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कलाम को दिल्ली का सलाम

आकाश की तरफ देखिए हम अकेले नहीं है सारा ब्रह्मांड हमारे साथ है...ऐसे अनमोल वचन। रामेश्वरम से लेकर रायसिना हिल्स तक। उनके दुनिया से रुखसत होने के बाद भी देश ही नहीं दुनिया जिनकी मुरीद है। ये शख्स हैं डॉ.अबुल पाकिर जैनलाबुद्दीन अब्दुल कलाम।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 17 Oct 2016 11:41 AM (IST)Updated: Mon, 17 Oct 2016 11:57 AM (IST)
कलाम को दिल्ली का सलाम

दिल्ली हाट स्थित कलाम मेमोरियल। यह पता महज डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की यादों का बसेरा ही नहीं है बल्कि उनके जीवन के महत्वपूर्ण लम्हों की कहानी है। इस स्मृति घर में प्रवेश करते ही असाधारण व्यक्तित्व वाले डॉ. कलाम के जीवन से मिलने का मौका मिलता है। संग्रहालय में प्रवेश करते ही बाईं ओर लोग उनके विजन 2020 से मुखातिब होते हैं। जिसमें युवाओं को प्रेरित करती बातें हैं, पास की दीवार पर एक बड़ी स्क्रीन है जिसमें उनके जीवन की उपलब्धियों की छोटी फिल्म देखी जा सकती है। दाईं ओर कलाम साहब से मुलाकात करने वाले नन्हे बच्चों के अनुभव साझा किए गए हैं। शिक्षक के रूप में वे काफी लोकप्रिय रहे उनसे जुड़ी कई चीजें यहां देखी जा सकती हैं। कांच के फ्रेम में रखी उनकी नीले रंग की टी-शर्ट, तीन कंघी, चश्में, और दो धोती, कुछ किताबें, स्टील का कॉफी गिलास, प्लेट, कटोरी, दो सफारी सूट, चमकीली टोपी, कुछ अवार्ड, टाई, बेल्ट, और उनकी हस्त लिखित

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टिप्पणियां आदि आदि सब सजे हैं। लोगों को कलाम साहब की अनुभूति करा रहे हैं। डॉ.कलाम का डीआरडीओ के वैज्ञानिक से लेकर मिसाइल मैन कहलाने तक के सफर को भी एलईडी स्क्रीन के जरिये बयां किया गया है। इसके अलावा दीवारों पर कुछ तस्वीरें भी लगी हैं जिसमें उनका एयरफोर्स प्रेम भी झलकता है। दरअसल, वे एयरफोर्स में पायलट बनना चाहते थे लेकिन उनका चयन नहीं हो सका जिसके बाद निराश होकर वे ऋषिकेश में एक संत से मिले। उस संत ने उनको समझाया और वे फिर से अपने मिशन में जुट गए। डीआरडीओ हैदराबाद में वैज्ञानिक के तौर पर काम करना शुरू किया, 1980 में उनकी मेहनत रंग लानी शुरू हुई। एक वैज्ञानिक से इतर दूसरे सेक्शन में उनके व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलू को दर्शाए गए हैं। वे कर्नाटकी संगीत काफी पसंद करते थे। वीणा बजाते थे और उन्हें श्रीराग सुनना और बजाना बेहद भाता था। हैदराबाद की रहने वाली कल्याणी से उन्होंने वीणा बजानी सीखी थी और स्टेज पर प्रस्तुती भी दी थीं। तो वहीं अगले सेक्शन में आगे बढ़ेंगे तो जीवन के प्रति उनका क्या नजरिया है इसे दर्शाया गया है। वे दार्शनिक रुमी, लुईश फिशर, भागवत गीता, जपुजी साहिब, रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मागांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्हें पढऩे के साथ लिखने का भी शौक था इसलिए उन्होंने कई किताबें लिखी जिसमें से उनकी आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर, इगनेटेट माइंड्स, टर्निंग प्वाइंट, विजन 2020 चर्चित किताबें रहीं। इन सभी किताबों के साथ जिन किताबों को वो पढ़ा करते थे वे भी यहां प्रदर्शित की गई हैं। उनके राष्ट्रपति भवन के सफर को भी चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है। उन्होंने अशोका हॉल की सीलिंग की पेंटिंग्स को दोबारा पेंट करवाने की पहल की। इसके साथ उन्होंने राष्ट्रपति भवन के पेड़ों पर भी किताबें लिखीं। उन्हें गुलाब बेहद पसंद था इसलिए मुगलगार्डन में गुलाब की कई किस्म विकसित की गईं। उन्होंने इस काम को करने वाले माली के वेतन को भी बढ़ाने के निर्देश दिए क्योंकि उनके मुताबिक नया सृजन करने वाला अलग और विशिष्ट होता है। राष्ट्रपति होने के बावजूद वे वहां के माली और दूसरे कर्मचारियों के साथ भोजन भी करते थे। इस संग्रहालय के संरक्षक एस सैमसन बताते हैं कि उनकी पहली पुण्य तिथि 27 जुलाई के अवसर पर इस संग्रहालय की शुरुआत की गई, उस समय उनके साथ रहने वाले कई लोगों ने शिरकत की थी और अपनी यादें साझा की थीं।

डॉ. कलाम सरल, सादगी के साथ जीवन व्यतीत करते थे।

गलियारों में उनके लिखे कुछ प्रेरणा देने वाले शब्दों को दिखाते हुए बताते हैं कि वे इतने बड़े व्यक्तित्व होते हुए भी खाना अपने हाथों से पका कर खाते थे जबकि उनके दूसरे वैज्ञानिक साथी पांच सितारा होटल से मंगा कर खाना खाया करते थे। अपने हाथों से पकाई गई इडली डोसा सभी को खिलाते भी थे और अपने खाली समय में किताबों के साथ समय बिताते थे।

उनकी यादों से आबाद राष्ट्रपति भवन डॉ. कलाम वैज्ञानिक होने के नाते आज की तकनीक को काफी पसंद करते थे। इसलिए राष्ट्रपति भवन में विकसित संग्रहालय में उनकी उपलब्धियों के साथ साथ उनके द्वारा उपयोग में लाई गई कई चीजें भी प्रदर्शित की गई हैं। यहां भी उनके चंद कपड़े, कलम, कुरआन, चश्मे के साथ उनकी वीणा को देखा जा सकता है। थ्रीडी तकनीक के माध्यम से उन्हें देखा और सुना भी जा सकता है। उनकी पसंदीदा एयरफोर्स की वर्दी में उनका कटआउट बोलता सा प्रतीत होता है।

कुछ इस तरह बन पड़ा कलाम सूट

अजमल खां रोड पर स्थित फेयर डील शॉप के संचालक अमन जैन बताते हैं कि डॉ अब्दुल कलाम से 21 साल पहले उनके सरकारी आवास पर मुलाकात हुई थी। वह भी उनके सूट का नाप लेने के लिए। कलाम साहब तब डीआरडीओ में कार्यरत थे तभी से यहां सूट सिलवाने आने लगे। वो मीडियम लाइट रंग ही पहनते थे। राष्ट्रपति भवन के बाद 10 राजाजी मार्ग स्थित आवास पर उनका नाप लेने जाता रहा हूं। जब भी उनके पास गया उन्होंने खाना खिलाए बगैर नहीं जाने दिया। इतने बड़ी हस्ती लेकिन सभी को सम्मान देते थे। यहां तक की दूसरे लोगों से भी आपका परिचय करवाते थे। कलाम जी साल में दो से तीन सूट सिलवाते थे। एक बार कलाम सर को सूट का साइज तो पसंद आया लेकिन उनके गले के पास से साइज कुछ छोटा था। चूंकि सूट गलाबंद था इसलिए गले पर लगा बटन उनको तकलीफ दे रहा था। उन्होंने तब कहा अमन अगर गला ही बंद होगा तो राष्ट्रपति देश को कैसे संबोधित करेगा, देशवासियों से बातें कैसे करेगा। जिसके बाद उनके सूट को ओपन नेक में तब्दील कर दिया। उसके बाद तो उनका सूट कलाम कट के नाम से मशहूर हो गया था। उसके बाद उनके सूट के डिजाइन को कई लोग सिलवाने लगे।

डॉ कलाम को पेड़ों के बीच रहना बेहद पसंद था डॉ. कलाम के साथ मुझे 25 साल काम करने का मौका मिला। लेकिन इस सफर में वे कभी बदले नहीं। जो भी उनसे मिलता वो प्रभावित जरूर होता था क्योंकि वे सभी से आत्मीयता से मिला करते थे। चाहे वो अधिकारी हो या फिर आम आदमी। उनके नजर में सभी बराबर थे। अधिकारियों और अपने स्टाफ को भी कभी नहीं टाला करते थे।

कभी किसी से यह नहीं कहा कि इस फाइल को कल देखूंगा या किसी से कल मुलाकात करेंगे। जो आ गया उससे उसी तरह प्यार से मिलेंगे। साल 1991 में जब वे दिल्ली आए तो उनको एशियाड विलेज में सरकारी फ्लैट दिया गया, वहां भी उन्होंने कई पेड़ लगाए। उनका दफ्तर विज्ञान भवन में हुआ करता था लेकिन इस रास्ते पर भी पेड़ों और लोगों को निहारते जाते थे। टीवी देखना उनके हिसाब से वक्त की बर्बादी था, इसलिए उन्होंने कभी टीवी नहीं खरीदा और न ही रखा। वे शाकाहारी भोजन ही खाया करते थे इसलिए बाहर खाना उन्हें पसंद नहीं था वे किसी के घर भी कम ही आना जाना करते थे। लेकिन स्कूलों में लेक्चर देने के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे। युवाओं और बच्चों से गुफ्तगू करना उन्हें बेहद पसंद था। वे प्रकृति प्रेमी रहे इसलिए एशियाड विलेज, साउथ ब्लॉक, राष्ट्रपति भवन और 10 राजाजी मार्ग आवास पर उन्होंने पेड़ लगाए जो आज भी मुस्कुराते हैं। राष्ट्रपति भवन में उन्होंने नेत्रहीन लोगों के लिए महकता हुआ उद्यान तैयार किया।

पेड़ लगवाए। उनकी उपलब्धियों के कारण उन्हें देश में ही नहीं विदेश में भी कई जगह सम्मानित किया गया।

-हैरी शेरीडन, निजी सचिव, डॉ. एपीजे अब्दुल कला राजनेताओं को अलग नाम से पुकारते थे दादा 10 राजा जी मार्ग पर डॉ कलाम के साथ सात साल रहने का मौका मिला। वे जैसे परिवार वालों के लिए थे वैसे ही लोगों के लिए भी थे। एक बार वो मेरे पास बैठे थे तो उन्होंंने एक सवाल कर दिया कि आंगन में लगे तीन अशोक के पेड़ों में क्या अंतर दिखाई दे रहा है? मैं सोचने लगा और ध्यान से पेड़ों को देखने लगा मुझे कोई अंतर नजर नहीं आया लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि तीनों पेड़ एक दूसरे से अलग हैं। एक पेड़ पर कबूतरों का बसेरा है, तो दूसरे पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता, तो तीसरे चील बैठती है। इसलिए हर एक पेड़ का अपना महत्व है। इसी तरह जब कोई भी छात्र गलती करता था तो उसे समझाने का उनका अलग ही तरीका होता था। हंसते हंसते ही गलती का बोध करवाते थे। दादा के रूप में भी वे बेहद स्नेही रहे। फुर्सत के लम्हों में वे मजाक भी किया करते थे। खासकर राजनेताओं पर वे काफी चर्चा करते थे और उन्हें अलग नामों से भी पुकारते थे क्योंकि उन्हें हिंदी के नाम ज्यादा याद नहीं रहते थे।

-शेख सलीम, डॉ. कलाम के भाई के पौत्र

विजयालक्ष्मी, नई दिल्ली


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