डायन के नाम पर हो रही हत्याओं के खिलाफ खड़ी हैं बीरूबाला
डायन के नाम आए दिन महिलाओं की हत्या होती रही हैं। इस तरह की हत्याओं के विरोध में असम में बीरूबाला नाम की महिला डटकर खड़ी हैं।
मुंबई [ ओमप्रकाश तिवारी ]। देश के पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में डायन के नाम आए दिन महिलाओं की हत्या होती रही हैं। इस तरह की हत्याओं के विरोध में असम में बीरूबाला नाम की महिला डटकर खड़ी हैं। उनके इस योगदान के लिए उन्हें वन इंडिया अवार्ड से नवाजा गया है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर भरोसा करें तो 1991 से 2010 के बीच पूरे देश में 1700 महिलाओं को डायन बताकर मार डाला गया। असम भी इस समस्या से अछूता नहीं है। महिलाओं की इसी दुर्दशा ने असम के जनजातीय समाज की बीरूबाला राभा को इस कुप्रथा के विरुद्ध लडऩे के लिए प्रेरित किया। अब तक अपने संघर्ष से वह 50 से अधिक महिलाओं की जान बचा चुकी हैं।
वर्ष 2000 में इस कुप्रथा से उनका पहली बार सामना हुआ। उनके गांव ठाकुरविला एवं उसके आसपास के गांवों की पांच महिलाओं को डायन घोषित किया जा चुका था। इस समस्या का सामाजिक हल निकालने के लिए असम महिला समता सोसायटी की जिला संयोजक ममानी सैकिया ने एक बैठक बुलाई थी। सैकिया ने इस बैठक में मौजूद महिलाओं से पूछा कि क्या वे भी महिलाओं को डायन मानती हैं? पूरी सभा में सन्नाटा छाया रहा। किसी ने जवाब नहीं दिया। लेकिन बीरूबाला राभा ने दृढ़तापूर्वक आरोप का खंडन किया।
बीरूबाला के उत्तर ने उन्हें मुसीबत में डाल दिया। उनके रिश्तेदारों ने ही उन्हें डायन कहना शुरू कर दिया। उन्हें गांव से निकालने की कोशिशें शुरू हो गईं। बीरूबाला ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने गांव-गांव घूमकर ऐसी महिलाओं के लिए लडऩा शुरू कर दिया। 2011 में इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए 'मिशन बीरूबाला' की शुरुआत की जा चुकी है। जिसमें कई युवा एवं छात्र संगठन भी जुडऩे लगे हैं। बुधवार को पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए सामाजिक काम कर रहा संगठन 'माई होम इंडिया' ने मुंबई में सातवें 'वन इंडिया अवार्ड' से उन्हें सम्मानित किया।