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पुणे में कांग्रेस को अपनों से खतरा

By Edited By: Published: Wed, 16 Apr 2014 01:49 AM (IST)Updated: Wed, 16 Apr 2014 01:15 AM (IST)
पुणे में कांग्रेस को अपनों से खतरा

ओम प्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में कांग्रेस के युवा प्रत्याशी विश्वजीत कदम को भाजपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से तो खतरा है ही, सुरेश कलमाडी ने भी पार्टी के लिए उतनी ही परेशानी खड़ी कर दी है।

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सुरेश कलमाडी पुणे से वर्तमान सांसद हैं। वह यहां से 1996 व 2004 में भी लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में उनका नाम आने के बाद वह कांग्रेस से निलंबित चल रहे हैं। इस बार के लोस चुनाव में पुणे पर पकड़ बनाए रखने के लिए कलमाडी ने अपनी पत्नी का नाम आगे बढ़ाया था, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने उनकी नहीं सुनी। कलमाडी ने तर्क दिया कि जब अशोक चह्वाण और पवन बंसल को टिकट दिया जा सकता है। लालू यादव से चुनाव पूर्व समझौता किया जा सकता है, तो उन्हें या उनकी पत्नी को टिकट क्योंनहीं दिया जा सकता। आलाकमान ने उनके इस तर्क को ठुकराते हुए युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विश्वजीत कदम को टिकट दे दिया। कलमाडी निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बना रहे थे, फिर इरादा त्याग दिया। अब घोषित तौर पर तो वह कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जानने वालों का स्पष्ट मानना है कि विश्वजीत कदम को एक बार जितवा कर वह पुणे की अपनी जमीन सदा के लिए बिल्कुल नहीं खोना चाहेंगे।

कांग्रेस उम्मीदवार कदम को दूसरा बड़ा खतरा राज्य में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से है। पुणे जिले की ही बारामती लोकसभा सीट शरद पवार की घरेलू सीट है। जिले से सटी एक और लोस सीट मावल पर भी राकांपा ही चुनाव लड़ रही है। ऐसी स्थिति में बीच की एक सीट कांग्रेस के लिए छोड़ना राकांपा को हमेशा खटकता रहा है। इसलिए पुणे में कांग्रेस को अपनी सहयोगी राकांपा का पूरा समर्थन मिल पाना मुश्किल हीहै। कांग्रेस की इन अंदरूनी कमजोरियों में विश्वजीत कदम का बाहरी प्रत्याशी होना भी उसे बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है। उनके मुकाबले भाजपा प्रत्याशी अनिल शिरोले एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना उम्मीदवार दीपक पायकुड़े स्थानीय होने के कारणज्यादा मजबूत दिखाई दे रहे हैं।

पुणे ब्राह्मण मतदाताओं का भी बड़ा केंद्र है, जो परंपरागत रूप से भाजपा से जुड़ा रहा है। उक्त तीनों मराठा उम्मीदवारों में यदि भाजपाई मराठा के साथ यह वर्ग भी जुड़ गया तो कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ी समझिए।


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