूं...। सब कुछ तो है, भरा-पूरा घर, अच्छा कॅरियर और खुश भी हूं, पर फिर भी गाहे-बगाहे तुम आंखों में छलक पड़ती हो...। तुम्हारा पूरा साम्राज्य ज्यों का त्यों। बस समेटने वाली 'मां' तुम नहीं हो...। अब कुछ तबियत भारी रहती है...। याद आता है जब तुम बीमार रहती थीं तो तुम्हें मेरी चिंता हर पल परेशान करती थी...। मुझे भी आज वही चिंता अपनी बेटी की रहती है...। मन करता है तुम होती तो बैठती तुम्हारे पास...। शायद मेरी उम्र भी कुछ और बढ़ जाती। 

लकी चतुर्वेदी बाजपेई

लेखिका साइकोलॉजिकल काउंसलर व कार्पोरेट ट्रेनर हैं  


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