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कुल्‍लू-मनाली जहां झरने पहाड़ के साथ देखें रामायण-महाभारत के निशान

हिमालय के अंचल में बसे इस शहर में आप प्रकृति के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक समृद्धि की नायाब झलक भी पा सकते हैं। जो एक बार यहां आए, वह बार-बार आना चाहे..

By abhishek.tiwariEdited By: Published: Wed, 31 May 2017 03:07 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jun 2017 03:43 PM (IST)
कुल्‍लू-मनाली जहां झरने पहाड़ के साथ देखें रामायण-महाभारत के निशान

कहां-कहां घूमें :

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कुदरत के बारे में जितनी सुंदर कल्पना कर सकते हैं उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत है हिमाचल की गोद में बसा यह पर्वतीय नगर। यही वजह है कि जो एक बार यहां आता है, मंत्रमुग्ध हो यहीं खो जाता है। नवविवाहित युगलों का भी प्रिय हनीमून पड़ाव है मनाली। उत्तरी भारत के हिमाचल प्रदेश स्थित कुल्लू जिले का यह प्रांत बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग का हॉटस्पॉट रहा है। यह कुल्लू से रोहतांग दर्रा से होते हुए लेह-लद्दाख की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 21 पर स्थित है, जो कि साहसिक सैनालियों को अपनी ओर खींचता है। यहां ऐसी कई विशेषताएं हैं जो कुल्लू मनाली को भारत के दूसरे शहरों से अलग करता है।

1. रोहतांग पास

मनाली का सबसे बड़ा आकर्षण 12 महीने बर्फ से ढका रहने वाला रोहतांग पास है। यह मनाली से 50 किमी. दूर समुद्र तल से 13050 फीट की उंचाई पर स्थित है। रोहतांग दर्रा सैलानियों व पर्वतारोहियों को खास तौर पर लुभाता है। अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रोहतांग में बढ़ते पर्यटकों की संख्या को देखते हुए यहां रोजाना केवल 1200 वाहनों के प्रवेश की ही शर्त लगा दी है, जिसके लिए आनलाइन और मनाली में ही पैसे देकर परमिट लेना जरूरी कर दिया गया है।

2. रोरिक आर्ट गैलरी

यह स्थान कुल्लू के ऐतिहासिक क्षेत्र नग्गर से कुछ किमी. ऊपर है, जो आज एक विकसित पर्यटन स्थल तो है ही, कला साधकों के लिए भी किसी कुंभ से कम नहीं। कुल्लू को विश्र्व मानचित्र पर पहचान दिलाने का श्रेय रूसी चित्रकार एवं साहित्यकार निकोलस रोरिक को भी जाता है। उन्होंने अपनी कूची से पहाड़ों को एक नया रूप दिया और हिमालयी सभ्यता को ऐसे उकेरा कि वह दुनिया भर में लोकप्रिय हो गई।

3. कसोल घाटी : 

कसोल घाटी विदेशी घुमक्कड़ों की खास पसंद हैं। यहां की फिजाओं में इजरायली जैसे रच-बस गए हैं। दशक भर से यह क्षेत्र विदेशी ही नहीं, देसी सैलानियों के लिए कुंभ मेले के समान हो गया है। यहां आने वाले सैलानियों में 90 फीसद युवा होते हैं, जो एडवेंचर और मौज-मस्ती के लिए देश के कोने-कोने से यहां पहुंचते हैं। वे यहां खुले आसमान के नीचे रंग-बिरंगे कैंपिंग साइट में ठहरते हैं। 

4. लहलहाते सेब के बाग

पर्यटन के साथ-साथ फलों के बगीचों से भी यहां के स्थानीय लोगों की आजीविका की राह निकलती है। घाटी की ऊंची पहाडि़यों पर लहलहाते सेब के बागान और निचले क्षेत्रों में अनार, प्लम, नाशपाती व खुमानी के बगीचे बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आज कुल्लू के सेब की मांग विदेशों में भी खूब है।

5. हिडिंबा मंदिर

देवी हिडिंबा का मंदिर मनाली बाजार से लगभग तीन किलोमीटर दूर पुरानी मनाली में देवदारों के घने जंगल के बीच स्थित है। यह पैगोडा शैली में बना उत्कृष्ट काष्ठकला का नमूना है। मंदिर के गर्भगृह में माता की पाषाण मूर्ति है। मान्यता है कि जब पांडव वनवास में थे तो भीम ने हिंडिंबा के राक्षस भाई को मारकर क्षेत्र को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी, जिसके बाद देवी ने उनसे विवाह कर लिया। कहते हैं कुल्लू राज परिवार के पहले शासक विहंगमणिपाल को माता ने ही यहां का राजकाज बख्शा था। यही कारण है कि राज परिवार आज भी माता को अपनी दादी मानता है।

6. कुल्लू दशहरे की अलग पहचान

बरसों से चले आ रहे इस आयोजन का स्वरूप आज बहुत बढ़ गया है। देश-विदेश से आए सैकड़ों शोधार्थी इस उत्सव का हिस्सा बनते हैं। हजारों लोगों का हुजूम रंग-बिरंगे परिधानों में अलग-अलग फूलों के गुलदस्ते के समान लगता है। मेले के आरंभ में जब भगवान रघुनाथ की शोभायात्रा निकलती है, यहां का दशहरा अपनी विशिष्ट परंपरा के साथ मनाया जाता है। इसमें न रामलीला होती है, न रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतले जलते हैं। आठ दिनों के इस उत्सव ने सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। वर्ष 2015 में दशहरे के दौरान पारंपरिक परिधानों में सजी लगभग 13 हजार महिलाओं ने कुल्लवी नाटी प्रस्तुत किया, जिसे 'गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉर्ड्स' में शामिल किया गया था।

यहां क्‍या-क्‍या मिलेगा खाने को

यहां के रेस्तरां, होटल और फूडकोर्ट आदि में हर तरह का भोजन व देश-विदेश में प्रचलित व्यंजन उपलब्ध हैं। पर घाटी के अपने पकवानों और व्यंजनों की गर्म तासीर का अपना आनंद है। ये सर्दी के लिहाज से पकाए जाते थे जो परंपरागत रूप से आज भी चलती आ रही है। इनमें प्रमुख रूप से गेहूं के आटे से पकाया जाने वाला सिड्डू है। आटे को खट्टा करके 'सिड्डू' बनाया जाता है जो ओवल आकार में होता है। लोई के अंदर स्वाद के हिसाब से अखरोट, मूंगफली, अफीमदाना का मीठा या नमकीन पेस्ट भरा जाता है। इसे मोमोज की तरह पकाया जाता है और चटनी के साथ परोसा जाता है। यहां के विभिन्न क्षेत्रों में आटे के मीठे अथवा नमकीन बबरू, आटे की घी-बाड़ी, चावल व माश की घी-खिचड़ी, चावल व गेहूं के आटे के चिलड़े व अस्कलू, मक्की की रोटी व साग सहित अन्य सभी तरह की दाल-सब्जियां बनाई जाती हैं।

कुल्लू मनाली की सैर

आप यहां वर्षभर आ सकते हैं पर मई व जून सबसे उपयुक्त मौसम है। सितंबर-अक्टूबर में जब दशहरा होता है तब घाटी में पर्यटन का अपना ही आनंद है। यहां के लिए दिल्ली से सीधी वॉल्वो व दूसरी सामान्य बसें हैं, जबकि चंडीगढ़ तक रेलगाड़ी से आने के बाद वहां से भी बस ली जा सकती है। इसके अलावा, दिल्ली व चंडीगढ़ से शेडयूल के हिसाब से कुल्लू के समीप भुंतर हवाई अड्डे के लिए उड़ानें भी उपलब्ध हैं।


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