चुनाव ल़डने की मशीन हो गए हैं राजनीतिक दल : सहस्रबुद्धे
'मौजूदा राजनीतिक दल चुनाव ल़डने की मशीन होकर रह गए हैं। लोकतंत्र को हमने चुनावी संघर्ष में बदल दिया जबकि इसका प्राण 'लोक' ही लापता हो गया।'
भोपाल, ब्यूरो। 'मौजूदा राजनीतिक दल चुनाव ल़डने की मशीन होकर रह गए हैं। लोकतंत्र को हमने चुनावी संघर्ष में बदल दिया जबकि इसका प्राण 'लोक' ही लापता हो गया।' ये कहना है भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं मप्र प्रभारी डॉ. विनय सहस्रबुद्धे का। वे विधानसभा में आयोजित तीन दिनी लोकमंथन के दूसरे दिन रविवार को 'लोकतंत्र में लोक का स्थान और उसकी भूमिका सहकारिता व विकेंद्रीकरण का अनुभव' विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने चुनाव पद्धति और राजनीतिक दलों के संचालन पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि देश में ब़डे नोट बंद होने पर कुछ लोग राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश के परिवार केन्द्रित दलों पर तंज भी कसा। बोले कि 30 साल बाद दल का अध्यक्ष कौन होगा, यह अभी बता सकता हूं, यह दुर्गति है।
हम सब एक हैं का नारा बेमानी
डॉ सहस्रबुद्धे ने कहा कि राजनीतिक दलों में हम सब एक हैं का नारा तो खूब जोर-शोर से लगता है, लेकिन चुनाव के दौरान खेमेबाजी और कौन-किस जाति का है यह बात मुख्य हो जाती है। समूचे तंत्र पर नए सिरे से विचार की जरूरत है। जस्टिस वेंकटचलैया ने चुनाव व्यवस्था में सुधार के लिए कुछ काम किया था, लेकिन उनकी रिपोर्ट नहीं आ पाई।
उन्होंने कहा कि आज स्थिति यह है कि वोट बटोरना और अपना काम साधना ही लक्ष्य रह गया है। विडंबना है कि आज कौन लोकप्रिय है? यह सवाल नहीं उठता बल्कि कौन न्यूनतम अलोकप्रिय है, यह जताने की हा़ेड लगी है। चर्चा में डॉ शंकर शरण, डॉ बृृजभूषण कुमार, अशोक भगत, प्रो.राकेश मिश्र ने भी भाग लिया। डॉ शीला राय ने संचालन किया।
लोकसेवा का एनजीओकरण
उन्होंने कहा कि राजनीति का चुनावीकरण, विकास का सरकारीकरण और लोकसेवा का एनजीओकरण हो गया है। देश में 1600 से अधिक राजनीतिक दल मौजूद हैं। इनमें से 50 ऐसे हैं जो गंभीरतापूर्वक काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने जनादेश भी हासिल किया है। इनमें से 6-7 दल छा़ेड दें तो ज्यादातर परिवार केन्द्रित होकर रह गए हैं।