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मुख्यमंत्री का किसानों के प्रति दर्द छलक उठा

फसल बीमा पर बुलाई राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का किसानों के प्रति दर्द छलक उठा। उन्होंने पूर्ववर्ती केंद्र सरकार को बीमा कंपनियों को आड़े हाथों लेते हुए मौजूदा फसल बीमा को किसानों के साथ अन्याय करार दिया।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 16 Jun 2015 03:43 AM (IST)Updated: Tue, 16 Jun 2015 03:47 AM (IST)

भोपाल [ब्यूरो]। फसल बीमा पर बुलाई राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का किसानों के प्रति दर्द छलक उठा। उन्होंने पूर्ववर्ती केंद्र सरकार को बीमा कंपनियों को आड़े हाथों लेते हुए मौजूदा फसल बीमा को किसानों के साथ अन्याय करार दिया। चौहान ने कहा कि जब प्रीमियम से ज्यादा दावा बनने पर कंपनियां मुआवजे का भुगतान नहीं कर सकती है तो फिर काहे का फसल बीमा। ये तो छलावा है। संशोधित बीमा योजना में भी ढेरों खामियां हैं। जब कर्मचारी, व्यापारी से लेकर समाज के अन्य वर्गों की आय तय है तो फिर किसान की क्यों नहीं होना चाहिए। राज्य में ऐसी ही आदर्श योजना लागू करेंगे, जिसमें प्राकृतिक आपदा में भी किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चित हो।

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भोपाल के होटल जहांनुमा में सोमवार से दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला की शुरुआत हुई। इसमें मुख्यमंत्री ने देश और विदेश के कृषि विशेषज्ञ, बैंकर्स, केंद्र सरकार सहित विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में कहा कि जब तक खेती फायदे का धंधा नहीं बनेगी, तब तक देश भी आगे नहीं बढ़ेगा। इसके लिए लागत कम करने के साथ खेती के जोखिमों को कम करना होगा। फसल के उचित दाम देने के साथ सुरक्षा की छतरी भी किसान को मुहैया करानी होगी। अभी जो फसल बीमा है वो सीमित किसानों के लिए है। बैंकों से कर्ज लेने वाले किसान इसके दायरे में आते हैं। बाकी किसानों को योजना के बारे में मालूमात तक नहीं है।

बीमा कंपनियां प्रीमियम से ज्यादा भुगतान करने मेें ना-नुकुर करती हैं। इससे तो लगता है कि ये सिर्फ मुनाफा कमाना चाहती हैं। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने इस तरह की कार्यशाला पूरे देश में करने का सुझाव देते हुए कहा कि राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में अब परिस्थितियों के मद्देनजर सुधार करना जरूरी हो गया है।

मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा ने बताया कि गेहूं उत्पादन में प्रदेश ने पंजाब, हरियाणा और दूध उत्पादन में महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश को पीछे छोड़ दिया है। अब मध्यप्रदेश नई फसल बीमा योजना बनाने की पहल कर रहा है।

आकर्षण कम हुआ

रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी के महानिदेशक डॉ. विनय सहस्त्रबुद्घे ने कहा कि करियर के रूप में खेती के प्रति आकर्षण कम हुआ है। जो ड्राप आउट रेट है उस पर चर्चा होनी चाहिए। फसल बीमा में किसान की सुरक्षा के इंतजाम होने चाहिए। बोवनी से लेकर उपज बिकने तक की प्रक्रिया इसके दायरे में हो और बीमा में व्यावसायिक सोच के साथ निजीकरण भी करना चाहिए। बीमा एजेंटे खड़े करके किसानों को शिक्षित भी करना होगा। ये रोजगार का एक जरिया भी बनेगा।

उठाए कई सवाल: मुख्यमंत्री ने कार्यशाला में बीमा योजना को लेकर कई सवाल भी उठाए। उन्होंने पूछा कि सूख प़$डा और खेत खाली रह गए तो किसान की क्या गलती है। उसके नुकसान की भरपाई नहीं होनी चाहिए? प्राकृतिक आपदा की सूरत में 50-60 प्रतिशत से कम नुकसान पर बीमा दावा नहीं नहीं देते हैं तो फिर प्रीमियम किस बात का लिया जाता है। ओला एक पट्टी में गिरता है और नुकसान के आकलन की इकाई तहसील है, ऐसे में मुआवजा कैसे मिलेगा। फसल कटकर खेत या खलिहान में पड़ी है और बारिश या ओले से सड़ जाती है तो मुआवजा क्यों नहीं मिलना चाहिए। बीज लगाया और वो नहीं उगा तो किसान की गलती है? फसल बड़ी हुई और फल नहीं लेगे तो बीमा दावा क्यों नहीं बनना चाहिए। फसलों के मूल्य गिरने से होने वाले नुकसान की भरपाई का प्रावधान भी योजना में होना चाहिए।


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