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तुलसीदास के लखनऊ आने पर मतभेद है विद्वानों में

लखनऊ की ऐशबाग रामलीला समिति प्रधानमंत्री की मेजबानी के उत्साह में अपनी रामलीला को 600 वर्ष पुरानी एवं गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित बता रही है। लेकिन रामकथा के विशेषज्ञ विद्वान इससे सहमत नहीं हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 11 Oct 2016 04:14 AM (IST)Updated: Tue, 11 Oct 2016 04:27 AM (IST)
तुलसीदास के लखनऊ आने पर मतभेद है विद्वानों में

मुंबई [ ओमप्रकाश तिवारी ]। लखनऊ की ऐशबाग रामलीला समिति प्रधानमंत्री की मेजबानी के उत्साह में अपनी रामलीला को 600 वर्ष पुरानी एवं गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्थापित बता रही है। लेकिन रामकथा के विशेषज्ञ विद्वान इससे सहमत नहीं हैं।
गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस लिखने की शुरुआत संवत 1631 (1574 ईसवी) में अयोध्या में की। इस ग्रंथ के अंतिम कुछ अध्याय काशी में तुलसीघाट पर लिखे गए। इसके 16 वर्ष बाद 1590 ईसवी में तत्कालीन बादशाह अकबर के काशी आकर तुलसीदास से मिलने की घटना का उल्लेख मिलता है। राजस्थान के एक संग्रहालय में संरक्षित एक पेंटिंग में बादशाह अकबर की तुलसीदास से मुलाकात का दृश्य दिखाया है। इस चित्र के ऊपर तुलसीदास रचित कवितावली का एक कवित्त भी लिखा है।
अकबर - तुलसीदास की मुलाकात की पृष्ठभूमि में किसी नाट्यलीला का दृश्य भी दिखाई दे रहा है। इसलिए माना जाता है कि रामचरित मानस रचने के बाद तुलसीदास अपने द्वारा स्थापित तुलसी अखाड़ा में रामचरित मानस का मंचन शुरू करवा चुके थे। उससे पहले काशी के ही कामाख्या क्षेत्र में रहनेवाले उनके मित्र मेघा भगत वाल्मीकि रामायण के आधार पर रामलीला का मंचन करते थे। लेकिन वह लोगों में उतनी लोकप्रिय नहीं थी। रामचरित मानस रचने के बाद तुलसीदास ने मानस के आधार पर रामलीला मंचन का आग्रह मेघा भगत से किया। अवधी भाषा में लिखे इस ग्रंथ के आधार पर रामलीला मंचन से ही यह लोगों में लोकप्रिय होनी शुरू हुई।
तुलसीदास के समय से चली आ रही तुलसी अखाड़ा रामलीला समिति के संयोजक डॉ. विजयनाथ मिश्र कहते हैं कि रामचरित मानस पूर्ण होने के बाद से अब तक लगभग 425 वर्ष ही पूरे हो रहे हैं। ऐसे में तुलसीदास द्वारा 600 या 500 वर्ष पहले लखनऊ के ऐशबाग में जाकर रामलीला मंचन शुरू करवाने का दावा तर्कसंगत नहीं लगता। रामकथा की पांडुलिपियों का बड़ा संग्रह रखनेवाले भदोही जनपद के डॉ. उदयशंकर दुबे भी तुलसीदास के लखनऊ जाने को लेकर संदेह जताते हैं। उनके अनुसार तुलसीदास के पूरे जीवनकाल में उनके लखनऊ जाने का प्रमाण नहीं मिलता। ना ही 500 - 600 वर्ष पहले के इतिहास में लखनऊ का उल्लेख किसी ऐसे नगर के रूप में मिलता है, जहां तुलसीदास गए हों।

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