फागुनी दोहे
कीचड़ उनके हाथ था, मेरे हाथ गुलाल।
By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 14 Mar 2017 12:37 PM (IST)Updated: Tue, 14 Mar 2017 12:40 PM (IST)
कीचड़ उनके हाथ था, मेरे हाथ गुलाल।
जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल।।
पानी तक मिलता नहीं, कहां हुस्न और जाम।
अब लिक्खें रूबाइयां, मियां उमर खैय्याम।।
होरी जले गरीब की, लपट न उठने पाय।
ज्यों दहेज बिन गूजरी, चुपचुप जलती जाय।।
उनके घर की देहरी, फागुन क्या फगुनाय।
जिनके घर की छांव भी, होली-सी दहकाय।।
जिन पेड़ों की छांव से, काला पड़े गुलाल।
उनकी जड़ में बावरे, अब तो मट्ठा डाल।।
छोटी सिंधी कॉलोनी, हरदा(म.प्र.)
माणिक वर्मा
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