Move to Jagran APP

प्राचीनतम हिंदू किला था लाल कोट

‘दिल्ली और उसका अंचल’ पुस्तक के अनुसार, अनंगपाल को पृथ्वीराजरासो में अभिलिखित भाट परंपरा के अनुसार दिल्ली का संस्थापक बताया गया है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Sat, 15 Apr 2017 03:18 PM (IST)Updated: Sat, 15 Apr 2017 03:18 PM (IST)
प्राचीनतम हिंदू किला था लाल कोट
प्राचीनतम हिंदू किला था लाल कोट

किला राय पिथौरा-लाल कोट भारतीय गौरवशाली अतीत की एक प्रेरणादायक गाथा का भाग है। अरावली पर्वत श्रृंखला के सबसे सामरिक भाग में स्थित किला, दिल्ली के इतिहास के कई उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा है। ‘दिल्ली और उसका अंचल’ पुस्तक  के अनुसार, अनंगपाल को पृथ्वीराजरासो में अभिलिखित भाट परंपरा के अनुसार दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। यह कहा जाता है कि उस (अनंगपाल) ने लाल कोट का निर्माण किया था जो कि दिल्ली का प्रथम सुविख्यात नियमित प्रतिरक्षात्मक प्रथम नगर के अभ्यंतर के रूप में माना जा सकता है।

loksabha election banner

वर्ष 1060 में लाल कोट का निर्माण हुआ।

जबकि सैयद अहमद खान के अनुसार, किला राय पिथौरा वर्ष 1142 में और ए.कनिंघम के हिसाब से वर्ष 1180 में बना। दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल और डीडीए के लाडो सराय स्थित कुतुब गोल्फ कोर्स में पृथ्वीराज चौहान की भव्य मूर्ति सहित परिसर के निर्माण के सूत्रधार जगमोहन की नवीनतम पुस्तक ‘ट्रंप्स एंड ट्रैजिडीस ऑफ नाइन्थ दिल्ली’ के अनुसार, ग्यारहवीं शताब्दी के अंत तक, तोमर राजपूतों ने उत्तर-पश्चिम की ओर अपना वर्चस्व बढ़ाया और सूरजकुंड में अपने क्षेत्रीय मुख्यालय की स्थापना की।

उनके राजा अनंग पाल ने सूरजकुंड के लगभग दस किलोमीटर पश्चिम में लाल कोट नामक एक किले का निर्माण किया। बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में विग्रहराज चौहान ने तोमर राजा को हराकर लाल कोट सहित उसके क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया। उसके बाद जब पृथ्वीराज चौहान, जो कि राय पिथौरा के नाम से भी प्रसिद्ध थे, सिंहासन पर बैठे तो उन्होंने लाल कोट का विस्तार करते हुए एक विशाल किला बनाया। इस तरह, लाल कोट कोई स्वतंत्र इकाई नहीं है बल्कि लाल कोट-रायपिथौरा ही दिल्ली का पहला ऐतिहासिक शहर है। इस किलेबंद बसावट की परिधि 3.6 किलोमीटर थी। तोमर और चौहानों ने लाल कोट के भीतर अनेक मंदिर का निर्माण किया और इन सभी को मुसलमानों ने गिरा दिया और उनके पत्थरों को मुख्यत: कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद के लिए पुन: इस्तेमाल किया गया। पत्थर की बनी विष्णु की एक चतुर्भजी मूर्ति कुतुबमीनार के दक्षिण पूर्व में पाई गई जो सन् 1147 की है और इसे अब राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।

अनगढ़े पत्थरों से बनी ये प्राचीरें बहुत हद तक मलबे के ढेर से ढकी हुई हैं और इसका पूरा घेरा अभी तक खोजा नहीं जा सका है। ये मोटाई में पांच से छह मीटर तक मोटी है और कुछ किनारों पर 18 मीटर तक ऊंची हैं और उनके बाहर की ओर चौड़ी खन्दक है। तैमूर (लंग) के अनुसार इसमें तेरह द्वार थे। द्वारों में से जो अब भी मौजूद है, वे हैं-हौजरानी, बरका और बदायूं द्वार। इनमें से अंतिम द्वार के बारे में विदेशी यात्री इब्नबतूता ने उल्लेख किया है। और संभवत: यह शहर का मुख्य प्रवेश द्वार था।

लाल कोट के समान इस (राय पिथौरा) की प्राचीरों को काटती हुई दिल्ली-कुतुब और बदरपुर-कुतुब सड़कें गुजरती हैं। दिल्ली की ओर से अधचिनी गांव से आगे बढ़ने पर सड़क के दोनों ओर किला राय पिथौरा की प्राचीरें, जिन्हें सड़क काटती हुई जाती है, देखी जा सकती है। एचसी फांशवा अपनी पुस्तक ‘दिल्ली, पास्ट एंड प्रेजेन्ट’ में लिखता है कि यह एक और आकस्मिक संयोग है कि दिल्ली में सबसे पुराने हिंदू किले का नाम लाल कोट था तो मुसलमानों (यानी मुगलों के) नवीनतम किले का नाम लाल किला है।

नलिन चौहान

दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.